पटनाः आज से पितृपक्ष की शुरुआत हो गयी है. बिहार के पटना से सटे मसौढ़ी का पुनपुन नदी घाट पर लोग अपने पूर्वजों को पिंडदान कर रहे हैं. मान्यता है कि यहां कभी भगवान श्रीराम ने माता जानकी के साथ आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था. तभी से पुनपुन घाट को पिंडदान का प्रथम द्वारा कहा जाता है. इसको लेकर प्रत्येक साल जिला प्रशासन की ओर से अंतर्राष्ट्रीय पितृपक्ष मेला का आयोजन किया जाता है.
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अंतरराष्ट्रीय मेला लगता हैः इस बार 28 सितंबर से 14 अक्टूबर तक मेला का आयोजन किया जा रहा है. पूर्वजों की आत्मा के शांति के लिए पिंडदान के लिए पुनपुन घाट की ख्याति को देखते हुए जिला प्रशासन ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर की मान्यता प्रदान की है. पदम गरुर पुराणों में यह चर्चा है कि पुनपुन नदी घाट पर भगवान श्रीराम माता जानकी के साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किए थे.
54 वेदी में प्रथम वेदी पुनपुन मेंः यहां पिंडदान करने के बाद भगवान ने गया के फल्गु नदी पर पूरे विधि विधान के साथ पिंडदान किया था. ऐसी मान्यता है कि पिंड का पहला तर्पण पुनपुन नदी घाट पर किया जाना चाहिए. इसके बाद ही 54 वेदी वाले गया, जिसे मोक्ष की धरती कहते हैं, वहां पूरे विधि विधान से पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है. इसके बारे में यहां के पांडा समिति सदस्य ने भी खास जानकारी दी.
"इसे इसलिए पहला द्वार माना जाता है कि यहां भगवान राम पहली बार अपने पिता दशरथ जी का पिंडदान करने के लिए पहुंचे थे. यहां पिंडदान करने के बाद ही गया के लिए प्रस्थान किए थे. इसलिए मुक्ति का मुख्य द्वार पुनपुन को माना गया है." -रिंकू पांडे, पुनपुन पांडा समिति सदस्य
देश विदेश से आते हैं लोगः पुनपुनघाट के पांडा समिति के अध्यक्ष की मानें तो पुनपुन ही पिंडदान का प्रथम द्वारा है. ऐसे में प्रत्येक वर्ष जिला प्रशासन द्वारा पुनपुन अंतरराष्ट्रीय पितृपक्ष मेला का आयोजन किया जाता है. उन्होंने बताया कि जो गया में श्राद्ध करते हैं, वे यहीं से पितरों का आह्वान करते हैं. सनातन धर्म मानने वाले देश-विदेश से लोग पिंडदान करने के लिए पहुंचते हैं.
"सनातन धर्म मानने के वाले सभी लोग यहां अपने पितरों का पिंडदान करने के लिए आते हैं, क्योंकि यहां गया का प्रथम वेदी है. गरुरपुराण में इसकी चर्चा है. जो लोग गया में श्राद्ध करते हैं, वे पितरों का आह्वान पुनपुन से ही करते हैं." -सुदामा पांडे, अध्यक्ष, पुनपुन पांडा समिति