नई दिल्ली : कृषि उत्पादों पर लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर आरएसएस से संबद्ध संगठन भारतीय किसान संघ (BKS) ने 11 जनवरी 2022 को देशव्यापी आंदोलन का आवाह्न किया है. यह किसान संघ के आंदोलन का दूसरा चरण होगा. इससे पहले बीते 8 सितंबर को भी देश के सभी जिला मुख्यालय पर लाभकारी मूल्य की मांग के साथ किसान संघ की क्षेत्रीय इकाइयों ने एक दिवसीय धरना दिया था. अब 11 जनवरी के प्रदर्शन में किसान संघ के कार्यकर्ता देश के सभी ब्लॉक, जिला और तहसील स्तर पर न केवल धरना प्रदर्शन करेंगे बल्कि राष्ट्रपति को ज्ञापन भी देंगे.
किसान को एक उद्यमी के रूप में देखा जाना चाहिए : चौधरी
भारतीय किसान संघ हमेशा एमएसपी की बजाय 'लाभकारी मूल्य' शब्द का प्रयोग करता है. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और लाभकारी मूल्य के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महासचिव बद्री नारायण चौधरी (Badri Narayan Choudhary) ने बताया कि एमएसपी के फॉर्मूला में किसान को एक अप्रशिक्षित मजदूर की तरह माना गया है. उसी अनुसार उनके लिए 187 दिन की मजदूरी लागत मूल्य में जोड़ी जाती है लेकिन किसान संघ का मानना है कि किसान को एक उद्यमी के रूप में देखा जाना चाहिए. उसी अनुसार उसका मेहनताना तय किया जाना चाहिए जो लागत मूल्य निर्धारित करने के दौरान जोड़ी जा सके. इसके अनुसार किसान की जमीन के अलावा तमाम कृषि यंत्र, निजी वाहन और जोखिम का भी ध्यान रखते हुए लागत मूल्य की गणना हो.
'ईटीवी भारत' से विशेष बातचीत करते हुए बद्रीनारायण चौधरी ने बताया कि जब तीन कृषि कानून संसद में लाए जाने वाले थे उससे पहले ही भारतीय किसान संघ ने सरकार से मांग की थी कि उनमें कुछ आवश्यक संशोधन किए जाएं नहीं तो वह किसानों को स्वीकार नहीं होंगे. इसके साथ ही किसान संघ ने सरकार से यह भी मांग की थी कि इन कानूनों के साथ एक और कानून जोड़ दें जिसके तहत किसानों के लिए फसल उत्पाद पर लाभकारी मूल्य का प्रावधान हो.
पीएम और कृषि मंत्री को भेजे थे ज्ञापन
सितंबर 2020 में किसान संघ ने लगभग 20 हजार ग्राम समितियों से प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री को ज्ञापन भी भिजवाये थे. किसान संघ ने सरकार पर आरोप लगाए हैं कि उनको केवल हिंसा और राजनैतिक बयानबाज़ी करने वाले किसानों की चिंता है बाकी अराजनैतिक, शान्तिपूर्ण किसानों से कोई लेना देना नहीं है. भारतीय किसान संघ के नेता कहते हैं कि एमएसपी के लिए उनकी लड़ाई नई नहीं है बल्कि वह तब से इसकी मांग कर रहे हैं जब किसान बॉर्डर पर भी नहीं पहुंचे थे लेकिन चूंकि उनका तरीका शान्तिपूर्ण रहा है इसलिए मीडिया ने भी उनके प्रयासों को कभी ज्यादा स्थान नहीं दिया.
'किसानों के हाथ कुछ नहीं आया'
बद्रीनारायण कहते हैं कि तीन कृषि कानूनों से भी देश के किसानों की कुछ अपेक्षाएं थी. जब देश में तमाम आर्थिक सुधार हो रहे हैं तब उन्हें उम्मीद थी कि उनकी भी आमदनी बढ़ेगी. सरकार कभी कहती है कि किसानों की आय दुगनी करेगी, कभी कहती है कि आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर किसान आत्मनिर्भर होंगे और उनको बाजारी ताकतों और मंडी के एजेंटों से आजादी मिलेगी लेकिन अचानक कानून वापसी की घोषणा से किसानों के हाथ निराशा ही लगी है. एक साल से ज्यादा चले आंदोलन से किसान, जनता और सरकार तीनो परेशान थे. जनता भी यह समझ रही थी कि आंदोलन में शामिल नेता किसानों और देश को बादनाम करने का काम कर रहे थे. इन तमाम चीजों के बाद भी यदि कानून वापसी के साथ प्रधानमंत्री कुछ देने की बात कहते तो यह आंदोलन की सफलता कही जाती, लेकिन एक साल के बाद भी किसानों के हाथ वास्तव में कुछ नहीं आया है.
कमेटी गठन के प्रस्ताव पर किसान संघ के महामंत्री कहते हैं कि इसमें किसानों से जुड़े तमाम बिन्दुओं पर बात होनी चाहिए. पूरे देश में जो मुद्दे हैं उन पर गंभीरता से चर्चा हो और जिस तरह से सरकार बाकी अनुशंसाओं को ठंडे बस्ते में डाल देती है उस तरह इस कमेटी का भी न हो. भारतीय किसान संघ ने दिल्ली में एक बड़े कार्यक्रम के आयोजन को तय किया था लेकिन बाद में इसे स्थगित कर दिया और देश के अलग अलग हिस्सों में ही आंदोलन को सीमित रखने का निर्णय लिया गया.
बद्रीनारायण कहते हैं कि दिल्ली या जनता को परेशान करके अपनी बात मनवाने का काम भारतीय संघ नहीं कर सकता बल्कि वह ये मानते हैं कि आम जनों का जितना समर्थन उनके पास होगा, सरकार उतनी ही जल्दी उनकी मांगों को पूरा करेगी. लेकिन इसके साथ ही किसान संघ के नेता ने आगाह भी किया कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वह बड़ा आंदोलन खड़ा करने पर विचार जरूर करेंगे.
'सरकार वार्ता के लिए बुलाएगी तो शामिल होंगे'
संयुक्त किसान मोर्चा के कुछ नेताओं ने आंदोलन स्थगित करने से पहले सरकार के सामने यह शर्त रखी थी कि सरकार द्वारा गठित कमेटी में केवल उन्हीं किसान संगठनों को प्रतिनिधित्व मिले जो एक साल से ज्यादा चले आंदोलन में शामिल थे. जिन संगठनों ने तीन कृषि कानूनों का समर्थन किया उन्हें कमेटी में जगह नहीं मिलनी चाहिए. इस पर टिप्पणी करते हुए बद्रीनारायण चौधरी कहते हैं यदि सरकार किसान संघ को आमंत्रित करेगी तो वह जरूर शामिल होंगे. बाकी कुछ नेता यदि अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा के कारण ऐसा कह रहे हैं तो किसान संघ यह स्पष्ट करता है कि वह ये नहीं मानते कि प्रतिनिधित्व होना अनिवार्य ही है. किसानों के हित में कार्य हो यह आवश्यक है.
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