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Teachers Day 2023 : जयपुर की रजनी चौहान फैला रहीं शिक्षा की रोशनी, इस तरह संवार रहीं गरीब बच्चों की जिंदगी

Teachers Day 2023, शिक्षक होना अपने आप में महान पेशा है, जो कई भविष्य को बुन रहा होता है. ऐसे ही कई भविष्य को संवार रही हैं राजस्थान के जयपुर की रजनी चौहान. रजनी पिछले पांच साल से राजधानी जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज के पीछे रहने वाले गरीब और जरूरतमंद बच्चों को पढ़ा रही हैं. आज शिक्षक दिवस पर पढ़िए कैसे रजनी बनीं गुरु...

Rajni Chauhan of Jaipur
Rajni Chauhan of Jaipur
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 5, 2023, 6:18 AM IST

जयपुर की रजनी चौहान फैला रहीं शिक्षा की रोशनी...

जयपुर. कहते हैं कि बदलाव की शुरुआत एक व्यक्ति से होती है, तब ही समाज आगे बढ़ता है. आज टीचर्स डे पर बात ऐसे शिक्षक की, जिन्होंने कई बच्चों के जीवन को शिक्षा की रोशनी से जगमग किया है. आज जहां शिक्षा महज व्यापार बन कर रह गया है, वहां राजस्थान के जयपुर की रजनी चौहान गरीब और जरूरतमंद बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं. पांच साल पहले शुरू की गई इस पहल से न जाने कितने ही बच्चों का भविष्य संवर चुका है.

पांच साल पहले आया ख्याल : शिक्षा वह ज्ञान है जिसे जितना बांटोगे उतना ही उसका विस्तार होगा. अगर हमारे प्रयास से एक बच्चा भी शिक्षा से जुड़ पाया तो लगेगा कि प्रयास सफल हो गया. इसी सोच के साथ जयपुर में रजनी वंश चौहान अभावग्रस्त बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा भरने की कोशिश कर रही हैं. रजनी कहती हैं कि वो अकसर अपना और अपने बेटे का जन्मदिन जरूरतमंद बच्चों के साथ मनाती हैं. इस बीच 2019 में जब वो अपने जन्मदिन पर जयपुर एसएमएस मेडिकल कॉलेज के पीछे बस्ती में बच्चों को कुछ मिठाई और गिफ्ट देने आईं तो उन्होंने देखा की वहां रहने वाले बच्चे स्कूल नहीं जाते.

पढ़ें. शिक्षक दिवस स्पेशल: RTO प्रकाश सर दे रहे विद्यार्थियों के सपनों को पंख, वेबसाइट व ऐप के जरिए करवाते हैं निःशुल्क तैयारी

एक ही महीने में 50 बच्चे आने लगे : जब उनके परिजनों से पता किया तो उन्होंने कहा कि वो सब बाहरी राज्यों या आस पास के गांव से मजदूरी करने के लिए आए हैं. स्थाई ठिकाना नहीं होने से बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे हैं. उस वक्त ही इन बच्चों को पढ़ाने का ख्याल आया. उन्होंने कहा कि अगर मेरी एक छोटी सी कोशिश से एक बच्चा भी पढ़ पाया तो जीवन में लगेगा की कुछ अच्छा किया. तब से हर दिन वो कुछ समय के लिए बच्चों को पढ़ाने आने लगीं. शुरुआत में 5-6 बच्चे ही आते थे, लेकिन देखते ही देखते एक महीने में इन बच्चों की संख्या 50 के करीब हो गई.

परेशानी हुई लेकिन समाधान भी निकला : रजनी कहती हैं कि जब भी कुछ करने की कोशिश होती है तो मुश्किलें भी साथ आती हैं. शुरुआत में 6 महीने तक वो खुद हर दिन पढ़ाने आती थीं, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते नियमित आना नहीं हो पा रहा था. इसके चलते बच्चों की पढ़ाई में गैप आ रहा था. फिर दोस्तों की सलाह पर टीचर को पढ़ाने के लिए हायर किया. हृषिता और स्वेता स्थाई तौर पर बच्चों को पढ़ाने लगीं. टीचर श्वेता ने आईएएस प्री पास कर लिया है. रजनी कहती हैं कि आज भी सप्ताह में तीन से चार दिन वो खुद पढ़ाने आती हैं. अच्छा लगता है कि पांच साल पहले जिस उम्मीद के साथ बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था, उसमें सफलता मिल रही है. बच्चे यहां पर प्राथमिक शिक्षा हासिल करते हैं. जब बच्चों में पढ़ाई के प्रति इंटरेस्ट डेवलप हो जाता है तो उनका आसपास सरकारी या निजी स्कूल में एडमिशन करवाते हैं. अब तक 25 से 30 बच्चे स्थाई तौर पर स्कूल जाने लगे हैं.

पढ़ें. मिलिए उदयपुर के टीचर से, जिन्हें लोग रॉबिन हुड कहते हैं

बर्थ-डे और त्योहार बच्चों के साथ मनाती हैं : रजनी ने बताया कि इस पाठशाला की शुरुआत उन्होंने 5 साल पहले की थी. पाठशाला शुरू हुए एक साल भी नहीं हुआ था कि कोरोना काल आ गया, जिसके चलते करीब डेढ़ से दो साल तक इसे बंद करना पड़ा. कोविड खत्म होने के साथ फिर से नियमित पढ़ाई जारी रखी. शुरुआत में बच्चों के परिजनों ने भी आपत्ति दर्ज कराई, लेकिन धीरे-धीरे वही बच्चों को यहां भेजने लगे.

रजनी ने बताया कि पहले और अब में बच्चों में भी काफी बदलाव आए हैं. बच्चे नहा-धोकर तैयार होकर सलीके से पढ़ने आते हैं. कुछ बच्चे पहले नशा भी करते थे, पर अब वे इस लत से मुक्त हो चुके हैं. रजनी कहती हैं कि वो और उनके दोस्तों का ग्रुप अपना जन्मदिन या कोई त्योहार इन बच्चों के साथ ही सेलिब्रेट करते हैं. इस तरह बच्चों के साथ कनेक्शन डेवलप होता है. बच्चे अब बात सुनते भी हैं और मानते भी हैं. अब रजनी का 12 साल का बेटा वंश चौहान भी छुट्टी मिलने पर इन बच्चों से साथ समय बिताता है.

जयपुर की रजनी चौहान फैला रहीं शिक्षा की रोशनी...

जयपुर. कहते हैं कि बदलाव की शुरुआत एक व्यक्ति से होती है, तब ही समाज आगे बढ़ता है. आज टीचर्स डे पर बात ऐसे शिक्षक की, जिन्होंने कई बच्चों के जीवन को शिक्षा की रोशनी से जगमग किया है. आज जहां शिक्षा महज व्यापार बन कर रह गया है, वहां राजस्थान के जयपुर की रजनी चौहान गरीब और जरूरतमंद बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं. पांच साल पहले शुरू की गई इस पहल से न जाने कितने ही बच्चों का भविष्य संवर चुका है.

पांच साल पहले आया ख्याल : शिक्षा वह ज्ञान है जिसे जितना बांटोगे उतना ही उसका विस्तार होगा. अगर हमारे प्रयास से एक बच्चा भी शिक्षा से जुड़ पाया तो लगेगा कि प्रयास सफल हो गया. इसी सोच के साथ जयपुर में रजनी वंश चौहान अभावग्रस्त बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा भरने की कोशिश कर रही हैं. रजनी कहती हैं कि वो अकसर अपना और अपने बेटे का जन्मदिन जरूरतमंद बच्चों के साथ मनाती हैं. इस बीच 2019 में जब वो अपने जन्मदिन पर जयपुर एसएमएस मेडिकल कॉलेज के पीछे बस्ती में बच्चों को कुछ मिठाई और गिफ्ट देने आईं तो उन्होंने देखा की वहां रहने वाले बच्चे स्कूल नहीं जाते.

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एक ही महीने में 50 बच्चे आने लगे : जब उनके परिजनों से पता किया तो उन्होंने कहा कि वो सब बाहरी राज्यों या आस पास के गांव से मजदूरी करने के लिए आए हैं. स्थाई ठिकाना नहीं होने से बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे हैं. उस वक्त ही इन बच्चों को पढ़ाने का ख्याल आया. उन्होंने कहा कि अगर मेरी एक छोटी सी कोशिश से एक बच्चा भी पढ़ पाया तो जीवन में लगेगा की कुछ अच्छा किया. तब से हर दिन वो कुछ समय के लिए बच्चों को पढ़ाने आने लगीं. शुरुआत में 5-6 बच्चे ही आते थे, लेकिन देखते ही देखते एक महीने में इन बच्चों की संख्या 50 के करीब हो गई.

परेशानी हुई लेकिन समाधान भी निकला : रजनी कहती हैं कि जब भी कुछ करने की कोशिश होती है तो मुश्किलें भी साथ आती हैं. शुरुआत में 6 महीने तक वो खुद हर दिन पढ़ाने आती थीं, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते नियमित आना नहीं हो पा रहा था. इसके चलते बच्चों की पढ़ाई में गैप आ रहा था. फिर दोस्तों की सलाह पर टीचर को पढ़ाने के लिए हायर किया. हृषिता और स्वेता स्थाई तौर पर बच्चों को पढ़ाने लगीं. टीचर श्वेता ने आईएएस प्री पास कर लिया है. रजनी कहती हैं कि आज भी सप्ताह में तीन से चार दिन वो खुद पढ़ाने आती हैं. अच्छा लगता है कि पांच साल पहले जिस उम्मीद के साथ बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था, उसमें सफलता मिल रही है. बच्चे यहां पर प्राथमिक शिक्षा हासिल करते हैं. जब बच्चों में पढ़ाई के प्रति इंटरेस्ट डेवलप हो जाता है तो उनका आसपास सरकारी या निजी स्कूल में एडमिशन करवाते हैं. अब तक 25 से 30 बच्चे स्थाई तौर पर स्कूल जाने लगे हैं.

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बर्थ-डे और त्योहार बच्चों के साथ मनाती हैं : रजनी ने बताया कि इस पाठशाला की शुरुआत उन्होंने 5 साल पहले की थी. पाठशाला शुरू हुए एक साल भी नहीं हुआ था कि कोरोना काल आ गया, जिसके चलते करीब डेढ़ से दो साल तक इसे बंद करना पड़ा. कोविड खत्म होने के साथ फिर से नियमित पढ़ाई जारी रखी. शुरुआत में बच्चों के परिजनों ने भी आपत्ति दर्ज कराई, लेकिन धीरे-धीरे वही बच्चों को यहां भेजने लगे.

रजनी ने बताया कि पहले और अब में बच्चों में भी काफी बदलाव आए हैं. बच्चे नहा-धोकर तैयार होकर सलीके से पढ़ने आते हैं. कुछ बच्चे पहले नशा भी करते थे, पर अब वे इस लत से मुक्त हो चुके हैं. रजनी कहती हैं कि वो और उनके दोस्तों का ग्रुप अपना जन्मदिन या कोई त्योहार इन बच्चों के साथ ही सेलिब्रेट करते हैं. इस तरह बच्चों के साथ कनेक्शन डेवलप होता है. बच्चे अब बात सुनते भी हैं और मानते भी हैं. अब रजनी का 12 साल का बेटा वंश चौहान भी छुट्टी मिलने पर इन बच्चों से साथ समय बिताता है.

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