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विजय दिवसः 1971 के युद्ध में उत्तराखंड के 5 भाइयों ने मनवाया था लोहा, सुनिए रणबांकुरे की जुबानी - indian army corps

1971 की जंग में देहरादून के 5 कुकरेती भाई भी शामिल थे. हालांकि 4 भाई अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन छोटे भाई रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल राकेश कुकरेती आज भी रणबांकुरों की शौर्य की गाथा को बड़े जोश के साथ सुनाते हैं. आज भी उन्हें युद्ध के एक एक पल की घटना मुंह जुबानी याद है.

विजय दिवस
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Published : Dec 16, 2022, 7:12 PM IST

1971 के युद्ध में उत्तराखंड के 5 भाइयों ने मनवाया था लोहा

देहरादूनः भारत-पाकिस्तान युद्ध जो 16 दिसंबर 1971 को भारत ने जीता था, उसकी याद में हर साल 16 दिसंबर को भारत में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस युद्ध की कहानी देहरादून के एक फौजी परिवार से भी जुड़ती है. डिफेंस कॉलोनी में रहने वाले शौर्य चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल राकेश कुकरेती उस खुशकिस्मत सैनिक परिवार से हैं, जिनमें उनके साथ ही परिवार के पांच भाई 1971 के युद्ध के हिस्सा थे. यह एक संयोग था या इतिहास में दर्ज होने वाला एक सौभाग्य, जहां कुकरेती परिवार के तीन भाई राजपूत रेजिमेंट में थे. जबकि दो भाई EME (Indian Army Corps of EME) में सेवारत थे. लेकिन ये सभी 5 भाई 1971 भारत-पकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना के साथ विजय पताका लहराकर अपने देश लौटे.

1971 युद्ध में शामिल कुकरेती परिवार के चार भाई सेना से रिटायर्ड होने बाद मेजर जगदीश प्रसाद कुकरेती, मेजर जनरल पीएल कुकरेती, मेजर जनरल नायक सूबेदार सोहनलाल कुकरेती और मेजर धर्मलाल कुकरेती आज इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन पांचवें भाई रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल राकेश कुकरेती 1971 युद्ध की वीर गाथा के आज भी साक्षी हैं.

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सिलहट विजय के बाद जवानों की तस्वीर.

कहानी 1971 कीः शौर्य चक्र समेत 5 वीरता पुरस्कारों के साथ कई तरह के मेडल प्राप्त करने वाले रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल राकेश कुकरेती 1971 युद्ध की दास्तां सुनाते हुए बताते हैं कि उस दौरान पाकिस्तान की मुक्ति वाहिनी पूरी तरह ट्रेंड होकर बांग्लादेश की तरफ से भारत की तरफ आ रही थी. सबसे पहले हम धर्मनगर आए. दस ग्राम में हमारा कैंप लगा. पाक सेना हमारी रेलवे लाइन को टाइम टू टाइम विस्फोट कर हमारी रसद सामग्री को खत्म कर रही थी. ताकि युद्ध में सेना आगे न बढ़ सके. लेकिन जैसे इस बात का पता चला भारतीय सेना ने उनके इरादों को नेस्तनाबूद कर उन्हें इस इलाके से खत्म कर दिया.

...जब होने लगी युद्ध का सुगबुगाहटः 27, 28 नवंबर 1971 में इस बात का एहसास हो गया था कि युद्ध होने वाला है. इसके बाद 1 दिसंबर 1971 को पाक का इंटेलिजेंस सूबेदार पकड़ा गया. उससे खुलासा हुआ कि हमारे यहां (भारत में पाक के खबरी) कौन कौन गद्दार हैं जो उन्हें जानकारी देते हैं. उस सबूत के आधार पर अपने यहां भितरघात करने वालों को गिरफ्तार किया गया. दस ग्राम इलाके से आगे रेकी करने फौज आगे निकली.

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बांग्लादेश युद्ध में 6 राजपूत के कमांडिंग ऑफिसर ले. कर्नल हरदेव सिंह.
ये भी पढ़ेंः1971 में जिस झंडे के साथ पाकिस्तान ने किया था सरेंडर, IMA देहरादून में है मौजूद

युद्ध के तैयार हुई सेनाः बांग्लादेश के तत्कालीन कर्नल जियाउर रहमान और अपने ब्रिगेडियर कमांड के साथ काम करने के अनुभव साक्षा करते हुए राकेश कुकरेती बताते हैं कि वह इंटेलिजेंस की तरह दुश्मन के इलाकों का पता लगाने आगे बढ़े और पाकिस्तान एरिया में दुश्मनों की तैनाती की जानकारी उन्होंने अपनी ब्रिगेड तक पहुंचाई. दिसंबर में युद्ध की पूरी तैयारी और सामान तैयार हो चुका था. बॉर्डर की तरफ सेना निकल चुकी थी.

पाक एरिया में रेकीः एक डेढ़ घंटे के अंदर बॉर्डर क्रॉस करने के बाद अपने एक बड़े सैनिक को हमने पाकिस्तान के एरिया में भेज दिया. जहां से हमें पल-पल की जानकारी मिल रही थी. उन्हें कमांडर की तरफ से लगातार दुश्मनों की रेकी करने के लिए आगे भेजा जाता था. जिसको वह बखूबी निभाकर अपने कमांडर को बताते और इसी क्रम में उन्होंने गाजीपुर इलाके में फैले पाकिस्तानी फौज की जानकारी भी अपने कमांडर को दी.

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सूरमा नदी के पुल पर कैप्टन चिलम्बी समेत अन्य जवान.

कैजुअल्टी बढ़ी तो पीछे किए कदमः देश के हाईकमान से हुकुम मिला कि अब गाजीपुर की तरफ हमला करना है. हालांकि हमारे पास पर्याप्त असलहा बारूद नहीं था. इसके बावजूद हम हिम्मत के साथ आगे बढ़ते रहे. गाजीपुर में रात को हमला कर दिया. इस दौरान हमारी काफी कैजुअल्टी हुई. लेकिन इसी बीच कमांडेंट ने भारतीय सेना की अधिक कैजुअल्टी को देखते हुए वापस आने का हुक्म दिया. ताकि कैजुअल्टी के लोग पाकिस्तान के हाथ ना पड़ सकें.

अगले दिन फिर हमलाः एक दिन बाद ही फिर भारतीय फौज गाजीपुर की तरफ शक्ति के साथ आगे बढ़ी. एक ही दिन में गाजीपुर इलाके में तैनात पाकिस्तानी फौज को नेस्तनाबूद कर उनकी पोस्ट में कब्जा कर लिया. कर्नल कुकरेती बताते हैं कि 3 दिन तक वह बिना खाए पिए 93 किलोमीटर के इस युद्ध के मैदान में चलते रहे. चौथे दिन में उन्हें थोड़ा सा आराम मिला. लेकिन युद्ध चलता रहा. इस बीच वह जहां रुके थे वहां सैकड़ों की तादाद में गोला बारूद गिरे थे. लेकिन वो खुश किस्मत थे कि बच निकले और युद्ध में आगे बढ़ते रहे.

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जकीगंज पर कब्जे के बाद कोर कमांडर ले. जनरल सगत सिंह और डिविजन कमांडर मेजर जनरल केवी कृष्णा राव.
ये भी पढ़ेंः लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलिता ने पहली बार तवांग मुद्दे विजय दिवस 2022 पर टिप्पणी की

5 दिन बाद खाया फ्रेश खानाः कर्नल कुकरेती बताते हैं कि भारतीय सेना जब पाकिस्तान के क्लोरा इलाके में पहुंची तो पाकिस्तान की फौज वापस भाग रही थी. इलाके में एक पुल था जिसे पाकिस्तान ने उड़ा दिया, ताकि भारतीय सेना आगे न बढ़ सके. युद्ध के 5 दिन बाद फ्रेस खाना खाया और अपने आप को फिर से आगे के लिए तैयार किया. इसके बाद पाकिस्तान के हलाई चारा स्टेट इलाके में पहुंचे तो पता चला कि यहां पाकिस्तान के कुछ सैनिक धूप सेंक रहे हैं. उनके हथियार उनसे दूर ट्रेंच में पड़े हैं. भारतीय फौज ने जब यह नजारा देखा तो उनके ऊपर सीधा ताबड़तोड़ हमला कर दिया. कर्नल हरदीप सिंह इस युद्ध का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने फौज को आगे बढ़ाते हुए पाकिस्तान की दिशा में पोजीशन करने के लिए कहा.

बंगले में छुपे थे दुश्मन सैनिक: इसी इलाके में एक पाकिस्तानी कैप्टन का बंगला था. उसके अंदर एक हिंदू परिवार बच्चों के साथ बाहर निकला. परिवार ने हाथ ऊपर उठाते हुए भारतीय फौज से रहम की अपील की. भारतीय फौज ने परिवार से पूछा कि यहां कोई दुश्मन तो नहीं. उन्होंने कहा नहीं कोई नहीं है. जैसे ही इस स्थान से भारतीय फौज हटी थोड़ी देर बाद ही 3 पाक सैनिक इसी बंगला से भागते हुए नजर आए. कर्नल कुकरेती बताते हैं कि इस बात को विश्वासघात समझते हुए उन्हें इतना गुस्सा आया कि उन्होंने सीधा अपना हथियार बंगले के हिंदू परिवार पर तान दिया. लेकिन युद्ध को कमांड कर रहे कर्नल हरदीप सिंह ने उन्हें हुकुम देते हुए परिवार को छोड़ देने की बात कही. कर्नल कुकरेती ने हुकुम का पालन करते हुए उन्हें छोड़ दिया.

थोड़ी देर बाद युद्ध के कमांडर कर्नल हरदीप ने बताया कि ऐसा उस परिवार ने इसलिए किया क्योंकि उनके बच्चे पाक फौज ने बंधक बनाए हुए थे. इसके बाद अगली सुबह भारतीय फौज को ढाका पहुंचने का आदेश आया. भारतीय फौज गाड़ियों में भरकर अगली सुबह ढाका पहुंची. जहां बांग्लादेश जनता ने उन्हें गले लगाते हुए मालाओं से उनका दिल से स्वागत किया. जिसे देखकर भारतीय फौज बेहद खुश नजर आई.

सिलहट पर कब्जाः कर्नल कुकरेती बताते हैं कि हमारा अगला टास्क पाकिस्तान का "सिलहट" तक कब्जा करके हमें विजय हासिल करनी थी. लेकिन यहां कब्जा करने से पहले फौज वापस पाकिस्तान के इलाके हलाई चारा वापस आई और फिर से पूरा असलहा बारूद और सोच की नई तैयारी के साथ फेंचुगंज पोस्ट इलाके में पहुंची. जहां से पाक सेना पहले ही भाग गई थी. इस इलाके को भारतीय फौज ने कब्जे में लिया. इसके बाद अंतिम कब्जे का पड़ाव था "सिलहट". इस इलाके में पहले से ही हमारी गोरखा रेजीमेंट की फौज पहुंच चुकी थी.
ये भी पढ़ेंः जम्मू-कश्मीर के राजौरी में आतंकी हमला, दो नागरिकों की मौत

दुश्मन की गोली से मेजर शहीदः 14 दिसंबर को भारतीय एयरफोर्स ने सिलहट इलाके में जबरदस्त गोलाबारी की. जिससे पाकिस्तान के कई संख्या में सैनिक मारे गए. इस दौरान पाकिस्तान की गोलियों से मेजर एसपी सिंह शहीद हो गए. इस घटना के बाद भारतीय सेना के अंदर ऐसा गुस्सा और आक्रोश पैदा हुआ कि पूरी फौज एक बड़ी ताकत के साथ सिलहट पहुंची. वहां भारतीय फौज ने एक तरफा पाकिस्तानी फौज पर जमीन और आसमान से गोलाबारी करते हुए पाक फौज को एक-एक करके खत्म किया. इस दौरान जो पाकिस्तानी फौज सरेंडर कर रही थी उसको भी मौत के घाट उतार दिया गया. भारतीय फौज के अंदर अपने मेजर की मौत का इतना बड़ा आक्रोश था कि पाक सैनिक को ढूंढ ढूंढकर खत्म किया.

पाक सेना ने किया सरेंडरः 14 दिसंबर 15 दिसंबर को पाकिस्तानी फौज की कंपनी और बटालियन को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. इसके बाद भारतीय फौज ने पाकिस्तानी इलाके में चेतावनी देते हुए सरेंडर करने की बात कही. लेकिन पाकिस्तानी फौज नहीं मानी तो भारत में फिर आगे बढ़ने की चेतावनी देते हुए सरेंडर करने की दूसरी हिदायत दी. इसके बाद वहां मौजूद पाकिस्तान फौज के 22 बलूच के कमांडेंट सहित सैकड़ों पाक सैनिकों ने हथियारों के साथ सरेंडर किया.

कुकरेती परिवार की बहू ने लिखी बुकः भारत-पाकिस्तान 1971 युद्ध में शामिल वॉर वॉरियर्स के कुकरेती परिवार की बहू इरा कुकरेती ने इस पूरे युद्ध के शौर्य की कहानी को संजोते हुए 'कहानी 1971 युद्ध की' किताब भी लिखी है. रिटायर्ड कर्नल राकेश कुकरेती की पत्नी इरा कुकरेती बताती हैं कि जब भी युद्ध चला, तब से ही उनके जहन में कई तरह की बातें युद्ध के दौरान भारतीय सेना को लेकर आती थीं. उनके मन में हमेशा से यह चाहत थी कि इस युद्ध की एक कहानी खुद एक किताब के रूप में लिखूं. समय बीतता गया और आखिरकार कोरोना काल में उन्हें यह मौका मिला, जब उन्होंने 'कहानी 1971 युद्ध की' किताब को लिखा.

किताब में योद्धाओं की जुबानी कहानीः इरा कुकरेती के मुताबिक उनके पति राकेश कुकरेती सहित परिवार में ही पांच भाइयों ने 1971 के युद्ध को भारतीय सेना के साथ बड़े साहस के साथ विजय के रूप में हासिल किया. सबसे पहले उन्होंने गरीब परिवार के लोगों से ही युद्ध के वह सभी महत्वपूर्ण पलों को जानते हुए अपनी किताब में उनको जगा दी. इसके बाद उन्होंने 6 राजपूत रेजीमेंट के फाउंडिंग डे जो मेरठ में मनाया गया था, वहां जाकर अधिकांश 1971 वॉरियर्स अधिकारियों और जवानों से मिलकर उनकी जुबान से युद्ध की कहानी की बातें अपनी किताब में लिखी.
ये भी पढ़ेंः 1962 का युग नहीं, यह पीएम मोदी का युग है: सीएम पेमा खांडू

इतना ही नहीं, उस युद्ध के दौरान कई ऐसे महत्वपूर्ण जो फोटोग्राफ के रूप में कैद हुए थे. उन्हें भी अपनी किताब में जगह दी. इरा कुकरेती को इस बात की बेहद खुशी है कि 1971 के युद्ध में जिस तरह से भारतीय सेना ने विजय पताका लहराते हुए देश की आन बान और शाम को कायम रख जटिल दौर में यह युद्ध जीता. वह देशवासियों के लिए बेहद गौरव की बात है.

1971 के युद्ध में उत्तराखंड के 5 भाइयों ने मनवाया था लोहा

देहरादूनः भारत-पाकिस्तान युद्ध जो 16 दिसंबर 1971 को भारत ने जीता था, उसकी याद में हर साल 16 दिसंबर को भारत में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस युद्ध की कहानी देहरादून के एक फौजी परिवार से भी जुड़ती है. डिफेंस कॉलोनी में रहने वाले शौर्य चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल राकेश कुकरेती उस खुशकिस्मत सैनिक परिवार से हैं, जिनमें उनके साथ ही परिवार के पांच भाई 1971 के युद्ध के हिस्सा थे. यह एक संयोग था या इतिहास में दर्ज होने वाला एक सौभाग्य, जहां कुकरेती परिवार के तीन भाई राजपूत रेजिमेंट में थे. जबकि दो भाई EME (Indian Army Corps of EME) में सेवारत थे. लेकिन ये सभी 5 भाई 1971 भारत-पकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना के साथ विजय पताका लहराकर अपने देश लौटे.

1971 युद्ध में शामिल कुकरेती परिवार के चार भाई सेना से रिटायर्ड होने बाद मेजर जगदीश प्रसाद कुकरेती, मेजर जनरल पीएल कुकरेती, मेजर जनरल नायक सूबेदार सोहनलाल कुकरेती और मेजर धर्मलाल कुकरेती आज इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन पांचवें भाई रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल राकेश कुकरेती 1971 युद्ध की वीर गाथा के आज भी साक्षी हैं.

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सिलहट विजय के बाद जवानों की तस्वीर.

कहानी 1971 कीः शौर्य चक्र समेत 5 वीरता पुरस्कारों के साथ कई तरह के मेडल प्राप्त करने वाले रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल राकेश कुकरेती 1971 युद्ध की दास्तां सुनाते हुए बताते हैं कि उस दौरान पाकिस्तान की मुक्ति वाहिनी पूरी तरह ट्रेंड होकर बांग्लादेश की तरफ से भारत की तरफ आ रही थी. सबसे पहले हम धर्मनगर आए. दस ग्राम में हमारा कैंप लगा. पाक सेना हमारी रेलवे लाइन को टाइम टू टाइम विस्फोट कर हमारी रसद सामग्री को खत्म कर रही थी. ताकि युद्ध में सेना आगे न बढ़ सके. लेकिन जैसे इस बात का पता चला भारतीय सेना ने उनके इरादों को नेस्तनाबूद कर उन्हें इस इलाके से खत्म कर दिया.

...जब होने लगी युद्ध का सुगबुगाहटः 27, 28 नवंबर 1971 में इस बात का एहसास हो गया था कि युद्ध होने वाला है. इसके बाद 1 दिसंबर 1971 को पाक का इंटेलिजेंस सूबेदार पकड़ा गया. उससे खुलासा हुआ कि हमारे यहां (भारत में पाक के खबरी) कौन कौन गद्दार हैं जो उन्हें जानकारी देते हैं. उस सबूत के आधार पर अपने यहां भितरघात करने वालों को गिरफ्तार किया गया. दस ग्राम इलाके से आगे रेकी करने फौज आगे निकली.

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बांग्लादेश युद्ध में 6 राजपूत के कमांडिंग ऑफिसर ले. कर्नल हरदेव सिंह.
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युद्ध के तैयार हुई सेनाः बांग्लादेश के तत्कालीन कर्नल जियाउर रहमान और अपने ब्रिगेडियर कमांड के साथ काम करने के अनुभव साक्षा करते हुए राकेश कुकरेती बताते हैं कि वह इंटेलिजेंस की तरह दुश्मन के इलाकों का पता लगाने आगे बढ़े और पाकिस्तान एरिया में दुश्मनों की तैनाती की जानकारी उन्होंने अपनी ब्रिगेड तक पहुंचाई. दिसंबर में युद्ध की पूरी तैयारी और सामान तैयार हो चुका था. बॉर्डर की तरफ सेना निकल चुकी थी.

पाक एरिया में रेकीः एक डेढ़ घंटे के अंदर बॉर्डर क्रॉस करने के बाद अपने एक बड़े सैनिक को हमने पाकिस्तान के एरिया में भेज दिया. जहां से हमें पल-पल की जानकारी मिल रही थी. उन्हें कमांडर की तरफ से लगातार दुश्मनों की रेकी करने के लिए आगे भेजा जाता था. जिसको वह बखूबी निभाकर अपने कमांडर को बताते और इसी क्रम में उन्होंने गाजीपुर इलाके में फैले पाकिस्तानी फौज की जानकारी भी अपने कमांडर को दी.

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सूरमा नदी के पुल पर कैप्टन चिलम्बी समेत अन्य जवान.

कैजुअल्टी बढ़ी तो पीछे किए कदमः देश के हाईकमान से हुकुम मिला कि अब गाजीपुर की तरफ हमला करना है. हालांकि हमारे पास पर्याप्त असलहा बारूद नहीं था. इसके बावजूद हम हिम्मत के साथ आगे बढ़ते रहे. गाजीपुर में रात को हमला कर दिया. इस दौरान हमारी काफी कैजुअल्टी हुई. लेकिन इसी बीच कमांडेंट ने भारतीय सेना की अधिक कैजुअल्टी को देखते हुए वापस आने का हुक्म दिया. ताकि कैजुअल्टी के लोग पाकिस्तान के हाथ ना पड़ सकें.

अगले दिन फिर हमलाः एक दिन बाद ही फिर भारतीय फौज गाजीपुर की तरफ शक्ति के साथ आगे बढ़ी. एक ही दिन में गाजीपुर इलाके में तैनात पाकिस्तानी फौज को नेस्तनाबूद कर उनकी पोस्ट में कब्जा कर लिया. कर्नल कुकरेती बताते हैं कि 3 दिन तक वह बिना खाए पिए 93 किलोमीटर के इस युद्ध के मैदान में चलते रहे. चौथे दिन में उन्हें थोड़ा सा आराम मिला. लेकिन युद्ध चलता रहा. इस बीच वह जहां रुके थे वहां सैकड़ों की तादाद में गोला बारूद गिरे थे. लेकिन वो खुश किस्मत थे कि बच निकले और युद्ध में आगे बढ़ते रहे.

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जकीगंज पर कब्जे के बाद कोर कमांडर ले. जनरल सगत सिंह और डिविजन कमांडर मेजर जनरल केवी कृष्णा राव.
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5 दिन बाद खाया फ्रेश खानाः कर्नल कुकरेती बताते हैं कि भारतीय सेना जब पाकिस्तान के क्लोरा इलाके में पहुंची तो पाकिस्तान की फौज वापस भाग रही थी. इलाके में एक पुल था जिसे पाकिस्तान ने उड़ा दिया, ताकि भारतीय सेना आगे न बढ़ सके. युद्ध के 5 दिन बाद फ्रेस खाना खाया और अपने आप को फिर से आगे के लिए तैयार किया. इसके बाद पाकिस्तान के हलाई चारा स्टेट इलाके में पहुंचे तो पता चला कि यहां पाकिस्तान के कुछ सैनिक धूप सेंक रहे हैं. उनके हथियार उनसे दूर ट्रेंच में पड़े हैं. भारतीय फौज ने जब यह नजारा देखा तो उनके ऊपर सीधा ताबड़तोड़ हमला कर दिया. कर्नल हरदीप सिंह इस युद्ध का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने फौज को आगे बढ़ाते हुए पाकिस्तान की दिशा में पोजीशन करने के लिए कहा.

बंगले में छुपे थे दुश्मन सैनिक: इसी इलाके में एक पाकिस्तानी कैप्टन का बंगला था. उसके अंदर एक हिंदू परिवार बच्चों के साथ बाहर निकला. परिवार ने हाथ ऊपर उठाते हुए भारतीय फौज से रहम की अपील की. भारतीय फौज ने परिवार से पूछा कि यहां कोई दुश्मन तो नहीं. उन्होंने कहा नहीं कोई नहीं है. जैसे ही इस स्थान से भारतीय फौज हटी थोड़ी देर बाद ही 3 पाक सैनिक इसी बंगला से भागते हुए नजर आए. कर्नल कुकरेती बताते हैं कि इस बात को विश्वासघात समझते हुए उन्हें इतना गुस्सा आया कि उन्होंने सीधा अपना हथियार बंगले के हिंदू परिवार पर तान दिया. लेकिन युद्ध को कमांड कर रहे कर्नल हरदीप सिंह ने उन्हें हुकुम देते हुए परिवार को छोड़ देने की बात कही. कर्नल कुकरेती ने हुकुम का पालन करते हुए उन्हें छोड़ दिया.

थोड़ी देर बाद युद्ध के कमांडर कर्नल हरदीप ने बताया कि ऐसा उस परिवार ने इसलिए किया क्योंकि उनके बच्चे पाक फौज ने बंधक बनाए हुए थे. इसके बाद अगली सुबह भारतीय फौज को ढाका पहुंचने का आदेश आया. भारतीय फौज गाड़ियों में भरकर अगली सुबह ढाका पहुंची. जहां बांग्लादेश जनता ने उन्हें गले लगाते हुए मालाओं से उनका दिल से स्वागत किया. जिसे देखकर भारतीय फौज बेहद खुश नजर आई.

सिलहट पर कब्जाः कर्नल कुकरेती बताते हैं कि हमारा अगला टास्क पाकिस्तान का "सिलहट" तक कब्जा करके हमें विजय हासिल करनी थी. लेकिन यहां कब्जा करने से पहले फौज वापस पाकिस्तान के इलाके हलाई चारा वापस आई और फिर से पूरा असलहा बारूद और सोच की नई तैयारी के साथ फेंचुगंज पोस्ट इलाके में पहुंची. जहां से पाक सेना पहले ही भाग गई थी. इस इलाके को भारतीय फौज ने कब्जे में लिया. इसके बाद अंतिम कब्जे का पड़ाव था "सिलहट". इस इलाके में पहले से ही हमारी गोरखा रेजीमेंट की फौज पहुंच चुकी थी.
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दुश्मन की गोली से मेजर शहीदः 14 दिसंबर को भारतीय एयरफोर्स ने सिलहट इलाके में जबरदस्त गोलाबारी की. जिससे पाकिस्तान के कई संख्या में सैनिक मारे गए. इस दौरान पाकिस्तान की गोलियों से मेजर एसपी सिंह शहीद हो गए. इस घटना के बाद भारतीय सेना के अंदर ऐसा गुस्सा और आक्रोश पैदा हुआ कि पूरी फौज एक बड़ी ताकत के साथ सिलहट पहुंची. वहां भारतीय फौज ने एक तरफा पाकिस्तानी फौज पर जमीन और आसमान से गोलाबारी करते हुए पाक फौज को एक-एक करके खत्म किया. इस दौरान जो पाकिस्तानी फौज सरेंडर कर रही थी उसको भी मौत के घाट उतार दिया गया. भारतीय फौज के अंदर अपने मेजर की मौत का इतना बड़ा आक्रोश था कि पाक सैनिक को ढूंढ ढूंढकर खत्म किया.

पाक सेना ने किया सरेंडरः 14 दिसंबर 15 दिसंबर को पाकिस्तानी फौज की कंपनी और बटालियन को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. इसके बाद भारतीय फौज ने पाकिस्तानी इलाके में चेतावनी देते हुए सरेंडर करने की बात कही. लेकिन पाकिस्तानी फौज नहीं मानी तो भारत में फिर आगे बढ़ने की चेतावनी देते हुए सरेंडर करने की दूसरी हिदायत दी. इसके बाद वहां मौजूद पाकिस्तान फौज के 22 बलूच के कमांडेंट सहित सैकड़ों पाक सैनिकों ने हथियारों के साथ सरेंडर किया.

कुकरेती परिवार की बहू ने लिखी बुकः भारत-पाकिस्तान 1971 युद्ध में शामिल वॉर वॉरियर्स के कुकरेती परिवार की बहू इरा कुकरेती ने इस पूरे युद्ध के शौर्य की कहानी को संजोते हुए 'कहानी 1971 युद्ध की' किताब भी लिखी है. रिटायर्ड कर्नल राकेश कुकरेती की पत्नी इरा कुकरेती बताती हैं कि जब भी युद्ध चला, तब से ही उनके जहन में कई तरह की बातें युद्ध के दौरान भारतीय सेना को लेकर आती थीं. उनके मन में हमेशा से यह चाहत थी कि इस युद्ध की एक कहानी खुद एक किताब के रूप में लिखूं. समय बीतता गया और आखिरकार कोरोना काल में उन्हें यह मौका मिला, जब उन्होंने 'कहानी 1971 युद्ध की' किताब को लिखा.

किताब में योद्धाओं की जुबानी कहानीः इरा कुकरेती के मुताबिक उनके पति राकेश कुकरेती सहित परिवार में ही पांच भाइयों ने 1971 के युद्ध को भारतीय सेना के साथ बड़े साहस के साथ विजय के रूप में हासिल किया. सबसे पहले उन्होंने गरीब परिवार के लोगों से ही युद्ध के वह सभी महत्वपूर्ण पलों को जानते हुए अपनी किताब में उनको जगा दी. इसके बाद उन्होंने 6 राजपूत रेजीमेंट के फाउंडिंग डे जो मेरठ में मनाया गया था, वहां जाकर अधिकांश 1971 वॉरियर्स अधिकारियों और जवानों से मिलकर उनकी जुबान से युद्ध की कहानी की बातें अपनी किताब में लिखी.
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इतना ही नहीं, उस युद्ध के दौरान कई ऐसे महत्वपूर्ण जो फोटोग्राफ के रूप में कैद हुए थे. उन्हें भी अपनी किताब में जगह दी. इरा कुकरेती को इस बात की बेहद खुशी है कि 1971 के युद्ध में जिस तरह से भारतीय सेना ने विजय पताका लहराते हुए देश की आन बान और शाम को कायम रख जटिल दौर में यह युद्ध जीता. वह देशवासियों के लिए बेहद गौरव की बात है.

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