जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश में चिकित्सकों की ओर से आए दिन हड़ताल करने के मामले में दायर जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया है. अदालत ने आदेश दिए हैं कि चिकित्सकों की समस्याओं को लेकर गठित कमेटी चिकित्सकों के हड़ताल पर जाने से पूर्व उनका पक्ष सुनकर कार्रवाई करें. ताकि चिकित्सकों को हड़ताल पर जाने की जरूरत नहीं हो. मुख्य न्यायाधीश एस रविंद्र भट्ट और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने यह आदेश अभिनव शर्मा की ओर से दायर जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए दिए.
सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि राज्य सरकार ने चिकित्सकों की समस्याओं के निराकरण के लिए एक कमेटी का गठन किया है. इस पर अदालत ने कहा कि भविष्य में चिकित्सकों की हड़ताल पर जाने से पहले कमेटी उनकी समस्याओं की सुनवाई करें. इसके साथ ही अदालत में मामले का निस्तारण कर दिया है. याचिका में कहा गया था कि अतिआवश्यक सेवा होने और सुप्रीम कोर्ट की ओर से पाबंदी के बावजूद चिकित्सक आए दिन हड़ताल कर काम का बहिष्कार कर देते हैं. जिसके चलते स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाती हैं और कई लोगों की जान पर बन आती है. याचिका के लंबित रहने के दौरान राज्य सरकार ने चिकित्सकों की समस्याओं की सुनवाई के लिए कमेटी गठित की थी.
बंधुआ मजदूरों का क्यों नहीं किया पुनर्वास
साथ ही राजस्थान हाईकोर्ट ने बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए बने प्रावधानों की पालना नहीं करने और उनके पुनर्वास नहीं करने पर मुख्य सचिव, श्रम मंत्रालय और बारां, अजमेर, झुंझुनू, और उदयपुर के जिला कलेक्टरों सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. मुख्य न्यायाधीश एस रविंद्र भट्ट और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने यह आदेश निर्मल गौरान की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
याचिका में कहा गया कि पिछले 2 साल में राज्य सरकार ने जिला स्तर पर कार्रवाई करते हुए करीब 150 बंधुआ मजदूरों को दासता से मुक्त कराया था. संबंधित अधिकारियों ने इनमें से अधिकांश मजदूरों के मुक्ति प्रमाण पत्र तो जारी कर दिए, लेकिन बंधुआ मजदूर उन्मूलन अधिनियम के प्रावधानों और बंधुआ श्रमिकों के पुनर्वास के लिए बनी योजना का लाभ नहीं दिया गया. याचिका में कहा गया कि नियमानुसार हर बंधुआ मजदूर को मुक्ति प्रमाण पत्र जारी होने के बाद क्षतिपूर्ति राशि देने का प्रावधान है. इसके बावजूद भी किसी भी बंधुआ मजदूर को राज्य सरकार की ओर से ओर से क्षतिपूर्ति राशि जारी नहीं की गई. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.