नई दिल्ली : किसान संगठनों और सरकार के बीच आज की वार्ता भी बिना किसी निष्कर्ष के समाप्त हुई. बतौर किसान नेता सात घंटों तक चली बातचीत में सरकार का रुख सकारात्मक रहा और किसान संगठनों की मांग पर सरकार ने कानून में संशोधन का प्रस्ताव रखा.
किसान नेता कानून वापस लेने की मांग पर अड़े रहे, लेकिन सरकार लगातार कानून के फायदे और किसानों की आशंकाओं को दूर करने पर जोर देती रही. इस तरह से चर्चा आगे बढ़ती रही और बैठक के दौरान एक समय ऐसा आया, जब सभी किसान मौन हो गए और कानून वापस लेने के सवाल पर सरकार से दो टूक जवाब 'हां' या 'ना' में मांगा. बैठक के दौरान हाथ में 'Yes' या 'No' की तख्ती दिखाते हुए किसानों ने मौन प्रदर्शन भी किया.
कृषि मंत्री ने क्या कहा?
कृषि कानूनों पर किसान नेताओं के साथ हुई बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि MSP जारी रहेगी. MSP पर किसी भी प्रकार का खतरा और इस पर शंका करना बेबुनियाद है अगर फिर भी किसी के मन में शंका है, तो सरकार उसका समाधान करने के लिए पूरी तरह तैयार है.
केंद्रीय कृषि मंत्री ने आगे कहा कि APMC राज्य का एक्ट है. राज्य की मंडी को किसी भी तरह से प्रभावित करने का न हमारा इरादा है और न ही कानूनी रूप से वो प्रभावित होती है. इसे और मजबूत करने के लिए सरकार तैयार है. अगर इस बारे में किसी को कोई गलतफहमी है, तो सरकार समाधान के लिए तैयार है.
उन्होंने आगे कहा कि हम लोग चाहते थे कि कुछ विषयों पर हमें स्पष्टता से सुझाव मिले, लेकिन बातचीत के दौर से ये संभव नहीं हो सका. कुछ सुझाव मिल जाते, तो हमें रास्ता निकालना थोड़ा आसान हो जाता. अभी भी उसका इंतज़ार करेंगे.
किसानों के साथ पांचवें दौर की बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि मेरा किसान यूनियन से आग्रह है कि सर्दी का सीज़न है, कोविड का संकट है, इसलिए जो बुज़ुर्ग लोग हैं और जो बच्चें हैं, अगर उन्हें यूनियन के नेता घर भेज देंगे तो वे सुविधा से रह सकेंगे.
कृषि मंत्री ने आगे कहा कि उनके अपने कार्यक्रम हैं मैं उनपर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. मैं सभी यूनियनों, किसान नेताओं से कहना चाहता हूं कि आंदोलन का रास्ता छोड़ चर्चा के रास्ते पर आएं. भारत सरकार कई दौर की चर्चा कर चुकी है और समाधान के लिए आगे भी चर्चा करने को तैयार है.
ईटीवी भारत ने आज की बैठक पर राष्ट्रीय किसान महासंघ के अध्यक्ष शिव कुमार कक्काजी से विशेष बातचीत की. कक्काजी ने बताया कि आज की बैठक में सरकार का रुख सकारात्मक दिखा है. केंद्रीय कृषि मंत्री के व्यवहार से किसान नेता संतुष्ट दिखे, लेकिन चर्चाओं के लंबे दौर चलने के बावजूद भी निष्कर्ष न निकल पाने पर अपना असंतोष भी व्यक्त किया.
एमएसपी अनिवार्यता कानून बनाने की मांग पर अटकी बात
बैठक के दौरान किसानों ने एमएसपी को संवैधानिक दर्जा देने की मांग उठाई, जिस पर केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि कानून बनाने पर चर्चा के लिए उन्हें अन्य विभाग और मंत्रालय से भी चर्चा करनी पड़ेगी, जिसके लिए उन्हें समय चाहिए.
उसके बाद तय हुआ कि अगली बैठक 9 दिसंबर को होगी, जिसमें एमएसपी के लिये कानून बनाने की मांग पर सरकार अपना रुख स्पष्ट करेगी. सरकार अपनी तरफ से लगातार आश्वासन देती रही है कि एमएसपी की व्यवस्था बनी रहेगी, लेकिन अभी तक यह केवल प्रशासनिक घोषणा है. किसान इसे कानूनी जामा पहनाने की मांग कर रहे हैं.
कृषि कानूनों का कोई औचित्य नहीं
राष्ट्रीय किसान महासंघ के नेता शिवकुमार शर्मा ने कहा है कि यदि किसानों की मांग पर सरकार एमएसपी कानून लाती है और अन्य संशोधन भी लाने को तैयार हो जाती है तब मौजूदा कानून के मायने नहीं रह जाएंगे. ऐसे में सरकार को इन कानूनों को रद्द ही कर देना चाहिए, क्योंकि किसानों को इन कानून की कोई आवश्यकता नहीं है.
कृषि सचिव के लंबे भाषण से किसान परेशान!
किसान नेता शिवकुमार ने कहा है कि बैठकों के दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का व्यवहार बेहद सकारात्मक और सौम्य रहता है, लेकिन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी संजय अग्रवाल से किसान नाखुश रहते हैं. इसके पीछे उनका लंबा भाषण और उनकी प्रेजेंटेशन है. कक्काजी ने केंद्रीय कृषि सचिव पर चुटकी लेते हुए कहा कि किसान उनके संबोधन के दौरान कई बार सो भी जाते हैं.
किसान नेताओं का कहना है कि केंद्रीय मंत्री उनकी बातों को सुनते भी हैं और समझते भी हैं, लेकिन उनके इर्द गिर्द रहने वाले अधिकारी बात नहीं बनने देते और अपनी बात मनवाने पर जोर देते हैं. इसके कारण ही बैठक इतनी लंबी चलती है और समय नष्ट होता है.
जारी रहेगा आंदोलन, भारत बंद भी होगा
किसान नेताओं ने कहा है कि कृषि कानूनों के विरोध में उनका आंदोलन लगातार जारी रहेगा. 8 दिसंबर को भारत बंद का एलान भी किसानों की तरफ से किया गया है. आज की बैठक के दौरान केंद्रीय मंत्री ने आंदोलन वापस लेने की अपील जरूर की, लेकिन किसानों ने दो टूक कहा है कि जब तक सरकार और किसान संगठनों के बीच की बातचीत किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचती और किसानों की मांग नहीं मानी जाती तब तक आंदोलन जारी रखा जाएगा.