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विशेष लेख : इतिहास की पांच घातक महामारियां, जिनका अस्तित्व अब मिट चुका है - cholera

कोरोना वायरस के प्रकोप ने विश्व के करोड़ों लोगों का जीवन बदल कर रख दिया है. तारीख के पन्ने इस बात के गवाह हैं कि महामारियों ने दुनिया का इतिहास बदल कर रख दिया. खतरनाक बीमारियों की वजह से सल्तनतें तबाह हो गईं. एक नजर डालते हैं इतिहास की उन पांच घातक महामारियों पर, जिनका अस्तित्व अब मिट चुका है...

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प्रतीकात्मक तस्वीर.
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Published : Apr 18, 2020, 7:50 PM IST

हैदराबाद : दुनिया में कई ऐसी महामारियां आईं, जिन्होंने मानव सभ्यता को उजाड़ कर रख दिया. यहां हम कुछ ऐसी ही भयंकर महामारियों का जिक्र कर रहे हैं, जिनका समय के साथ अस्तित्व समाप्त हो गया.

तारीखों के पुराने पन्ने महामारियों के इतिहास बदलने की मिसालों से भरे पड़े हैं. बीमारियों की वजह से कईं तख्त पलट गए और सल्तनतें तबाह हो गईं. आइए, यहां कुछ ऐसे महामारियों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं, जिसने अपने काल में काफी तबाही मचाई.

1. जस्टिनियन प्लेग

पहली बार साल 541CE में फैले जस्टिनियन प्लेग को इतिहास की दूसरी सबसे घातक महामारी माना जाता है.

यह महामारी मिस्र से फैलनी शुरू हुई. बाद में इस बीमारी ने धीरे-धीरे भूमध्य सागर के आसपास के पूरे इलाके- यूरोप, एशिया, उत्तरी अफ्रीका और अरब और रोम साम्राज्य को अपनी चपेट में ले लिया. इससे लगभग पांच करोड़ लोगों की मौत हुई, जो उस समय की वैश्विक जनसंख्या की आधी आबादी थी. यह घातक महामारी प्लेग घातक एक एकल जीवाणु, यर्सिनिया पेस्टिस के संक्रमण के कारण हुई थी.

2. 'द ब्लैक डेथ'

14वीं सदी में फैली 'द ब्लैक डेथ' ने भारी तबाही मचाई.

प्लेग वास्तव में समाप्त नहीं हुआ था. जब यह 800 साल बाद लौटा तो उसने भारी तबाही मचाई. 1347 में यूरोप में पहुंची ब्लैक डेथ ने महज चार साल में 20 करोड़ लोगों की जान ले ली.

एशिया से फैलना शुरू हुई यह बीमारी अक्टूबर 1347 में इटली के मेसीना बंदरगाह पर आए 12 जहाजों के साथ यूरोप में पहुंची.

इन जहाजों में ज्यादातर लोग मृत पाए गए और जो जिंदा थे, वे बेहद बीमार थे. जहाजों को तत्काल वापस भेज दिया गया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और बीमारी धीरे-धीरे पूरे यूरोप में फैल गई.

3. द ग्रेट प्लेग ऑफ लंदन

ब्लैक डेथ के बाद लंदन ने कभी ब्रेक नहीं लिया. 1348 से 1665 तक 300 वर्षों में महामारी ने ब्रिटिश राजधानी में रहने वाले 20 प्रतिशत पुरुष, महिलाएं और बच्चो को अपना शिकार बनाया.

1500 के दशक के प्रारंभ में, इंग्लैंड ने बीमारों को अलग करने और पृथक करने के लिए पहला कानून लागू किया. इसके तहत यदि किसी ने अपने परिवार के सदस्यों को संक्रमित किया है तो सार्वजनिक रूप से बाहर जाने पर उसे एक सफेद पोल ले जाना पड़ता था.

द ग्रेट प्लेग ऑफ 1665 आखिरी और सदियों से चले आ रहे सबसे बुरे प्रकोपों ​​में से एक था, जिसने केवल सात महीनों में 100,000 लंदनवासियों की जान ले ली थी.

उस वक्त सभी सार्वजनिक मनोरंजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए पीड़ितों को जबरन उनके घरों में बंद कर दिया जाता था. मरीज के घर के दरवाजे पर लाल क्रॉस लगाया जाता था. जिस पर लिखा होता था- 'भगवान हम पर दया करें.' उस समय महामारी को समाप्त करने का यही एक तरीका था.

4. चेचक

चेचक यूरोप, एशिया और अरब के लिए महामारी थी. एक ऐसा खतरा, जिसने संक्रमित दस में से तीन लोगों को मार दिया और बाकी के जो जीवित बचे, उनके शरीर पर कभी ना मिटने वाला निशान छोड़ दिया.

एडवर्ड जेनर एक प्रसिद्ध कायचिकित्सक थे. विश्व में इनका नाम इसलिए भी प्रसिद्ध है कि इन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार किया था. एडवर्ड जेनर के इस आविष्कार से आज करोड़ों लोग चेचक जैसी घातक बीमारी से ठीक हो रहे हैं.

यदि एडवर्ड जेनर नहीं होते तो आज सम्पूर्ण दुनिया के हजारों लोग लोग प्रतिवर्ष सिर्फ चेचक द्वारा काल के ग्रास बन रहे होते.

सन 1796 में एडवर्ड जेनर द्वारा इसकी खोज किए जाने के बाद से ही लोगों ने टीके का प्रयोग शुरू कर दिया था कि काउपॉक्स के फोड़ों से निकले पदार्थ के संपर्क में आने से लोगों को चेचक से सुरक्षा मिल सकती है. जेनर के काम से आखिरकार दुनियाभर में चेचक के टीके का निर्माण वाणिज्यीकीरण शुरू हुआ.

चेचक के टीके के सफलतापूर्वक इस्तेमाल से चेचक के मामले धीरे-धीरे कम होते गए. 1980 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आधिकारिक रूप से चेचक के उन्मूलन की घोषणा की.

5. हैजा ( Cholera)

19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, इंग्लैंड में हैजा का प्रकोप हुआ था. इस महामारी में हजारों लोग मारे गए थे. मनुष्यों में यह रोग दूषित भोजन या पानी को ग्रहण करने के माध्यम से होता है. यह रोग विब्रियो कोलरा बैक्टीरिया के कारण होता है.

जॉन स्नो नाम के ब्रिटिश डॉक्टर को संदेह था कि रहस्यमय बीमारी पानी की वजह से हुई, जिसके कारण मरीज मर गया. स्नो ने इस पर काफी काम किया. उन्होंने अस्पताल के रिकॉर्ड और मुर्दाघर की रिपोर्टों की जांच कर घातक प्रकोपों ​​के सटीक स्थानों पर नजर रखी.

उन्होंने 10 दिन की अवधि में हैजे से होने वाली मौतों का भौगोलिक चार्ट बनाया और पीने के पानी के लिए लोकप्रिय शहर, ब्रॉड स्ट्रीट पंप के आसपास 500 घातक संक्रमणों का एक समूह पाया. उन्हें यह ज्ञात हुआ कि इस दूषित पानी की वजह से ही हैजा लोगों को मार रहा है.

स्नो ने स्थानीय अधिकारियों से कहकर ब्रॉड स्ट्रीट पर पंप के हैंडल को हटा दिया. इसके बाद वहां से संक्रमण समाप्त हो गया.

स्नो के काम ने हैजा को रातोंरात ठीक तो नहीं किया, लेकिन इसने अंततः शहरी स्वच्छता में सुधार लाने और पीने के पानी को प्रदूषण से बचाने के लिए उनका वैश्विक प्रयास सराहनीय रहा.

हालांकि विकसित देशों में हैजा काफी हद तक खत्म हो चुका है, फिर भी कम विकसित देशों में सीवेज की लगातार सफाई और पीने के साफ पानी की सुविधा का आज भी अभाव है.

हैदराबाद : दुनिया में कई ऐसी महामारियां आईं, जिन्होंने मानव सभ्यता को उजाड़ कर रख दिया. यहां हम कुछ ऐसी ही भयंकर महामारियों का जिक्र कर रहे हैं, जिनका समय के साथ अस्तित्व समाप्त हो गया.

तारीखों के पुराने पन्ने महामारियों के इतिहास बदलने की मिसालों से भरे पड़े हैं. बीमारियों की वजह से कईं तख्त पलट गए और सल्तनतें तबाह हो गईं. आइए, यहां कुछ ऐसे महामारियों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं, जिसने अपने काल में काफी तबाही मचाई.

1. जस्टिनियन प्लेग

पहली बार साल 541CE में फैले जस्टिनियन प्लेग को इतिहास की दूसरी सबसे घातक महामारी माना जाता है.

यह महामारी मिस्र से फैलनी शुरू हुई. बाद में इस बीमारी ने धीरे-धीरे भूमध्य सागर के आसपास के पूरे इलाके- यूरोप, एशिया, उत्तरी अफ्रीका और अरब और रोम साम्राज्य को अपनी चपेट में ले लिया. इससे लगभग पांच करोड़ लोगों की मौत हुई, जो उस समय की वैश्विक जनसंख्या की आधी आबादी थी. यह घातक महामारी प्लेग घातक एक एकल जीवाणु, यर्सिनिया पेस्टिस के संक्रमण के कारण हुई थी.

2. 'द ब्लैक डेथ'

14वीं सदी में फैली 'द ब्लैक डेथ' ने भारी तबाही मचाई.

प्लेग वास्तव में समाप्त नहीं हुआ था. जब यह 800 साल बाद लौटा तो उसने भारी तबाही मचाई. 1347 में यूरोप में पहुंची ब्लैक डेथ ने महज चार साल में 20 करोड़ लोगों की जान ले ली.

एशिया से फैलना शुरू हुई यह बीमारी अक्टूबर 1347 में इटली के मेसीना बंदरगाह पर आए 12 जहाजों के साथ यूरोप में पहुंची.

इन जहाजों में ज्यादातर लोग मृत पाए गए और जो जिंदा थे, वे बेहद बीमार थे. जहाजों को तत्काल वापस भेज दिया गया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और बीमारी धीरे-धीरे पूरे यूरोप में फैल गई.

3. द ग्रेट प्लेग ऑफ लंदन

ब्लैक डेथ के बाद लंदन ने कभी ब्रेक नहीं लिया. 1348 से 1665 तक 300 वर्षों में महामारी ने ब्रिटिश राजधानी में रहने वाले 20 प्रतिशत पुरुष, महिलाएं और बच्चो को अपना शिकार बनाया.

1500 के दशक के प्रारंभ में, इंग्लैंड ने बीमारों को अलग करने और पृथक करने के लिए पहला कानून लागू किया. इसके तहत यदि किसी ने अपने परिवार के सदस्यों को संक्रमित किया है तो सार्वजनिक रूप से बाहर जाने पर उसे एक सफेद पोल ले जाना पड़ता था.

द ग्रेट प्लेग ऑफ 1665 आखिरी और सदियों से चले आ रहे सबसे बुरे प्रकोपों ​​में से एक था, जिसने केवल सात महीनों में 100,000 लंदनवासियों की जान ले ली थी.

उस वक्त सभी सार्वजनिक मनोरंजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए पीड़ितों को जबरन उनके घरों में बंद कर दिया जाता था. मरीज के घर के दरवाजे पर लाल क्रॉस लगाया जाता था. जिस पर लिखा होता था- 'भगवान हम पर दया करें.' उस समय महामारी को समाप्त करने का यही एक तरीका था.

4. चेचक

चेचक यूरोप, एशिया और अरब के लिए महामारी थी. एक ऐसा खतरा, जिसने संक्रमित दस में से तीन लोगों को मार दिया और बाकी के जो जीवित बचे, उनके शरीर पर कभी ना मिटने वाला निशान छोड़ दिया.

एडवर्ड जेनर एक प्रसिद्ध कायचिकित्सक थे. विश्व में इनका नाम इसलिए भी प्रसिद्ध है कि इन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार किया था. एडवर्ड जेनर के इस आविष्कार से आज करोड़ों लोग चेचक जैसी घातक बीमारी से ठीक हो रहे हैं.

यदि एडवर्ड जेनर नहीं होते तो आज सम्पूर्ण दुनिया के हजारों लोग लोग प्रतिवर्ष सिर्फ चेचक द्वारा काल के ग्रास बन रहे होते.

सन 1796 में एडवर्ड जेनर द्वारा इसकी खोज किए जाने के बाद से ही लोगों ने टीके का प्रयोग शुरू कर दिया था कि काउपॉक्स के फोड़ों से निकले पदार्थ के संपर्क में आने से लोगों को चेचक से सुरक्षा मिल सकती है. जेनर के काम से आखिरकार दुनियाभर में चेचक के टीके का निर्माण वाणिज्यीकीरण शुरू हुआ.

चेचक के टीके के सफलतापूर्वक इस्तेमाल से चेचक के मामले धीरे-धीरे कम होते गए. 1980 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आधिकारिक रूप से चेचक के उन्मूलन की घोषणा की.

5. हैजा ( Cholera)

19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, इंग्लैंड में हैजा का प्रकोप हुआ था. इस महामारी में हजारों लोग मारे गए थे. मनुष्यों में यह रोग दूषित भोजन या पानी को ग्रहण करने के माध्यम से होता है. यह रोग विब्रियो कोलरा बैक्टीरिया के कारण होता है.

जॉन स्नो नाम के ब्रिटिश डॉक्टर को संदेह था कि रहस्यमय बीमारी पानी की वजह से हुई, जिसके कारण मरीज मर गया. स्नो ने इस पर काफी काम किया. उन्होंने अस्पताल के रिकॉर्ड और मुर्दाघर की रिपोर्टों की जांच कर घातक प्रकोपों ​​के सटीक स्थानों पर नजर रखी.

उन्होंने 10 दिन की अवधि में हैजे से होने वाली मौतों का भौगोलिक चार्ट बनाया और पीने के पानी के लिए लोकप्रिय शहर, ब्रॉड स्ट्रीट पंप के आसपास 500 घातक संक्रमणों का एक समूह पाया. उन्हें यह ज्ञात हुआ कि इस दूषित पानी की वजह से ही हैजा लोगों को मार रहा है.

स्नो ने स्थानीय अधिकारियों से कहकर ब्रॉड स्ट्रीट पर पंप के हैंडल को हटा दिया. इसके बाद वहां से संक्रमण समाप्त हो गया.

स्नो के काम ने हैजा को रातोंरात ठीक तो नहीं किया, लेकिन इसने अंततः शहरी स्वच्छता में सुधार लाने और पीने के पानी को प्रदूषण से बचाने के लिए उनका वैश्विक प्रयास सराहनीय रहा.

हालांकि विकसित देशों में हैजा काफी हद तक खत्म हो चुका है, फिर भी कम विकसित देशों में सीवेज की लगातार सफाई और पीने के साफ पानी की सुविधा का आज भी अभाव है.

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