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विपक्ष के साथ जारी रही तनातनी, तो भाजपा के लिए खड़ी हो सकती हैं मुश्किलें

संसद का मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया. इसके बाद भी विपक्ष और सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का ड्रामा चालू है. यह ड्रामा अभी लंबे समय तक चल सकता है. हालांकि, हंगामे के बाद दोनों सदनों में ओबीसी बिल के 127 वे संशोधन को पारित किया गया, लेकिन संसद की गरिमा इस बार कहीं न कहीं तार-तार होती दिखाई पड़ी. जिस तरह मानसून सत्र में पूरा का पूरा विपक्ष लामबंद रहा. उसने कहीं न कहीं सरकार की नींद उड़ा दी है. अगले साल पांच अहम राज्यों में चुनाव है. इन चुनावों के बाद 2024 का लोकसभा चुनाव भी नजदीक है. ऐसे में तीन साल पहले से ही विपक्षियों की यह लामबंदी सरकार के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकती है. इस पर पढ़ें ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट...

विपक्ष-सरकार के बीच तनातनी
विपक्ष-सरकार के बीच तनातनी
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Published : Aug 12, 2021, 8:56 PM IST

नई दिल्ली : संसद का मानसून सत्र खत्म हो जाने के बाद भी विपक्ष और सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का ड्रामा चालू है. एक तरफ संसद का मानसून सत्र तो पूरे हंगामे में धूल ही गया. इसके बाद भी सत्ता पर और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने मैं बाज नहीं आ रहे. यह ड्रामा अभी लंबे समय तक चल सकता है. विपक्ष में मौजूद पार्टियां और सत्ता पक्ष दोनों ही अपने-अपने तरीके से राज्यसभा और लोकसभा हंगामे को राजनीतिक स्वार्थ के लिए भुनाने की कोशिश में लगे हुए हैं.

मानसून सत्र इस बार पूरी तरह हंगामे में धुल गया, हालांकि लोकसभा में विपक्ष के वॉकआउट के बावजूद कई बिल पास पारित भी हुए. इन्हीं विपक्षी पार्टियों के समर्थन से लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ही ओबीसी बिल के 127 वे संशोधन को भी पास कराया गया, लेकिन संसद की गरिमा इस बार कहीं न कहीं तार-तार होती दिखाई पड़ी.

वैसे भी संसदीय परंपरा के अनुसार किसी भी बिल को बगैर विपक्षी सांसदों की सहमति और समर्थन के, या उनकी आपत्तियों को शामिल न करते हुए पारित कर दिया, जाना संसदीय गरिमा के खिलाफ माना जाता है. यह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए इसे अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन विपक्षी एकता इस बार के सत्र में कुछ ऐसी दिखी कि सभी पार्टियों के अपने-अपने एजेंडे के बावजूद भी पेगासस पर सरकार के जवाब नहीं देने की वजह से विपक्ष एक दिन भी राज्यसभा और लोकसभा में पूरी कार्रवाई के दौरान शामिल नहीं हुआ. यह कहीं न कहीं एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ताधारी पार्टी के लिए खतरे की घंटी के समान है.

सरकार के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकती है विपक्षियों की लामबंदी
सूत्रों की मानें तो इस बार मानसून सत्र में पूरा का पूरा विपक्ष, जिस तरह से लामबंद हुआ है. उसने कहीं न कहीं सरकार की नींद उड़ा दी है. अगले साल पांच अहम राज्यों में चुनाव है. इन चुनावों के बाद 2024 का लोकसभा चुनाव भी नजदीक है. ऐसे में तीन साल पहले से ही विपक्षियों की यह लामबंदी सरकार के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकती है. यही वजह है कि, अंदरखाने सूत्रों की माने तो दक्षिण और पूर्वोत्तर की कुछ क्षेत्रीय पार्टियों के संपर्क में सत्ताधारी पार्टी लगातार है ,जो अभी तक विपक्षी खेमे में रहे हैं, वह इसलिए ताकि नवंबर में जब अगला सत्र शुरू हो और इसी तरह , किसी अन्य मुद्दों पर विपक्षियों की लामबंदी नजर आए. जैसे की उम्मीद की जा रही है कि किसान मुद्दा ,पेट्रोल-डीजल और यहां तक कि पेगासस के मुद्दे को भी विपक्ष अगले सत्र तक ज्वलंत रखना चाहता है, ऐसे में सरकार विपक्षियों की लामबंदी में फूट डालने की कोशिश कर सकती है.

सरकार की इस कोशिश का परिणाम कुछ हद तक दिख भी रहा है, जिसमें जेडीएस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा के बयान में भी दिखा, जिसमें उन्होंने राज्यसभा में हुए ऐतिहासिक हंगामे पर नाराजगी जाहिर करते हुए यह कहा कि उन्हें सिर्फ मतलब है कि संसद की कार्यवाही चलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि संसद की कार्यवाही नहीं चलने देना सही नहीं है.

सदन में 28 घंटे 21 मिनट हुआ कामकाज
19 जुलाई से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र की 17 बैठक हुई, जिसमें मात्र 28 घंटे 21 मिनट कामकाज हुआ, जबकि 76 घंटे 26 मिनट संसद में हंगामा होता रहा. मुख्य तौर पर पेगासस के मुद्दे पर ही यह पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया. हालांकि अलग-अलग पार्टियों की मांग महंगाई और किसान आंदोलन जैसे मुद्दे भी थे, लेकिन इन तमाम मुद्दों पर हावी पेगासस का ही मुद्दा रहा, जिस पर विपक्ष लगातार मांग करता रहा, मगर सरकार जवाब नहीं देने पर अड़ी रही, जिसकी वजह से विपक्ष लगातार हंगामा करता रहा और सदन का काम 1 दिन भी निर्बाध रूप से नहीं चल पाया और अंततः 2 दिन पहले ही सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करना पड़ा.

हालांकि हंगामे के बावजूद भी लोकसभा से बेहतर कामकाज राज्यसभा में हुआ. मगर लोकसभा में जिस तरह ऐतिहासिक हंगामा हुआ. वह कहीं न कहीं संसदीय गरिमा के काले पन्ने में दर्ज हो गया. लोकसभा के सभापति ने हंगामे को लेकर विपक्ष की आलोचना तो की ही मगर राज्यसभा में तो राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू विपक्ष की भूमिका से इतने आहत हुए कि सदन में ही भावुक हो गए. इस पर भी विपक्षियों ने इसे भावनात्मक ड्रामा बताते हुए इस पर सांकेतिक भाषा में सरकार की ही एक चाल बताया.

विपक्ष चर्चा नहीं, सिर्फ हंगामा करना चाहता है
सत्र के दौरान ही भाजपा की संसदीय पार्टी की बैठक में प्रधानमंत्री ने विपक्ष की आलोचना करते हुए कहा था कि विपक्ष चर्चा नहीं, सिर्फ हंगामा करना चाहता है और कहीं न कहीं पार्टी को यह संदेश में लिया था कि जिस तरह से मानसून सत्र पूरे हंगामे में धुला है, उसे कहीं ना कहीं संसद के बाद अब सड़क पर उतर कर भी जनता के सामने रखना है और इसी बात को लेकर भाजपा योजना तैयार कर रही है.

पार्टी के विश्वास सूत्रों की माने तो इस सत्र में पारित कराए गए ओबीसी के साथ-साथ अन्य बिलों की चर्चा के अलावा विपक्षी पार्टियों के हंगामे और सभापति और लोकसभा के अध्यक्ष के साथ की गई बदसलूकी को लेकर पूरे देशभर में भारतीय जनता पार्टी की अलग-अलग इकाई धरना प्रदर्शन और प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी, जिसमें ओबीसी बिल की महत्ता को तो समझाया ही जाएगा. इसके साथ ही विपक्ष के हंगामे को भी जन-जन तक पहुंचाने की योजना बनाई जा रही है और इस दौरान संसद में हुए ऐतिहासिक हंगामे और बदसलूकी का जिक्र करते हुए भी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इंन क्लिप को दिखाया जा सकता हैं.

सुदेश वर्मा का बयान
इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी के नेता सुदेश वर्मा का कहना है कि जिस तरह से विपक्षी पार्टियों ने पूरे मानसून सत्र में हंगामा किया उसे जनता देख रही है और अब भी विपक्षी लामबंद होकर सरकार को माफी मांगने की बात कर रहे हैं, जबकि उल्टे माफी विपक्ष को मांगनी चाहिए. उन्होंने महिला मार्शल के साथ बदसलूकी की राज्यसभा के सभापति के आसन पर कागज फेंके कहीं न कहीं विपक्ष ने संसद की गरिमा को तार-तार कर दिया और न सिर्फ संसद के पदाधिकारियों से बल्कि देश से माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि कई जरूरी मुद्दे थे, जिन पर चर्चा होनी थी. कोविड-19 गंभीर मुद्दा था, किसान बिल से संबंधित मुद्दे और भी कई ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे थे, जिन पर इन विपक्षी पार्टियों की वजह से चर्चा नहीं हो पाई.

नई दिल्ली : संसद का मानसून सत्र खत्म हो जाने के बाद भी विपक्ष और सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का ड्रामा चालू है. एक तरफ संसद का मानसून सत्र तो पूरे हंगामे में धूल ही गया. इसके बाद भी सत्ता पर और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने मैं बाज नहीं आ रहे. यह ड्रामा अभी लंबे समय तक चल सकता है. विपक्ष में मौजूद पार्टियां और सत्ता पक्ष दोनों ही अपने-अपने तरीके से राज्यसभा और लोकसभा हंगामे को राजनीतिक स्वार्थ के लिए भुनाने की कोशिश में लगे हुए हैं.

मानसून सत्र इस बार पूरी तरह हंगामे में धुल गया, हालांकि लोकसभा में विपक्ष के वॉकआउट के बावजूद कई बिल पास पारित भी हुए. इन्हीं विपक्षी पार्टियों के समर्थन से लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ही ओबीसी बिल के 127 वे संशोधन को भी पास कराया गया, लेकिन संसद की गरिमा इस बार कहीं न कहीं तार-तार होती दिखाई पड़ी.

वैसे भी संसदीय परंपरा के अनुसार किसी भी बिल को बगैर विपक्षी सांसदों की सहमति और समर्थन के, या उनकी आपत्तियों को शामिल न करते हुए पारित कर दिया, जाना संसदीय गरिमा के खिलाफ माना जाता है. यह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए इसे अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन विपक्षी एकता इस बार के सत्र में कुछ ऐसी दिखी कि सभी पार्टियों के अपने-अपने एजेंडे के बावजूद भी पेगासस पर सरकार के जवाब नहीं देने की वजह से विपक्ष एक दिन भी राज्यसभा और लोकसभा में पूरी कार्रवाई के दौरान शामिल नहीं हुआ. यह कहीं न कहीं एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ताधारी पार्टी के लिए खतरे की घंटी के समान है.

सरकार के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकती है विपक्षियों की लामबंदी
सूत्रों की मानें तो इस बार मानसून सत्र में पूरा का पूरा विपक्ष, जिस तरह से लामबंद हुआ है. उसने कहीं न कहीं सरकार की नींद उड़ा दी है. अगले साल पांच अहम राज्यों में चुनाव है. इन चुनावों के बाद 2024 का लोकसभा चुनाव भी नजदीक है. ऐसे में तीन साल पहले से ही विपक्षियों की यह लामबंदी सरकार के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकती है. यही वजह है कि, अंदरखाने सूत्रों की माने तो दक्षिण और पूर्वोत्तर की कुछ क्षेत्रीय पार्टियों के संपर्क में सत्ताधारी पार्टी लगातार है ,जो अभी तक विपक्षी खेमे में रहे हैं, वह इसलिए ताकि नवंबर में जब अगला सत्र शुरू हो और इसी तरह , किसी अन्य मुद्दों पर विपक्षियों की लामबंदी नजर आए. जैसे की उम्मीद की जा रही है कि किसान मुद्दा ,पेट्रोल-डीजल और यहां तक कि पेगासस के मुद्दे को भी विपक्ष अगले सत्र तक ज्वलंत रखना चाहता है, ऐसे में सरकार विपक्षियों की लामबंदी में फूट डालने की कोशिश कर सकती है.

सरकार की इस कोशिश का परिणाम कुछ हद तक दिख भी रहा है, जिसमें जेडीएस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा के बयान में भी दिखा, जिसमें उन्होंने राज्यसभा में हुए ऐतिहासिक हंगामे पर नाराजगी जाहिर करते हुए यह कहा कि उन्हें सिर्फ मतलब है कि संसद की कार्यवाही चलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि संसद की कार्यवाही नहीं चलने देना सही नहीं है.

सदन में 28 घंटे 21 मिनट हुआ कामकाज
19 जुलाई से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र की 17 बैठक हुई, जिसमें मात्र 28 घंटे 21 मिनट कामकाज हुआ, जबकि 76 घंटे 26 मिनट संसद में हंगामा होता रहा. मुख्य तौर पर पेगासस के मुद्दे पर ही यह पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया. हालांकि अलग-अलग पार्टियों की मांग महंगाई और किसान आंदोलन जैसे मुद्दे भी थे, लेकिन इन तमाम मुद्दों पर हावी पेगासस का ही मुद्दा रहा, जिस पर विपक्ष लगातार मांग करता रहा, मगर सरकार जवाब नहीं देने पर अड़ी रही, जिसकी वजह से विपक्ष लगातार हंगामा करता रहा और सदन का काम 1 दिन भी निर्बाध रूप से नहीं चल पाया और अंततः 2 दिन पहले ही सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करना पड़ा.

हालांकि हंगामे के बावजूद भी लोकसभा से बेहतर कामकाज राज्यसभा में हुआ. मगर लोकसभा में जिस तरह ऐतिहासिक हंगामा हुआ. वह कहीं न कहीं संसदीय गरिमा के काले पन्ने में दर्ज हो गया. लोकसभा के सभापति ने हंगामे को लेकर विपक्ष की आलोचना तो की ही मगर राज्यसभा में तो राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू विपक्ष की भूमिका से इतने आहत हुए कि सदन में ही भावुक हो गए. इस पर भी विपक्षियों ने इसे भावनात्मक ड्रामा बताते हुए इस पर सांकेतिक भाषा में सरकार की ही एक चाल बताया.

विपक्ष चर्चा नहीं, सिर्फ हंगामा करना चाहता है
सत्र के दौरान ही भाजपा की संसदीय पार्टी की बैठक में प्रधानमंत्री ने विपक्ष की आलोचना करते हुए कहा था कि विपक्ष चर्चा नहीं, सिर्फ हंगामा करना चाहता है और कहीं न कहीं पार्टी को यह संदेश में लिया था कि जिस तरह से मानसून सत्र पूरे हंगामे में धुला है, उसे कहीं ना कहीं संसद के बाद अब सड़क पर उतर कर भी जनता के सामने रखना है और इसी बात को लेकर भाजपा योजना तैयार कर रही है.

पार्टी के विश्वास सूत्रों की माने तो इस सत्र में पारित कराए गए ओबीसी के साथ-साथ अन्य बिलों की चर्चा के अलावा विपक्षी पार्टियों के हंगामे और सभापति और लोकसभा के अध्यक्ष के साथ की गई बदसलूकी को लेकर पूरे देशभर में भारतीय जनता पार्टी की अलग-अलग इकाई धरना प्रदर्शन और प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी, जिसमें ओबीसी बिल की महत्ता को तो समझाया ही जाएगा. इसके साथ ही विपक्ष के हंगामे को भी जन-जन तक पहुंचाने की योजना बनाई जा रही है और इस दौरान संसद में हुए ऐतिहासिक हंगामे और बदसलूकी का जिक्र करते हुए भी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इंन क्लिप को दिखाया जा सकता हैं.

सुदेश वर्मा का बयान
इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी के नेता सुदेश वर्मा का कहना है कि जिस तरह से विपक्षी पार्टियों ने पूरे मानसून सत्र में हंगामा किया उसे जनता देख रही है और अब भी विपक्षी लामबंद होकर सरकार को माफी मांगने की बात कर रहे हैं, जबकि उल्टे माफी विपक्ष को मांगनी चाहिए. उन्होंने महिला मार्शल के साथ बदसलूकी की राज्यसभा के सभापति के आसन पर कागज फेंके कहीं न कहीं विपक्ष ने संसद की गरिमा को तार-तार कर दिया और न सिर्फ संसद के पदाधिकारियों से बल्कि देश से माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि कई जरूरी मुद्दे थे, जिन पर चर्चा होनी थी. कोविड-19 गंभीर मुद्दा था, किसान बिल से संबंधित मुद्दे और भी कई ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे थे, जिन पर इन विपक्षी पार्टियों की वजह से चर्चा नहीं हो पाई.

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