नई दिल्ली : भारत-पाकिस्तान बॉर्डर स्थित बाड़मेर जिले में गुरुवार रात करीब 9 बजकर 10 मिनट पर भारतीय वायु सेना का लड़ाकू विमान मिग 21 क्रैश (Mig 21 crash in barmer) हो गया. हवा में ही टू सीटर मिग 21 बाइसन विमान में आग लग गई. कुछ ही सेकेंड में दो IAF पायलट- विंग कमांडर मोहित राणा और फ्लाइट लेफ्टिनेंट अद्वितीय बल की मौत हो गई.
हालांकि IAF ने अभी तक मिग -21 दुर्घटनाओं में मारे गए कुल पायलटों की संख्या की जानकारी देने से इनकार किया है, लेकिन माना जाता है कि अब तक लगभग 200 IAF पायलट अपनी जान गंवा चुके हैं. 1963 में रूसी मूल के विमान को भारतीय वायुसेना में शामिल किए गया था. गुरुवार की दुर्घटना के साथ ही अब तक कुल 293 मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं. यानी बेड़े में शामिल 946 मिग-21 में से 30.97 फीसदी विमान हादसे का शिकार हो चुके हैं, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कितने खतरनाक हैं. शुरुआती मिग-21 रूस से खरीदे गए थे, बाद में आधे से अधिक भारत में लाइसेंस-उत्पादित किए गए थे.
मिग 21 का गुरुवार को हादसे का शिकार होना इस साल की पहली घटना थी. 2021 में छह मिग -21 दुर्घटनाएं हुई थीं. 24 दिसंबर, 2021 को राजस्थान के जैसलमेर में पायलट विंग कमांडर हर्षित सिन्हा की मौत हुई थी. भारतीय वायुसेना के लिए 1999 सबसे खराब साबित हुआ था. कारगिल युद्ध के दौरान 16 मिग 21 दुर्घटनाग्रस्त हुए थे. कारगिल से पहले पाकिस्तान से बांग्लादेश की मुक्ति के लिए 1971 में हुए युद्ध में 11 विमान नष्ट हुए थे.
2016 में रक्षा मंत्रालय द्वारा की गई एक आंतरिक ऑडिट रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया था कि '1970 से मिग -21 दुर्घटनाओं में 170 से अधिक भारतीय पायलट और 40 नागरिक मारे गए हैं.' रिपोर्ट में कैनोपी डिज़ाइन सहित विभिन्न संरचनात्मक दोषों की पहचान की गई थी. ये भी सामने आया था कि इसकी डिजाइन रनवे के साथ दृश्य संपर्क को बाधित करती है. सिंगल-इंजन मिग -21 में बर्ड हिट और इंजन में खराबी के मामले भी सामने आए हैं.
1991 में यूएसएसआर के पतन के बाद दुर्घटनाओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है. 1991-2005 तक करीब 15 साल में 40 प्रतिशत से अधिक या 119 विमान बेड़े वास्तव में दुर्घटनाग्रस्त हो गए. रक्षा मंत्रालय की आंतरिक ऑडिट रिपोर्ट इसे इस प्रकार समझाती है. 'इसका मुख्य कारण यह था कि यूएसएसआर के पतन के बाद एमआईजी रूसी निगम से पुर्जे और अन्य महत्वपूर्ण उपकरण नहीं आ रहे थे ... मिग के लिए कल-पुर्जों की आपूर्ति करने के लिए आईएएफ को सीआईएस देशों और एचएएल (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) पर निर्भर रहना पड़ा.'
सोवियत काल के रूसी मूल के विमान की मुख्य तकनीक 1950 के दशक की है. मिग-21 को 1990 के दशक में IAF से चरणबद्ध तरीके से बाहर कर दिया गया था. बाद में इसे अपग्रेड किया गया और इसे 'बाइसन' (Bison) के रूप में पेश किया गया. वर्तमान में IAF मिग -21 'बाइसन' विमान के चार स्क्वाड्रन संचालित कर रहा है, जिसमें प्रत्येक स्क्वाड्रन में 16-18 विमान हैं. ये पांच साल से कम समय में अपनी संचालन क्षमता के अंत के करीब हैं. एक स्क्वाड्रन दो महीने से कम समय में सेवानिवृत्त होने वाली है. शेष तीन स्क्वाड्रन लगभग तीन वर्षों में सेवानिवृत्त होने की उम्मीद है.
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