नई दिल्ली : काशी-मथुरा, दिल्ली, धार समेत देश के हिस्सों में मस्जिदों को लेकर विवाद शुरू हो गया है. सभी जगहों पर विवाद का मुद्दा एक जैसा ही है. . इन सभी जगहों पर यह दावा किया जाता है कि मुगल और मुसलमानों के शासन के दौरान इन मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिदें बनाईं गईं. सेंट्रल रिलिजियस वरशिप एक्ट 1991 के अनुसार, देश में पुराने धार्मिक स्थलों के स्वरूप वैसे ही रहेंगे, जैसे 1947 में स्वतंत्रता के समय थे. उनमें बदलाव नहीं हो सकता है. इसके बाद भी देश के कई हिस्सों में मस्जिदों को लेकर विवाद जारी है.
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, 31 साल पहले दायर हुआ था पहला केस
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है. यहां अभी मुस्लिम समुदाय रोजाना पांचों वक्त का नमाज अदा करता है. हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में औरंगजेब ने मंदिर को धवस्त कर मस्जिद बनाई थी. मस्जिद के अंदर ज्ञानवापी कूप और देवी देवताओं के विग्रह इसके सबूत हैं कि मस्जिद की जमीन पर पहले मंदिर था. ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद तो आजादी से पहले से होते रहे हैं मगर अदालत में यह मामला 31 साल पहले पहुंचा था. 1991 में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की तरफ से वाराणसी के स्थानीय अदालत में एक याचिका दाखिल की गई, जिसमें दावा किया गया कि जिस जगह ज्ञानवापी मस्जिद है, वहां पहले लॉर्ड विशेश्वर का मंदिर हुआ करता था और श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी. हिंदू पक्षकार ने अदालत से श्रृंगार गौरी की पूजा करने की इजाजत मांगी थी.
1998 में ज्ञानवापी मस्जिद का संचालन करने वाली अंजुमन-ए-इंतजामिया कमेटी सिविल जज की अदालत में दायर याचिका के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई. कमेटी की ओर से यह दलील दी गई कि साल 1991 में बने सेंट्रल रिलिजियस वरशिप एक्ट 1991 के प्रावधानों के तहत सिविल जज की अदालत में जारी सुनवाई को खारिज कर दिया जाना चाहिए. कांग्रेस के नरसिंह राव सरकार के कार्यकाल में पारित सेंट्रल रिलिजियस वरशिप एक्ट 1991 में यह प्रावधान है कि अयोध्या के विवादित परिसर को छोड़कर देश के बाकी धार्मिक स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी, उसी स्थिति को बरकरार रखा जाएगा. इस आधार पर हाई कोर्ट ने स्वयंभू विश्वेश्वर भगवान की याचिका पर सुनवाई रोकने का आदेश जारी किया था. इसके बाद 22 साल तक इस केस पर सुनवाई नहीं हुई.
स्वयंभू भगवान विशेश्वर की तरफ से विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी जिला अदालत में दूसरी याचिका दायर की . याचिका में दलील दी गई कि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग के अनुसार, किसी भी मामले में जब छह महीने से ज्यादा स्टे यानी स्थगन आदेश आगे नहीं बढ़ाया जाता है तो वह खुद ही निष्प्रभावी हो जाता है. इस हिसाब से सुनवाई पर लगाई गई रोक निष्प्रभावी हो गया है, इसलिए सिविल जज सीनियर डिवीजन को इस मामले में फिर से सुनवाई शुरू कर देनी चाहिए. साथ ही, याचिका में ज्ञानवापी परिसर का सर्वे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से कराने की मांग की गई.
वाराणसी की अदालत ने यह याचिका मंजूर कर ली. 2020 में एक बार फिर इसके विरोध में अंजुमन ए इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया. वाराणसी की सिविल जज की अदालत ने 8 अप्रैल 2021 को आर्कियालाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को विवादित परिसर की खुदाई कर यह पता लगाने का आदेश दिया कि क्या वहां पहले कोई और ढांचा था. क्या मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था. मस्जिद कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने निचली अदालत के इस फैसले को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 सितंबर 2021 को एएसआई सर्वे रोकने के आदेश दिए.
अब क्यों गरमाया विवाद : 18 अगस्त 2021 को पांच महिलाओं, राखी सिंह, सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठक और लक्ष्मी देवी ने वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना दर्शन-पूजन की इजाजत मांगी है. साथ ही गणेश, हनुमान, नंदी जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष देवता परिक्षेत्र में विद्यमान हैं, उनकी स्थिति जानने के लिए एक कमीशन बनाने की मांग की गई. मां श्रृंगार गौरी का स्थान ज्ञानवापी क्षेत्र में है. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए 26 अप्रैल 2022 को वाराणसी सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देव विग्रहों के सत्यापन के लिए वीडियोग्राफी और सर्वे का आदेश दिया था, जिसका मस्जिद कमेटी विरोध कर रही है. इसके बाद से ही श्रृंगार गौरी के साथ ज्ञानवापी मुद्दा फिर गरम हो गया. हिंदू पक्षकारों का कहना है कि मस्जिद कमेटी हमेशा सर्वे और वीडियो रेकॉर्डिंग से साक्ष्यों को जमा करने का विरोध करती है.
मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद, 1968 के समझौते के खिलाफ दायर है याचिका
मथुरा श्री कृष्ण जन्म भूमि मामले में अब तक पांच वाद दायर किये जा चुके हैं. यहां भी मामला ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर जैसा ही है. मथुरा में भी 13.5 एकड़ क्षेत्र में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद बनी है. हिंदू संगठन जैसे वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में श्रृंगार गौरी के मंदिर और अन्य देवी देवताओं के विग्रह होने का दावा करते हैं, ठीक उसी तरह मथुरा में भी दावा है कि श्रीकृष्ण मंदिर से जुड़ा कारागार शाही ईदगाह मस्जिद में है. मान्यता है कि उसी कारागर में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. हिंदू संगठनों का कहना है कि ऐतिहासिक प्रमाण के अनुसार, औरंगजेब ने 1669-70 में यहां के मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनवाई थी. आज भी उसके साक्ष्य मस्जिद की इमारत में दिख जाते हैं.
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन समिति के अध्यक्ष अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने भी इस मुद्दे पर याचिका दायर कर रखी है. उन्होंने अपनी याचिका में 1968 में हुए ईदगाह कमेटी और श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान के एग्रीमेंट को चुनौती दी है. तब दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते में यह सहमति बनी थी कि 13.37 एकड़ भूमि पर श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे. 22 नवंबर 1968 को सब रजिस्ट्रार मथुरा के यहां इस आधार पर जमीन की रजिस्ट्री भी की गई थी. उनका कहना है कि विवाद कुल मिलाकर 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक का है, जिसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्री कृष्ण जन्मस्थान के पास और 2.5 भूमि शाही ईदगाह मस्जिद के पास है.
हिंदू पक्ष का दावा है कि भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्मस्थान उसी ढांचे के नीचे स्थित है, जहां पर प्राचीन केशवराय मंदिर हुआ करता था. दावा ये भी किया जाता है कि 1935 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी के हिंदू राजा को मथुरा की विवादित जमीन के अधिकार सौंप दिए थे. इसके बाद 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर तय हुआ था कि यहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा. वर्ष 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन हुआ, जिसने मुस्लिम पक्ष से समझौता कर लिया. एक मामले में वकील विष्णु शंकर जैन का कहना है कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है. ईदगाह कमेटी के साथ सेवा संघ की ओर से किया गया समझौता गलत है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि मथुरा के मामले में पांच वाद दायर किए जा चुके हैं. अभी इन पर स्थानीय अदालत में सुनवाई चल रही है.
ताजमहल क्या पहले तेजो महालय था, 22 तहखानों को खोलने की मांग
भाजपा नेता डॉ. रजनीश सिंह की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें अदालत से ताजमहल के मुख्य हिस्से में स्थित 22 कमरों को खोलने की मांग की गई है. इन कमरों को खोलने की मांग के पीछे का कारण है कि पता लग सकते इनके अंदर देवी देवताओं की मूर्ति और शिलालेख हैं या नहीं. इससे पहले 2015 में लखनऊ के हरिशंकर जैन ने आगरा के सिविल कोर्ट में ताजमहल को श्री अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजमान तेजोमहालय मंदिर घोषित करने को याचिका दायर की थी.
दावा किया जाता है कि 1212 में राजा परमर्दि-देव ने भगवान शिव का मंदिर बनवाया था, जिसे तेजोमहालय या तेजोमहल कहा जाता था. आज वहां ताजमहल मौजूद है. ताजमहल शब्द संस्कृत शब्द तेजोमहालय का ही एक रूप है जो शिव मंदिर को दर्शाता है.इसमें अग्रेश्वर महादेव विराजमान हुआ करते थे. इस याचिका में भी ताजमहल के मुख्य हिस्से में बनी कई तरह की आकृतियां जैसे कमल का फूल, त्रिशूल, नारियल और आम के पेड़ की पत्तियों को हिंदू धर्म के प्रतीक चिह्नों से जोड़ा जा रहा है. हालांकि 2015 में लोकसभा में केंद्र सरकार यह कह चुकी है कि ताजमहल में मंदिर होने का साक्ष्य मौजूद नहीं हैं.
यह विवाद 1989 में तब शुरू हुआ था, जब सूचना और प्रसारण मंत्रालय में काम करने वाले पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपनी एक किताब में यह दावा किया था कि ताजमहल वास्तव में एक प्रचीन शिव मंदिर था. उन्होंने अपनी किताब ट्रू स्टोरी ऑफ ताज में लिखा है कि यह एक शिव मंदिर या राजपूताना महल था, जिसे शाहजहां ने कब्जा कर मकबरे में बदल दिया. ओक ने दावा किया कि ताजमहल से हिंदू अलंकरण और चिन्ह हटा दिए गए और जहां नहीं हटा पाए उन्हें बंद कर दिया. तभी से ताजमहल में शिव मंदिर की तलाश के लिए कोर्ट में याचिका दायर की जाती रही हैं.
मध्यप्रदेश का भोजशाला विवाद, जहां नमाज और पूजा अभी भी जारी है
इंदौर हाई कोर्ट में धार के भोजशाला में मौजूद मंदिर को लेकर एक याचिका दायर की गई है. बता दें कि इसको लेकर काफी दिनों से याचिका इंदौर हाईकोर्ट के समक्ष रखी हुई थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. हाईकोर्ट ने संबंधित विभागों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
मध्यप्रदेश के धार जिले में भोजशाला को लेकर भी विवाद है. परमार वंश से ताल्लुक रखने वाले राजा भोज ने 1034 ईस्वी में एक सरस्वती मंदिर की स्थापना की थी. उन्होंने यहां देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की थी. मां सरस्वती की यह प्रतिमा अभी लंदन में है और विवादित स्थल भोजशाला है. दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय का दावा है कि 1456 में महमूद खिलजी ने भोजशाला के भीतर मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया था. आजादी से काफी पहले ही भोजशाला बनाम दरगाह का विवाद गहरा चुका था. करीब 1920 में इस इमारत को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया गया था.
दोनों पक्षों के दावों को देखते हुए 1935 में धार स्टेट के दीवान नाडकर ने इसमें मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज की इजाजत एक साथ दे दी. तब से यह परंपरा चली आ रही है. भारतीय पुरात्तव विभाग ने भी हिंदुओं को हर मंगलवार को पूजा और मुस्लिमों को हर शुक्रवार को नमाज अता करने की इजाजत दे रखी है. मगर वसंत पंचमी के दिन भोजशाला में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पूजा-अर्चना करने का प्रावधान है. यहां मामला तब फंसता है जब वसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ जाती है. 2016 में ऐसा होने के कारण विवाद गहरा गया था. 2013 में भी पूजा और नमाज को लेकर दोनों पक्षों में विवाद हुआ था. 1989 में अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन के बाद भोजशाला का विवाद राजनीतिक रंग लेने लगा.
कुतुब मीनार क्या विष्णु स्तंभ है, जैन और हिंदू मंदिर तोड़ने का दावा
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कुतुबमीनार को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है. हिंदू संगठनों का दावा है कि कुतुबमीनार परिसर में कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद के ढांचे में लगी मूर्तियां हिंदू धर्म से जुड़ी हैं. उनका दावा है कि ये मूर्तियां राजा अनंगपाल तोमर के बनाए 27 जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर लाई गई थीं और इसे मस्जिद में उल्टा लटका दिया गया. कुतुबमीनार की मौजूदा कॉम्पलेक्स, दीवारों, खंभों पर देवी-देवताओं के चित्र और धार्मिक चिन्ह बने हुए हैं.
इसके अलावा जौनपुर में अटाला मस्जिद, गुजरात के पाटन में जामी मस्जिद, अहमदाबाद में जामा मस्जिद, पश्चिम बंगाल के पांडुआ में अदीना मस्जिद, मध्य प्रदेश के विदिशा में बीजा मंडल मस्जिद को लेकर विवाद गरमाता रहा है. इन सभी मस्जिदों को लेकर यह दावा किया जाता है कि मुगल और मुसलमानों के शासन के दौरान इन मंदिरों को ध्वस्त किया गया.
पढ़ें : धार के भोजशाला में मौजूद मंदिर को लेकर हाई कोर्ट में याचिका स्वीकृत, संबंधित पक्षों को नोटिस