नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (Unique Identification Authority of India) को निर्देश दिया है कि यौनकर्मियों को भी आधार कार्ड जारी किए जाएं. शीर्ष अदालत ने कहा कि नाको में राजपत्रित अधिकारी या स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी में प्रोजेक्ट डायरेक्टर की ओर से से दिए गए प्रोफार्मा के आधार पर यौनकर्मियों को आधार कार्ड जारी करें.
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना ने यूआईडीएआई से यह सुनिश्चित करने को कहा कि आधार कार्ड जारी करने की प्रक्रिया में यौनकर्मियों की गोपनीयता बनी रहनी चाहिए. इस प्रक्रिया में गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होगा, जिसमें आधार नामांकन संख्या में किसी भी कोड को असाइन करना भी शामिल है, जिससे कार्ड धारक को सेक्स वर्कर के रूप में पहचाना जा सकता है. इससे पहले दरबार महिला समन्वय समिति की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने पीठ को अवगत कराया कि यौनकर्मियों को निवास के प्रमाण के बिना आधार कार्ड जारी नहीं किए जा रहे हैं.
यूआईडीएआई की ओर से दिए हलफनामे में सुझाव दिया गया था कि यौनकर्मी जो कि नाको की सूची में हैं और आधार कार्ड के लिए आवेदन करते हैं. लेकिन निवास का प्रमाण प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं, उन्हें आधार कार्ड जारी किया जा सकता है, बशर्ते कि नाको में राजपत्रित अधिकारी या राज्य का स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रोफार्मा प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया जाए, जिनके विवरणों की पुष्टि वे कर रहे हों.
दरबार महिला समन्वय समिति ने करीब 9 सुझाव दिये हैं और सभी सुझावों को यूआईडीएआई ने स्वीकार कर लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि वे उन सभी यौनकर्मियों को किसी पहचान के प्रमाण पर जोर दिए बिना सूखा राशन प्रदान करें, जिनकी पहचान नाको द्वारा की गई है. इस बीच कोर्ट ने राज्य सरकारों को उन्हें वोटर आईडी और राशन कार्ड जारी करने का निर्देश दिया है. उल्लेखनीय है कि उक्त सिफारिश लगभग एक दशक पहले, यौनकर्मियों के लिए एक न्यायालय द्वारा नियुक्त पैनल द्वारा की गई थी लेकिन इसे लागू किया जाना है.
याचिका में कोविड-19 के कारण यौनकर्मियों की बदहाली को उजागर किया गया है और पूरे भारत में नौ लाख से अधिक महिला एवं ट्रांसजेंडर यौनकर्मियों लिए राहत उपायों का आग्रह किया गया है. पीठ ने निर्देश दिया था कि अधिकारी नाको और राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी की सहायता ले सकते हैं, जो समुदाय-आधारित संगठनों द्वारा उन्हें प्रदान की गई जानकारी का सत्यापन करने के बाद यौनकर्मियों की सूची तैयार करेंगे. शीर्ष अदालत ने 29 सितंबर 2020 को सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वे नाको द्वारा चिह्नित यौनकर्मियों को राशन प्रदान करें और पहचान के किसी सबूत पर जोर न दें. इसने मामले में अनुपालन की स्थिति रिपोर्ट भी मांगी थी.