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कोटा में अत्याधुनिक तकनीक से बन रही है देश की पहली 8 लेन सुरंग, मॉनिटरिंग के लिए लगेंगे सैकड़ों सेंसर

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Published : May 16, 2023, 6:56 AM IST

देश की सबसे लंबी 8 लेन की टनल कोटा में बन रही है. ये दुनिया की अत्याधुनिक सुरंगों में शामिल होगी. ये दिल्ली मुंबई एक्सप्रेस वे का डिजाइन इस तरह से किया जा रहा कि यहां पर 120 की स्पीड से वाहन चल सकेंगे. इसी तरह से सुरंग का निर्माण भी इसी स्पीड को देखकर किया जा रहा है.

देश की पहली 8 लेन की सुरंग
देश की पहली 8 लेन की सुरंग

कोटा. भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत कोटा जिले से दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे निकल रहा है. यह एक्सप्रेस वे भी मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के ऊपर से गुजर रहा है. ऐसे में वहां पर वन्य जीव को कोई परेशानी न हो, इसलिए करीब 5 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई जा रही है. ये सुरंग भारत की पहली आठ लेन की इतनी लंबी सुरंग है. जिसका करीब 25 प्रतिशत काम हो गया है. शेष कार्य जारी है. दिल्ली मुंबई एक्सप्रेस वे का डिजाइन इस तरह से किया जा रहा कि यहां पर 120 की स्पीड से वाहन दौड़ सके. इसी तरह से सुरंग का निर्माण भी इसी स्पीड को देखकर किया जा रहा है.

ये दुनिया की अत्याधुनिक सुरंगों में शामिल होगी. जितनी भी लेटेस्ट तकनीक सुरंग में उपयोग की जा रही है, वो इसमें लगाई जाएगी. इसके साथ ही निर्माण कर रही कंपनी अगले कई सालों तक इसकी देखभाल भी करेगी. साथ ही करीब 100 साल की गारंटी सुरंग बनाने वाली कंपनी दे रही है. टनल में स्मोक सेंसर के अलावा कई तरह के अलग सेंसर लगे हैं. जब इसमें कोई भी व्हीकल की आवाजाही नहीं होगी, तो स्वत: ही बिजली बंद हो जाएगी. साथ ही जैसे ही वाहन आने वाले होंगे, बिजली बहाल हो जाएगी. फायर फाइटिंग, पॉल्यूशन कंट्रोल, फ्रेश एयर, व्हीकल मैनेजमेंट सब कुछ सेंसर के जरिए मॉनिटर होगा.

मोबाइल व इंटरनेट नेटवर्क और एफएम स्टेशन की फ्रिकवेंसी के लिए भी बूस्टर लगाए जाएंगे. ताकि पहाड़ से करीब 110 मीटर नीचे होने के बावजूद भी यहां नेटवर्क और फ्रीक्वेंसी गायब होने शिकायत न हो. इनके लिए रिपीटर भी लगाए जाएंगे. नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रोजेक्ट इंप्लीमेंटेशन यूनिट (पीआईयू) कोटा के प्रोजेक्ट डायरेक्टर और जनरल मैनेजर जेपी गुप्ता का कहना है कि सुरंग का निर्माण जनवरी 2024 में पूरा होना था, लेकिन काम देरी से शुरू हुआ. वन्य क्षेत्र होने के चलते भी स्वीकृति में दिक्कत हुई थी. बाद में मलबे का निस्तारण की भी समस्या सामने आई थी. ऐसे में अब निर्माण कार्य में थोड़ा ज्यादा समय लगेगा.

इस तरह की बनेगी सुरंग : टनल मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के 500 मीटर पहले से शुरू हो जाएगी. साथ ही मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व खत्म होने के 500 मीटर आगे तक चलेगी. ऐसे में दोनों तरफ से इसके हिस्से के लिए सुरंग के हिस्से को बढ़ाया जा रहा है. इसमें आने जाने के लिए सुरंग की 2 ट्यूब बनाई जा रही है. जिसमें 1 ट्यूब में चार लेन का ट्रैफिक गुजरेगा. इन दोनों ट्यूब को सुरंग के भीतर 9 जगह पर जोड़ा भी गया है. जिनका उपयोग इमरजेंसी में किया जा सकेगा. साथ ही सुरंग में 4 ले-बाय भी बनाए गए हैं, ताकि वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने या दिक्कत आने पर रोका जा सकेगा.

सुरंग की 1 ट्यूब में 15 मीटर का रास्ता एक तरफ का रहेगा. साथ ही दोनों तरफ सवा - सवा मीटर का फुटपाथ रहेगा. हालांकि इस सुरंग में निर्माण के बाद पैदल जाना या वाहन से नीचे उतरना पूरी तरह से वर्जित है. इसकी ऊंचाई करीब 11 मीटर रहेगी, जबकि ज्यादातर वाहन 5.5 मीटर ऊंचे ही होते हैं. इसके साथ ही पानी के लिए भी इसमें ड्रेन बनाई गई है. साथ ही सीपेज नहीं होगा, पूरी तरह से इसे वॉटरप्रूफिंग किया जाएगा. ड्रेन के पानी को बाहर निकालने के लिए पंप लगेंगे. इन पंप की मॉनिटरिंग भी सेंसर के जरिए होगी. ऐसे में यह सेंसर के जरिए ऑटोमेटिक बंद चालू हो जाएंगे.

निर्माण के साथ सुरंग की मॉनिटरिंग भी : सुरंग निर्माण कर रही दिलीप बिल्डकॉन लिमिटेड के जनरल मैनेजर राजीव पठानिया का कहना है कि सुरंग न्यू ऑस्ट्रिया टनलिंग मेथड (नेटम) से बन रही है. पहले सुरंगों में डिजाइन के अनुसार ही उनकी मॉनिटरिंग की जाती थी और वैसा ही स्ट्रक्चर उनके लिए तैयार कर दिया जाता था, लेकिन नेटम तकनीक में हर दिन खुदाई के बाद मॉनिटरिंग की जाती है. और जिस तरह का स्ट्रक्चर सुरंग के लिए जरूरी होता है, वैसा स्ट्रक्चर बनाया जाता है. खुदाई भी वैसे ही होती है.

1.6 किमी में सीमेंट कंक्रीट की सुरंग : एनएचएआई के जीएम जेपी गुप्ता ने बताया कि यह सुरंग 4.9 किलोमीटर लंबी है. जिसमें दो अलग अलग ट्यूब बनाई जा रही है. इस सुरंग को मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के पहाड़ी इलाके में करीब 3.3 किलोमीटर खोदना है. कोटा की तरफ इस सुरंग को बढ़ाने के लिए 470 मीटर का रास्ता बनाया जा रहा है. चेचट की तरफ 1.13 किलोमीटर का रास्ता बनाया जा रहा है. ऐसे में दोनों तरफ बढ़ाए जा रहे. कुल मिलाकर सुरंग को दोनों तरफ 1.6 किलोमीटर बढ़ाया जा रहा है. इसके लिए सीमेंट कंक्रीट की सुरंग तैयार की जा रही है. जिसके ऊपर मिट्टी से कवर कर दिया जाएगा, ताकि वन्यजीव ऊपर से गुजर सके और यह सुरंग के चलते उन्हें कोई डिस्टर्ब नहीं हो.

सुरंग में अभी 2 किलोमीटर की खुदाई शेष है : जेपी गुप्ता के अनुसार 3.3 किमी के हिस्से का पहाड़ काटकर बनाया जा रहा है. ऐसे में कोटा की तरफ से काफी ज्यादा काम हो चुका है. कोटा की तरफ से एक ट्यूब में 1.3 और दूसरी में 1.2 किलोमीटर खुदाई हो चुकी है. जबकि चेचट की तरफ से महज 100 और 90 मीटर की खुदाई ही इन दोनों ट्यूब में हुई है. चेचट की तरफ काम भी देरी से शुरू हुआ और अभी धीमा भी चल रहा है. अभी भी करीब 2 किलोमीटर की खुदाई दोनों ट्यूब में होनी शेष है.

स्काडा सिस्टम से जुड़ेंगे सीसीटीवी कैमरे : राजीव पठानिया का कहना है कि सुरंग के भीतर पूरी तरह से सेंसर स्थापित कर दिए जाएंगे और यह सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डाटा एक्विजिशन (स्काडा) मॉनिटरिंग सिस्टम से भी जोड़ी जाएगी. जिसमें सीसीटीवी कैमरे से लेकर अन्य सेंसर के जरिए मॉनिटरिंग की जाएगी. इनमें वाहनों की गणना से लेकर सब कुछ स्काडा मॉनिटरिंग सिस्टम से होगा. शुद्ध हवा के लिए जेट पर लगाए जाएंगे. इसके साथ ही विद्युत की भी पूरी व्यवस्था की जा रही है. साथ ही फायर फाइटिंग और कोई भी तरह की दुर्घटना के लिए स्मोक डिटेकटर व सेंसर लगाए जा रहे हैं. टनल कोई भी गैस का रिसाव होने या फिर वाहनों के धुए से अंदर पोलूशन बढ़ने पर भी सेंसर एक्टिवेट हो जाएंगे. इसके साथ ही जुड़े हुए सभी जेट फैन चालू हो जाएंगे. इन जेट फैन को सेंसर ऑटोमेटिक मॉनिटरिंग कर चालू और बन्द करेगा. बिजली को भी इसी तरह से मॉनिटरिंग किया जाएगा.

वाहन रुकने पर तुरंत निकाला जाएगा बाहर : स्काडा सिस्टम से जुड़ने पर सीसीटीवी के जरिए मॉनिटरिंग भी की जाएगी. ऐसे में कोई भी वाहन अगर सुरंग के भीतर रुकता है या फिर कुछ अनयूजुअल पर लगता है, तब तुरंत सुरंग को मॉनिटरिंग कर रही टीम वहां पहुंच जाएगी. साथ ही अगर किसी तरह से बाहर में खराबी होती है, तो उसे ले-बाय में ले जाकर समस्या को दूर किया जा सकेगा. जरूरत पड़ने पर उसे बाहर भी क्रेन की मदद से निकाल दिया जाएगा या फिर कोई गलत रुका है या जान बूझकर वाहन रोका है, तो उन्हें भी तुरंत बाहर निकाला जाएगा. ताकि अन्य वाहन चालकों को कोई परेशानी न हो.

एक हजार करोड़ से ज्यादा की लागत से बन रही : वर्तमान में सुरंग निर्माण के लिए 24 घंटे काम चल रहा है. 40 इंजीनियर और 40 सुपरवाइजर समते 700 से ज्यादा लोग इस सुरंग के निर्माण कार्य में लगे हैं. जिनमें करीब 1 दर्जन के आसपास टनल इंजीनियर भी हैं. ये टनल इंजीनियर जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में टनल निर्माण का अनुभव है. इसके अलावा स्वीडन से खास मंगाई गई ड्रिल जंबो मशीन के जरिए ड्रिलिंग की जाती है. जिसके बाद चट्टानों में विस्फोटक भरा जाता है. विस्फोट के बाद मलबे को बाहर निकालकर ल, आगे फिर इसी तरह का प्रोसेस किया जा रहा है.

रोज केवल 7 से 8 मीटर हो पा रही खुदाई : टनल इंजीनियर दुर्गा नारायण कुमार का कहना है कि खुदाई रोज करीब 7 से 8 मीटर ही हो रही है. इसके लिए ब्लास्टिंग की जा रही है. सुरंग की खुदाई के लिए दिन में 16 ब्लास्ट किए जा रहे हैं. जिसमें एक ट्यूब में एक तरफ से चार ब्लास्ट हो रहे हैं. इसी तरह से दूसरी तरफ से भी चार ब्लास्ट किए जा रहे हैं. यह मल्टी ड्रिप्टिंग मेथड से टनल की खुदाई की जा रही है. जिसमें हेडिंग व बैंचिंग करके खुदाई की जा रही है. कोटा की तरफ से खुदाई करीब 5 मीटर रोज हो रही है, जबकि चेचट की तरफ से खुदाई कम हो रही है क्योंकि वहां की चट्टान थोड़ी कमजोर है. जिसमें मिट्टी जैसी चट्टाने आ रही है इसलिए मलबा ज्यादा गिरने का खतरा है. इसीलिए धीरे-धीरे खुदाई की जा रही है.

निर्माण में भी मॉनिटरिंग के लिए उपयोग ले रहे सेंसर : दुर्गा नारायण कुमार का कहना है कि पहले चट्टानों में ड्रिल जंबो मशीन के जरिए छेद किए जाते हैं. जिसके बाद में बारूद भरा जाता है. ब्लास्ट के समय सभी लोगों को बाहर निकाल दिया जाता है. ब्लास्ट के बाद जेट फैन के जरिए पॉल्यूशन को बाहर किया जाता है. पूरी हानिकारक गैसों को बाहर निकाल दिया जाता है. करीब आधे घंटे बाद सेंसर के जरिए पोलूशन की जांच की जाती है. पूरी तरह से सेफ घोषित होने के बाद इंजीनियर और लेबर वहां जाते है. मशीनरी और ट्रांसपोर्ट व्हीकल के जरिए मलबे को बाहर निकाला जाता है. कंक्रीट का स्प्रे खुदाई हुए स्थल के ऊपरी हिस्से पर किया जाता है. जब यह पूरी तरह से सेट हो जाता है, इसके साथ ही ड्रिलिंग मेथड से एक बड़े-बड़े नट बोल्ट लगाकर चट्टानों को मजबूत कर दिया जाता है, ताकि कोई भी हिस्सा काम कर रहे मजदूरों पर न गिरे. इसके बाद अगले विस्फोट की तैयारी शुरू की जाती है.

कमजोर चट्टान और सीपेज भी बड़ी परेशानी : कोटा की तरफ से मजबूत चट्टानों आ रही है. इधर से क्लास 3 की चट्टानें आ रही हैं. ऐसे में कोटा की तरफ से खुदाई में करीब 1 विस्फोट में 100 से 150 किलो विस्फोटक की जरूरत है. जबकि चेचट की तरफ से क्लास फोर की चट्टान आ रही है. जिसमें कि करीब 75 से 100 किलो विस्फोटक की जरूरत होती है. इंजीनियर दुर्गा नारायण का कहना है कि हमारा टारगेट रोज 10 मीटर खुदाई का है, लेकिन कमजोर चट्टान भी चेचट की तरफ टनल की खुदाई में एक चुनौती है. दूसरी तरफ सीपेज भी काफी मिल रहा है, वो भी एक परेशानी का सबब है.

कोटा. भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत कोटा जिले से दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे निकल रहा है. यह एक्सप्रेस वे भी मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के ऊपर से गुजर रहा है. ऐसे में वहां पर वन्य जीव को कोई परेशानी न हो, इसलिए करीब 5 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई जा रही है. ये सुरंग भारत की पहली आठ लेन की इतनी लंबी सुरंग है. जिसका करीब 25 प्रतिशत काम हो गया है. शेष कार्य जारी है. दिल्ली मुंबई एक्सप्रेस वे का डिजाइन इस तरह से किया जा रहा कि यहां पर 120 की स्पीड से वाहन दौड़ सके. इसी तरह से सुरंग का निर्माण भी इसी स्पीड को देखकर किया जा रहा है.

ये दुनिया की अत्याधुनिक सुरंगों में शामिल होगी. जितनी भी लेटेस्ट तकनीक सुरंग में उपयोग की जा रही है, वो इसमें लगाई जाएगी. इसके साथ ही निर्माण कर रही कंपनी अगले कई सालों तक इसकी देखभाल भी करेगी. साथ ही करीब 100 साल की गारंटी सुरंग बनाने वाली कंपनी दे रही है. टनल में स्मोक सेंसर के अलावा कई तरह के अलग सेंसर लगे हैं. जब इसमें कोई भी व्हीकल की आवाजाही नहीं होगी, तो स्वत: ही बिजली बंद हो जाएगी. साथ ही जैसे ही वाहन आने वाले होंगे, बिजली बहाल हो जाएगी. फायर फाइटिंग, पॉल्यूशन कंट्रोल, फ्रेश एयर, व्हीकल मैनेजमेंट सब कुछ सेंसर के जरिए मॉनिटर होगा.

मोबाइल व इंटरनेट नेटवर्क और एफएम स्टेशन की फ्रिकवेंसी के लिए भी बूस्टर लगाए जाएंगे. ताकि पहाड़ से करीब 110 मीटर नीचे होने के बावजूद भी यहां नेटवर्क और फ्रीक्वेंसी गायब होने शिकायत न हो. इनके लिए रिपीटर भी लगाए जाएंगे. नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रोजेक्ट इंप्लीमेंटेशन यूनिट (पीआईयू) कोटा के प्रोजेक्ट डायरेक्टर और जनरल मैनेजर जेपी गुप्ता का कहना है कि सुरंग का निर्माण जनवरी 2024 में पूरा होना था, लेकिन काम देरी से शुरू हुआ. वन्य क्षेत्र होने के चलते भी स्वीकृति में दिक्कत हुई थी. बाद में मलबे का निस्तारण की भी समस्या सामने आई थी. ऐसे में अब निर्माण कार्य में थोड़ा ज्यादा समय लगेगा.

इस तरह की बनेगी सुरंग : टनल मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के 500 मीटर पहले से शुरू हो जाएगी. साथ ही मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व खत्म होने के 500 मीटर आगे तक चलेगी. ऐसे में दोनों तरफ से इसके हिस्से के लिए सुरंग के हिस्से को बढ़ाया जा रहा है. इसमें आने जाने के लिए सुरंग की 2 ट्यूब बनाई जा रही है. जिसमें 1 ट्यूब में चार लेन का ट्रैफिक गुजरेगा. इन दोनों ट्यूब को सुरंग के भीतर 9 जगह पर जोड़ा भी गया है. जिनका उपयोग इमरजेंसी में किया जा सकेगा. साथ ही सुरंग में 4 ले-बाय भी बनाए गए हैं, ताकि वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने या दिक्कत आने पर रोका जा सकेगा.

सुरंग की 1 ट्यूब में 15 मीटर का रास्ता एक तरफ का रहेगा. साथ ही दोनों तरफ सवा - सवा मीटर का फुटपाथ रहेगा. हालांकि इस सुरंग में निर्माण के बाद पैदल जाना या वाहन से नीचे उतरना पूरी तरह से वर्जित है. इसकी ऊंचाई करीब 11 मीटर रहेगी, जबकि ज्यादातर वाहन 5.5 मीटर ऊंचे ही होते हैं. इसके साथ ही पानी के लिए भी इसमें ड्रेन बनाई गई है. साथ ही सीपेज नहीं होगा, पूरी तरह से इसे वॉटरप्रूफिंग किया जाएगा. ड्रेन के पानी को बाहर निकालने के लिए पंप लगेंगे. इन पंप की मॉनिटरिंग भी सेंसर के जरिए होगी. ऐसे में यह सेंसर के जरिए ऑटोमेटिक बंद चालू हो जाएंगे.

निर्माण के साथ सुरंग की मॉनिटरिंग भी : सुरंग निर्माण कर रही दिलीप बिल्डकॉन लिमिटेड के जनरल मैनेजर राजीव पठानिया का कहना है कि सुरंग न्यू ऑस्ट्रिया टनलिंग मेथड (नेटम) से बन रही है. पहले सुरंगों में डिजाइन के अनुसार ही उनकी मॉनिटरिंग की जाती थी और वैसा ही स्ट्रक्चर उनके लिए तैयार कर दिया जाता था, लेकिन नेटम तकनीक में हर दिन खुदाई के बाद मॉनिटरिंग की जाती है. और जिस तरह का स्ट्रक्चर सुरंग के लिए जरूरी होता है, वैसा स्ट्रक्चर बनाया जाता है. खुदाई भी वैसे ही होती है.

1.6 किमी में सीमेंट कंक्रीट की सुरंग : एनएचएआई के जीएम जेपी गुप्ता ने बताया कि यह सुरंग 4.9 किलोमीटर लंबी है. जिसमें दो अलग अलग ट्यूब बनाई जा रही है. इस सुरंग को मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के पहाड़ी इलाके में करीब 3.3 किलोमीटर खोदना है. कोटा की तरफ इस सुरंग को बढ़ाने के लिए 470 मीटर का रास्ता बनाया जा रहा है. चेचट की तरफ 1.13 किलोमीटर का रास्ता बनाया जा रहा है. ऐसे में दोनों तरफ बढ़ाए जा रहे. कुल मिलाकर सुरंग को दोनों तरफ 1.6 किलोमीटर बढ़ाया जा रहा है. इसके लिए सीमेंट कंक्रीट की सुरंग तैयार की जा रही है. जिसके ऊपर मिट्टी से कवर कर दिया जाएगा, ताकि वन्यजीव ऊपर से गुजर सके और यह सुरंग के चलते उन्हें कोई डिस्टर्ब नहीं हो.

सुरंग में अभी 2 किलोमीटर की खुदाई शेष है : जेपी गुप्ता के अनुसार 3.3 किमी के हिस्से का पहाड़ काटकर बनाया जा रहा है. ऐसे में कोटा की तरफ से काफी ज्यादा काम हो चुका है. कोटा की तरफ से एक ट्यूब में 1.3 और दूसरी में 1.2 किलोमीटर खुदाई हो चुकी है. जबकि चेचट की तरफ से महज 100 और 90 मीटर की खुदाई ही इन दोनों ट्यूब में हुई है. चेचट की तरफ काम भी देरी से शुरू हुआ और अभी धीमा भी चल रहा है. अभी भी करीब 2 किलोमीटर की खुदाई दोनों ट्यूब में होनी शेष है.

स्काडा सिस्टम से जुड़ेंगे सीसीटीवी कैमरे : राजीव पठानिया का कहना है कि सुरंग के भीतर पूरी तरह से सेंसर स्थापित कर दिए जाएंगे और यह सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डाटा एक्विजिशन (स्काडा) मॉनिटरिंग सिस्टम से भी जोड़ी जाएगी. जिसमें सीसीटीवी कैमरे से लेकर अन्य सेंसर के जरिए मॉनिटरिंग की जाएगी. इनमें वाहनों की गणना से लेकर सब कुछ स्काडा मॉनिटरिंग सिस्टम से होगा. शुद्ध हवा के लिए जेट पर लगाए जाएंगे. इसके साथ ही विद्युत की भी पूरी व्यवस्था की जा रही है. साथ ही फायर फाइटिंग और कोई भी तरह की दुर्घटना के लिए स्मोक डिटेकटर व सेंसर लगाए जा रहे हैं. टनल कोई भी गैस का रिसाव होने या फिर वाहनों के धुए से अंदर पोलूशन बढ़ने पर भी सेंसर एक्टिवेट हो जाएंगे. इसके साथ ही जुड़े हुए सभी जेट फैन चालू हो जाएंगे. इन जेट फैन को सेंसर ऑटोमेटिक मॉनिटरिंग कर चालू और बन्द करेगा. बिजली को भी इसी तरह से मॉनिटरिंग किया जाएगा.

वाहन रुकने पर तुरंत निकाला जाएगा बाहर : स्काडा सिस्टम से जुड़ने पर सीसीटीवी के जरिए मॉनिटरिंग भी की जाएगी. ऐसे में कोई भी वाहन अगर सुरंग के भीतर रुकता है या फिर कुछ अनयूजुअल पर लगता है, तब तुरंत सुरंग को मॉनिटरिंग कर रही टीम वहां पहुंच जाएगी. साथ ही अगर किसी तरह से बाहर में खराबी होती है, तो उसे ले-बाय में ले जाकर समस्या को दूर किया जा सकेगा. जरूरत पड़ने पर उसे बाहर भी क्रेन की मदद से निकाल दिया जाएगा या फिर कोई गलत रुका है या जान बूझकर वाहन रोका है, तो उन्हें भी तुरंत बाहर निकाला जाएगा. ताकि अन्य वाहन चालकों को कोई परेशानी न हो.

एक हजार करोड़ से ज्यादा की लागत से बन रही : वर्तमान में सुरंग निर्माण के लिए 24 घंटे काम चल रहा है. 40 इंजीनियर और 40 सुपरवाइजर समते 700 से ज्यादा लोग इस सुरंग के निर्माण कार्य में लगे हैं. जिनमें करीब 1 दर्जन के आसपास टनल इंजीनियर भी हैं. ये टनल इंजीनियर जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में टनल निर्माण का अनुभव है. इसके अलावा स्वीडन से खास मंगाई गई ड्रिल जंबो मशीन के जरिए ड्रिलिंग की जाती है. जिसके बाद चट्टानों में विस्फोटक भरा जाता है. विस्फोट के बाद मलबे को बाहर निकालकर ल, आगे फिर इसी तरह का प्रोसेस किया जा रहा है.

रोज केवल 7 से 8 मीटर हो पा रही खुदाई : टनल इंजीनियर दुर्गा नारायण कुमार का कहना है कि खुदाई रोज करीब 7 से 8 मीटर ही हो रही है. इसके लिए ब्लास्टिंग की जा रही है. सुरंग की खुदाई के लिए दिन में 16 ब्लास्ट किए जा रहे हैं. जिसमें एक ट्यूब में एक तरफ से चार ब्लास्ट हो रहे हैं. इसी तरह से दूसरी तरफ से भी चार ब्लास्ट किए जा रहे हैं. यह मल्टी ड्रिप्टिंग मेथड से टनल की खुदाई की जा रही है. जिसमें हेडिंग व बैंचिंग करके खुदाई की जा रही है. कोटा की तरफ से खुदाई करीब 5 मीटर रोज हो रही है, जबकि चेचट की तरफ से खुदाई कम हो रही है क्योंकि वहां की चट्टान थोड़ी कमजोर है. जिसमें मिट्टी जैसी चट्टाने आ रही है इसलिए मलबा ज्यादा गिरने का खतरा है. इसीलिए धीरे-धीरे खुदाई की जा रही है.

निर्माण में भी मॉनिटरिंग के लिए उपयोग ले रहे सेंसर : दुर्गा नारायण कुमार का कहना है कि पहले चट्टानों में ड्रिल जंबो मशीन के जरिए छेद किए जाते हैं. जिसके बाद में बारूद भरा जाता है. ब्लास्ट के समय सभी लोगों को बाहर निकाल दिया जाता है. ब्लास्ट के बाद जेट फैन के जरिए पॉल्यूशन को बाहर किया जाता है. पूरी हानिकारक गैसों को बाहर निकाल दिया जाता है. करीब आधे घंटे बाद सेंसर के जरिए पोलूशन की जांच की जाती है. पूरी तरह से सेफ घोषित होने के बाद इंजीनियर और लेबर वहां जाते है. मशीनरी और ट्रांसपोर्ट व्हीकल के जरिए मलबे को बाहर निकाला जाता है. कंक्रीट का स्प्रे खुदाई हुए स्थल के ऊपरी हिस्से पर किया जाता है. जब यह पूरी तरह से सेट हो जाता है, इसके साथ ही ड्रिलिंग मेथड से एक बड़े-बड़े नट बोल्ट लगाकर चट्टानों को मजबूत कर दिया जाता है, ताकि कोई भी हिस्सा काम कर रहे मजदूरों पर न गिरे. इसके बाद अगले विस्फोट की तैयारी शुरू की जाती है.

कमजोर चट्टान और सीपेज भी बड़ी परेशानी : कोटा की तरफ से मजबूत चट्टानों आ रही है. इधर से क्लास 3 की चट्टानें आ रही हैं. ऐसे में कोटा की तरफ से खुदाई में करीब 1 विस्फोट में 100 से 150 किलो विस्फोटक की जरूरत है. जबकि चेचट की तरफ से क्लास फोर की चट्टान आ रही है. जिसमें कि करीब 75 से 100 किलो विस्फोटक की जरूरत होती है. इंजीनियर दुर्गा नारायण का कहना है कि हमारा टारगेट रोज 10 मीटर खुदाई का है, लेकिन कमजोर चट्टान भी चेचट की तरफ टनल की खुदाई में एक चुनौती है. दूसरी तरफ सीपेज भी काफी मिल रहा है, वो भी एक परेशानी का सबब है.

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