ETV Bharat / bharat

इस शहर के जर्रे-जर्रे में बसे हैं बापू, आज भी मौजूदगी का एहसास कराता है हरिजन गुरूद्वारा

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे, वे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती थी. ईटीवी भारत ऐसे ही जगहों से गांधी से जुड़ी कई यादें आपको प्रस्तुत कर रहा है. पेश है आज 18वीं कड़ी.

दमोह का हरिजन गुरुद्वारा
author img

By

Published : Sep 2, 2019, 7:03 AM IST

Updated : Sep 29, 2019, 3:30 AM IST

दमोह : एक इंसान, जिसने अछूतों के दर्द को महसूस किया और छुआछूत के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद की, इसी सोच ने इस इंसान को महात्मा बना दिया, तब ये महात्मा लाठी लेकर निकल पड़ा और देश के जर्रे-जर्रे की खाक छान डाली, उस दौरान इस महात्मा के पैर जहां भी पड़े, वहां आज भी उनके कदमों के निशान मौजूद हैं. पूरा देश इस साल दो अक्टूबर को इसी महात्मा की 150वीं जयंती मना रहा है.

अंग्रेजों को धूल चटाने के लिए महात्मा गांधी जब हिंदुस्तान के जर्रे-जर्रे की खाक छान रहे थे, उस दौरान उनके कदम जहां भी पड़े, वो जगह तारीख पर दर्ज होती गई. एक बार पदयात्रा करते हुए गांधीजी मध्यप्रदेश के दमोह पहुंचे. जहां उनकी स्मृतियों की अमिट छाप अब भी मौजूद है. दमोह में महात्मा गांधी ने हरिजन मोहल्ले में हरिजन सेवक संघ के गठन के साथ ही हरिजन गुरुद्वारे की नींव रखी थी. जहां लगी बापू की प्रतिमा आज भी उनकी प्रतिमा लगी है. इस गुरुद्वारे में सुबह-शाम अरदास होती है.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मध्यप्रदेश के जबलपुर से शुरु की थी. तब वे कई गांवों से होते हुए दमोह पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने कई संभाएं भी की थी. दमोह में शहर में आज भी कई स्मृतियां मौजूद है. जो बापू के विचारों का हमे एहसास कराती है. दमोह के रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खेमचंद बजाज उनकी इन्ही स्मृतियों के साक्षी रहे हैं.

ये भी पढ़ें: बापू ने MP के छिंदवाड़ा से बजाई थी दुंदुभी, यहीं हुई थी असहयोग आंदोलन की पहली सभा

खेमचंद बताते हैं कि 29 अक्टूबर 1933 को महात्मा गांधी दमोह आए थे. तब उनके साथ लोगों का काफिला चल पड़ा था, तब जहां गांधीजी ने सभा की थी, उसी जगह पर गांधी चबूतरे का निर्माण कराया गया है. जिस मकान में गाधीजी एक रात रुके थे, वह मकान भी महात्मा के आगमन का साक्षी है. गुजराती परिवार का ये मकान अब खंडहर हो चला है, लेकिन बापू की यादें आज भी यहां जिंदा हैं.

ये भी पढ़ें: गांधीवाद पर अन्ना हजारे का विशेष साक्षात्कार, एक नजर

व्यापारियों ने गांधीजी के सम्मान में पूरी सड़क को कपड़ों से पाट दिया था, जिसके ऊपर से गुजरकर वे सभा स्थल तक गये थे. यही वजह है कि गांधी चौक के आसपास आज भी कपड़ा बाजार लगता है, इसके अलावा भी गांधीजी से जुड़ी तमाम स्मृतियां हैं. दमोह अपनी कला-संस्कृति के लिए जाना जाता है, लेकिन बापू की स्मृतियां यहां की प्राचीन विरासत को और बढ़ाती हैं, जिससे दमोह का गौरव और बढ़ जाता है.

दमोह : एक इंसान, जिसने अछूतों के दर्द को महसूस किया और छुआछूत के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद की, इसी सोच ने इस इंसान को महात्मा बना दिया, तब ये महात्मा लाठी लेकर निकल पड़ा और देश के जर्रे-जर्रे की खाक छान डाली, उस दौरान इस महात्मा के पैर जहां भी पड़े, वहां आज भी उनके कदमों के निशान मौजूद हैं. पूरा देश इस साल दो अक्टूबर को इसी महात्मा की 150वीं जयंती मना रहा है.

अंग्रेजों को धूल चटाने के लिए महात्मा गांधी जब हिंदुस्तान के जर्रे-जर्रे की खाक छान रहे थे, उस दौरान उनके कदम जहां भी पड़े, वो जगह तारीख पर दर्ज होती गई. एक बार पदयात्रा करते हुए गांधीजी मध्यप्रदेश के दमोह पहुंचे. जहां उनकी स्मृतियों की अमिट छाप अब भी मौजूद है. दमोह में महात्मा गांधी ने हरिजन मोहल्ले में हरिजन सेवक संघ के गठन के साथ ही हरिजन गुरुद्वारे की नींव रखी थी. जहां लगी बापू की प्रतिमा आज भी उनकी प्रतिमा लगी है. इस गुरुद्वारे में सुबह-शाम अरदास होती है.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मध्यप्रदेश के जबलपुर से शुरु की थी. तब वे कई गांवों से होते हुए दमोह पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने कई संभाएं भी की थी. दमोह में शहर में आज भी कई स्मृतियां मौजूद है. जो बापू के विचारों का हमे एहसास कराती है. दमोह के रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खेमचंद बजाज उनकी इन्ही स्मृतियों के साक्षी रहे हैं.

ये भी पढ़ें: बापू ने MP के छिंदवाड़ा से बजाई थी दुंदुभी, यहीं हुई थी असहयोग आंदोलन की पहली सभा

खेमचंद बताते हैं कि 29 अक्टूबर 1933 को महात्मा गांधी दमोह आए थे. तब उनके साथ लोगों का काफिला चल पड़ा था, तब जहां गांधीजी ने सभा की थी, उसी जगह पर गांधी चबूतरे का निर्माण कराया गया है. जिस मकान में गाधीजी एक रात रुके थे, वह मकान भी महात्मा के आगमन का साक्षी है. गुजराती परिवार का ये मकान अब खंडहर हो चला है, लेकिन बापू की यादें आज भी यहां जिंदा हैं.

ये भी पढ़ें: गांधीवाद पर अन्ना हजारे का विशेष साक्षात्कार, एक नजर

व्यापारियों ने गांधीजी के सम्मान में पूरी सड़क को कपड़ों से पाट दिया था, जिसके ऊपर से गुजरकर वे सभा स्थल तक गये थे. यही वजह है कि गांधी चौक के आसपास आज भी कपड़ा बाजार लगता है, इसके अलावा भी गांधीजी से जुड़ी तमाम स्मृतियां हैं. दमोह अपनी कला-संस्कृति के लिए जाना जाता है, लेकिन बापू की स्मृतियां यहां की प्राचीन विरासत को और बढ़ाती हैं, जिससे दमोह का गौरव और बढ़ जाता है.

Intro:Body:Conclusion:
Last Updated : Sep 29, 2019, 3:30 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.