भोपाल। बच्चों के स्कूली बस्तों के बढ़ते बोझ को कम करने की कवायद शुरू हो गई है. मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बस्तों का बोझ घटाने को लेकर सभी कलेक्टर्स को पत्र लिखा है. आयोग के सदस्य बृजेश चौहान का कहना है कि, 2020 में बस्तों के बोझ को कम करने को लेकर पॉलिसी बनी थी. लेकिन उसका पालन नहीं किया जा रहा है, ऐसे में उनका दल लगातार स्कूलों के निरीक्षण करेगा.
बच्चों के शारीरिक वजन का 10 फीसदी होना चाहिए बस्ते का वजन: आयोग का कहना है कि, सरकारी स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के बस्तों का बोझ ज्यादा भारी होता है. साथ ही, प्राइवेट स्कूल निर्धारित पाठ्यक्रम का अनुपालन नहीं करते और निजी प्रकाशकों की पुस्तकें पढ़ाते हैं. पाठ्य पुस्तकों को मासिक शिक्षण योजना के आधार पर विभाजित किया जाना चाहिए. साथ ही निचली कक्षाओं के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 में बदलाव होना चाहिए कि, बच्चों के स्कूली बस्तों का बोझ उनके कुल शारीरिक वजन का 10 फीसदी होना चाहिए.
स्कूलों में बच्चों को बैग के लिए यह है निर्देश:
- स्कूलों में बच्चों के वजन के अनुसार बस्ते का वजन होगा.
- प्री-प्राइमरी कक्षाओं के बच्चों के लिए बस्ता नहीं होगा. जबकि ग्यारवीं-बारहवीं में 35 से 40 किलो वजन के बच्चे के लिए बस्ते का वजन 3.5 किलोग्राम से पांच किलोग्राम तक होगा.
- कक्षा प्राइमरी के लिए बच्चे का वजन 10 से 16 किलो होने पर कोई बस्ता नहीं.
- कक्षा फर्स्ट ओर 2nd के लिए बच्चे का वजन 16 से 22 किलो, बस्ते का वजन 1 किलो 600 ग्राम से लेकर 2 किलो 200 ग्राम.
- कक्षा थर्ड के लिए बच्चे का वजन 17 से 25 किलो, बस्ते का वजन 1 किलो 700 ग्राम से 2 -ढाई किलो.
- पांचवी-छठी और सातवीं के बच्चों का वजन 20 से 30 किलो, बस्ते का वजन 2 से 3 किलो.
- आठवीं, नौवीं, दसवीं के बच्चे का वजन 25 से 45 किलो के बीच, बस्ते का वजन ढाई किलो से साढ़े 4 किलो के बीच.
आयोग ने अपने सर्वे में पाया कि, देश में कुल स्कूलों की संख्या में प्राइवेट और निजी स्कूल ज्यादा कमीशन के चक्कर में पाठ्यक्रम से बाहर की किताबों की सिफारिश करते हैं और बस्तों का बोझ बढ़ाते हैं.
- बृजेश चौहान, सदस्य बाल आयोग
बाल आयोग निरीक्षण कर कार्रवाई की अनुशंसा करेगा: आयोग के सदस्य बृजेश चौहान ने बताया कि, पिछले 70 सालों से हमारी शिक्षा प्रणाली कई समस्याओं और चुनौतियों का सामना कर रही है. लेकिन स्कूली बस्तों के बढ़ते वजन और उससे बच्चों की सेहत पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है. ऐसे में उन्होंने स्कूलों का निरीक्षण किया, तो देखा कि प्राइवेट स्कूलों में छोटे बच्चों को अधिक वजनी बैग दिए जा रहे हैं. 2020 में बनी नीति का भी पालन नहीं हो रहा. ऐसे में सभी कलेक्टर को पत्र लिखकर जानकारी मांगी है और कहा है कि, ऐसा लगातार हुआ तो बाल आयोग निरीक्षण कर कार्रवाई की भी बात कहेगा.
यह हैं नियम:
- नियम के अनुसार स्कूलों को कहा गया है कि, चार्ट को प्रत्येक कक्षा के नोटिस बोर्ड पर प्रमुखता से प्रदर्शित करना होगा.
- दिशा-निर्देशों में स्पष्ट किया गया है कि, अन्य कक्षाओं के प्रत्येक विषय के अभ्यास, प्रयोगों के लिए एक नोटबुक होगी. जिसे छात्रों को टाइमटेबल के अनुसार लाना होगा.
- छात्रों को अतिरिक्त किताबें लाने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए.
- स्कूलों को अक्सर स्कूल बैग की जांच करने के लिए कहा गया है, जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि छात्र बैग में अनावश्यक सामग्री तो नहीं ला रहे.
- स्कूलों को केवल एससीईआरटी, एनसीईआरटी, सीबीएसई की किताबों को ही रखना होगा. गैर जरुरी पुस्तकों को लाने की मनाही करनी होगी.
- यह भी ध्यान रखना होगा कि, बच्चे हल्की अभ्यास किताबें ही बैग में लेकर आएं.
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अभिभावकों ने बाल आयोग के कदम को सराहा: बाल आयोग ने प्रदेश के 52 जिला कलेक्टरों को लेटर लिखा है. लेटर में साफ तौर पर कहा गया है कि, जिस तरह से बच्चों का बस्ता भरा रहता है, उससे निश्चित ही उनकी सेहत के साथ ही मानसिक तौर पर भी असर पड़ रहा है. इसको लेकर उचित कार्रवाई की जाए. अभिभावकों का कहना है कि लगातार प्राइवेट स्कूल अपनी मनमानी करते हुए संबंधित दुकानों से ही किताबों के लिए कहते हैं. साथ ही एक विषय में दो और नोटबुक मंगाई जाती हैं. इसको लेकर भी बाल आयोग का कदम निश्चित ही सराहनीय है.
भारी स्कूल बैग से छात्रों को शारीरिक कष्ट: अभिभावक भी मानते हैं कि, बच्चों के बस्ते का बोझ बढ़ गया है. इसके कारण उन्हें कई बार कमर दर्द की शिकायत भी होती है. रश्मि शुक्ला बताती हैं कि, उनकी बिटिया तीसरी कक्षा में है. लेकिन बस्ते का बोझ इतना ज्यादा है कि, उसे ले जाने में ही परेशानी होती है. जिस वजह से कई बार वह कमर दर्द की शिकायत करती है.