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क्या वकीलों की आवश्यक संख्या के संबंध में कोई अध्ययन किया गया है : उच्चतम न्यायालय ने सवाल किया - उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने देश में वकीलों की आवश्यक संख्या को लेकर संभवत: भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) द्वारा अध्ययन किए जाने का समर्थन करते हुए सवाल किया कि क्या इस संबंध में देश में पहले कोई अध्ययन किया गया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस अध्ययन से यह पता करने में मदद मिलेगी कि लंबित मामलों के निपटारे के लिए कितने वकीलों की आवश्यकता है और देश भर की अदालतें कितने मामलों की सुनवाई कर सकती हैं.

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Published : Sep 27, 2022, 9:31 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने देश में वकीलों की आवश्यक संख्या को लेकर संभवत: भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) द्वारा अध्ययन किए जाने का समर्थन करते हुए सवाल किया कि क्या इस संबंध में देश में पहले कोई अध्ययन किया गया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस अध्ययन से यह पता करने में मदद मिलेगी कि लंबित मामलों के निपटारे के लिए कितने वकीलों की आवश्यकता है और देश भर की अदालतें कितने मामलों की सुनवाई कर सकती हैं.

न्यायालय ने सवाल किया, 'देश को कितने वकीलों की आवश्यकता है?' उसने साथ ही कहा कि कई वकीलों के पास कोई ठोस काम नहीं है. न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति ए एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि देश में वकीलों की संख्या बहुत अधिक है या कम है, यह पता करने के लिए अध्ययन की आवश्यकता है.

पीठ ने कहा, 'संभवत: विधिज्ञ परिषद या किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा अध्ययन करने की आवश्यकता है, ताकि लंबित मामलों को देखा जा सके... ताकि यह देखा जा सके कि भारत में अदालतें कितने मामलों की सुनवाई करने में सक्षम हैं, वहां वकीलों की इष्टतम संख्या क्या होनी चाहिए.'

पीठ अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत नामांकन से पूर्व परीक्षा निर्धारित करने की बीसीआई की क्षमता से जुड़े सवाल समेत कई सवालों पर विचार कर रही थी. इन सवालों को पांच सदस्यीय पीठ के पास विचार के लिए भेजा गया था.

सुनवाई के दौरान जब खासकर ग्रामीण या जिला या तालुका स्तर पर वकीलों की आय का मामला सामने आया, तो पीठ ने कहा कि इस प्रकार के अध्ययन से विधिज्ञ परिषद को परीक्षा का स्तर तय करने में भी मदद मिल सकती है. शीर्ष अदालत ने कहा, 'तो, आदर्श रूप से, यदि काम को यथोचित किया जाता है, तो प्रणाली की मदद के लिए आपको कितने वकीलों की आवश्यकता है.'

उसने कहा, 'क्या आसान स्तर की परीक्षा की आवश्यकता है? क्या ऐसी परीक्षा की आवश्यकता है, जिसमें कठिनाई का स्तर थोड़ा अधिक हो? यह पता करने में उस आंकड़े से मदद मिल सकती है, तो (अध्ययन के बाद) संभवत: आपके पास होगा.'

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के देश के शीर्ष विधि अधिकारी बनने से पहले शीर्ष अदालत ने उन्हें इस मामले में न्यायमित्र के तौर पर सहायता करने को कहा था. वेणुगोपाल ने कहा कि एक के बाद एक पारित हुए अधिनियम, मामले में बनाई गई समितियां और विधि आयोग की रिपोर्ट कहती है कि परीक्षा आवश्यक है. वेणुगोपाल ने यह भी उल्लेख किया कि कैसे कई विधि महाविद्यालयों की मान्यता पहले रातों रात वापस ले ली गई थी. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि ये महाविद्यालय उच्च स्तर के नहीं थे.

वेणुगोपाल ने कहा कि विधि महाविद्यालयों को न्यूनतम समान मानक बनाए रखने होंगे. मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी. शीर्ष अदालत ने मार्च 2016 में कहा था कि उठाए गए प्रश्नों में से एक प्रश्न यह है कि क्या बीसीआई बार में वकालत जारी रखने के लिए पात्रता की शर्त के रूप में किसी वकील के नामांकन के बाद परीक्षा निर्धारित करने के लिए सक्षम है और क्या सुदीर बनाम बीसीआई मामले में नामांकन से पहले प्रशिक्षण देने को विधिज्ञ परिषद की क्षमता से परे करार देने के न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने देश में वकीलों की आवश्यक संख्या को लेकर संभवत: भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) द्वारा अध्ययन किए जाने का समर्थन करते हुए सवाल किया कि क्या इस संबंध में देश में पहले कोई अध्ययन किया गया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस अध्ययन से यह पता करने में मदद मिलेगी कि लंबित मामलों के निपटारे के लिए कितने वकीलों की आवश्यकता है और देश भर की अदालतें कितने मामलों की सुनवाई कर सकती हैं.

न्यायालय ने सवाल किया, 'देश को कितने वकीलों की आवश्यकता है?' उसने साथ ही कहा कि कई वकीलों के पास कोई ठोस काम नहीं है. न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति ए एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि देश में वकीलों की संख्या बहुत अधिक है या कम है, यह पता करने के लिए अध्ययन की आवश्यकता है.

पीठ ने कहा, 'संभवत: विधिज्ञ परिषद या किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा अध्ययन करने की आवश्यकता है, ताकि लंबित मामलों को देखा जा सके... ताकि यह देखा जा सके कि भारत में अदालतें कितने मामलों की सुनवाई करने में सक्षम हैं, वहां वकीलों की इष्टतम संख्या क्या होनी चाहिए.'

पीठ अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत नामांकन से पूर्व परीक्षा निर्धारित करने की बीसीआई की क्षमता से जुड़े सवाल समेत कई सवालों पर विचार कर रही थी. इन सवालों को पांच सदस्यीय पीठ के पास विचार के लिए भेजा गया था.

सुनवाई के दौरान जब खासकर ग्रामीण या जिला या तालुका स्तर पर वकीलों की आय का मामला सामने आया, तो पीठ ने कहा कि इस प्रकार के अध्ययन से विधिज्ञ परिषद को परीक्षा का स्तर तय करने में भी मदद मिल सकती है. शीर्ष अदालत ने कहा, 'तो, आदर्श रूप से, यदि काम को यथोचित किया जाता है, तो प्रणाली की मदद के लिए आपको कितने वकीलों की आवश्यकता है.'

उसने कहा, 'क्या आसान स्तर की परीक्षा की आवश्यकता है? क्या ऐसी परीक्षा की आवश्यकता है, जिसमें कठिनाई का स्तर थोड़ा अधिक हो? यह पता करने में उस आंकड़े से मदद मिल सकती है, तो (अध्ययन के बाद) संभवत: आपके पास होगा.'

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के देश के शीर्ष विधि अधिकारी बनने से पहले शीर्ष अदालत ने उन्हें इस मामले में न्यायमित्र के तौर पर सहायता करने को कहा था. वेणुगोपाल ने कहा कि एक के बाद एक पारित हुए अधिनियम, मामले में बनाई गई समितियां और विधि आयोग की रिपोर्ट कहती है कि परीक्षा आवश्यक है. वेणुगोपाल ने यह भी उल्लेख किया कि कैसे कई विधि महाविद्यालयों की मान्यता पहले रातों रात वापस ले ली गई थी. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि ये महाविद्यालय उच्च स्तर के नहीं थे.

वेणुगोपाल ने कहा कि विधि महाविद्यालयों को न्यूनतम समान मानक बनाए रखने होंगे. मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी. शीर्ष अदालत ने मार्च 2016 में कहा था कि उठाए गए प्रश्नों में से एक प्रश्न यह है कि क्या बीसीआई बार में वकालत जारी रखने के लिए पात्रता की शर्त के रूप में किसी वकील के नामांकन के बाद परीक्षा निर्धारित करने के लिए सक्षम है और क्या सुदीर बनाम बीसीआई मामले में नामांकन से पहले प्रशिक्षण देने को विधिज्ञ परिषद की क्षमता से परे करार देने के न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.

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