उदयपुर. झीलों की नगरी उदयपुर में नवरात्रि को लेकर तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो चुकी हैं. ऐसे में बाजार सजने के साथ अब माता रानी की मूर्तियां भी अलग-अलग स्थान पर तैयार की जा रही हैं. इस बार इको फ्रेंडली मूर्तियां बड़ी संख्या में बनाई जा रही हैं. जिसे बनाने के लिए कोलकाता से कारीगर आए हैं. इसमें खास बात यह है कि मूर्तियों को बनाने के लिए मिट्टी भी कोलकाता से लाई गई है. इसके अलावा मूर्तियों की सजावट के लिए आभूषण तक बंगाल से ले गए हैं.
उदयपुर में बंगाल के कारीगर बना रहे मूर्तियां: शहर के बंग भवन बंगाल से कारीगर मूर्तियां बनाने में जुड़े हुए हैं. खासतौर पर ऑर्डर के अनुसार अलग-अलग आकार की मूर्तियों को बनाया जा रहा है. पिछले तीन महीने से मूर्ति बनाने में मूर्तिकार जुटे हुए हैं. फिलहाल यह काम अंतिम चरण में है. मूर्ति की सजावट के लिए कारीगर विशेष तौर से कोलकाता से गंगा की मिट्टी लेकर आए हैं. इसी से माता रानी की मूर्ति बनाई जा रही है. हालांकि इस मिट्टी में उदयपुर में पाई जाने वाली मिट्टी का उपयोग किया जा रहा है.
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मूर्तिकार मुकेश ने बताया कि इस बार 10 फीट ऊंची एक विशेष मूर्ति भी बनाई जा रही है. उन्होंने बताया मूर्ति बनाने से पहले लकड़ी का ढांचा खड़ा किया जाता है. फिर इस पर घास-फूंस, सुतली और लोकल मिट्टी से लेप किया जाता है. बाद में बंगाल की विशेष मिट्टी से इसे फाइनल फिनिशिंग दी जाती है. बंगाल की मिट्टी चिकनी और चिपचिपी होती है. प्रतिमा पर इसका लेप चढ़ाने के सूखने के बाद भी इसमें दरार नहीं आती. मिट्टी सूखने के बाद इस पर कपड़ा है. चढ़ाया जाता है और वॉटर कलर से फिर मूर्ति को रंगों इसे रंगते हैं. आखिरी के 8 दिनों में दिन-रात बांस लगाकर कारीगर मूर्ति को गहने से सजाते हैं.
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10 फीट ऊंची माता रानी की मूर्ति: मूर्तिकार अलग-अलग मूर्तियों को बना रहे हैं. हालांकि इस दौरान एक 10 फीट की ऊंची विशेष माता रानी की मूर्ति भी बनाई जा रही है. यह मूर्तियां इको फ्रेंडली हैं. मूर्ति पर माता रानी अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान दिखाई दे रही है. हालांकि यह मूर्ति अभी फिलहाल बन रही है. मूर्तिकार बताते हैं कि बनने के बाद काफी खूबसूरत दिखाई देगी. फिलहाल 2 फीट से लेकर 10 फीट ऊंची मूर्ति बनाई जा रही है.
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मूर्तिकार ने बताया कि 14 हजार से लेकर 50 हजार रुपए तक की मूर्तियां बना रहे हैं. मूर्तियां खरीदने पहुंच रहे लोगों ने बताया कि इको फ्रेंडली मूर्ति के कारण जहां एक और नदी का पानी दूषित नहीं होता है, तो दूसरी ओर यह मूर्तियां जल्दी पानी में गल जाती हैं. इसके कारण पर्यावरण का नुकसान भी नहीं होता है. मूर्तिकारों ने बताया कि यहां से बनाई गई मूर्तियों उदयपुर संभाग के अलग-अलग जिलों में जाती है.