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हिमाचल प्रदेश : बज्रेश्वरी देवी मंदिर में घृत पर्व की तैयारियां जोरों पर

शक्तिपीठ बज्रेश्वरी देवी मंदिर में घृत पर्व के लिए तैयार किए जाने वाले मक्खन के लिए श्रद्धालुओं द्वारा देसी घी दान में देने का सिलसिला जारी है. उत्सव मनाने के लिए मंदिर प्रशासन के पास लगभग 30 क्विंटल से ज्यादा देसी घी पहुंच चुका है.

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बज्रेश्वरी देवी मंदिर
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Published : Jan 12, 2020, 5:48 PM IST

कांगड़ा : शक्तिपीठ बज्रेश्वरी देवी मंदिर में घृत पर्व को लेकर तैयारियां अंतिम दौर में हैं. घृत पर्व के लिए मक्खन बनाने का कार्य लगातार चल रहा है. मंदिर के पुजारियों ने एक क्विंटल से अधिक मक्खन तैयार कर लिया है.

मंदिर में घृत पर्व के लिए तैयार किए जाने वाले मक्खन के लिए श्रद्धालुओं द्वारा देसी घी के दान का सिलसिला जारी है. इस कड़ी में मंदिर प्रशासन के पास 30 क्विंटल से अधिक देसी घी पहुंच चुका है.

वरिष्ठ पुजारी एवं मंदिर ट्रस्ट के सदस्य पंडित राम प्रसाद शर्मा ने बताया कि घी बनाने वाली एक निजी कंपनी ने लगभग 15 क्विंटल देसी घी मंदिर को दान में दिया है. वहीं श्रद्धालु भी लगभग 15 क्विंटल देसी घी मंदिर में दान कर चुके हैं.

बज्रेश्वरी देवी मंदिर में चल रहीं घृत पर्व की तैयारियां.

आपको बता दें कि बज्रेश्वरी देवी मंदिर का मुख्य आयोजन घृत पर्व है. यह साल में एक बार मकर संक्रांति के दौरान मनाया जाता है. इस पर्व के आयोजन के पीछे कई तरह की मान्यताएं हैं.

एक मान्यता के अनुसार जालंधर दैत्य को मारते समय माता के शरीर पर कई चोटें आईं. इन घावों को ठीक करने के लिए माता के शरीर पर घृत का लेप किया गया था.

ये भी पढ़ें: पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय में फर्जी नियुक्ति पत्र मामले में हड़कंप, प्रशासन ने झांसे में न आने की अपील

कहा जाता है कि उस दौरान देवी-देवताओं ने देसी घी को एक सौ एक बार ठंडे पानी से धोकर उसका मक्खन बनाया था और उसे माता के शरीर पर आए घावों पर लगाया था.

इस परंपरा को शुरू होने का सही उल्लेख तो नहीं मिलता है, लेकिन सदियों से इसका निर्वहन किया जा रहा है. फल और मेवों से माता की पिंडी का शृंगार भी किया जाता है.

वहीं दूसरी तरफ, प्रदेश सरकार ने हाल ही में इस पर्व को जिला स्तरीय पर्व घोषित कर दिया है, जिसे लेकर पुजारी वर्ग काफी उत्साहित नजर आ रहा है.

कांगड़ा : शक्तिपीठ बज्रेश्वरी देवी मंदिर में घृत पर्व को लेकर तैयारियां अंतिम दौर में हैं. घृत पर्व के लिए मक्खन बनाने का कार्य लगातार चल रहा है. मंदिर के पुजारियों ने एक क्विंटल से अधिक मक्खन तैयार कर लिया है.

मंदिर में घृत पर्व के लिए तैयार किए जाने वाले मक्खन के लिए श्रद्धालुओं द्वारा देसी घी के दान का सिलसिला जारी है. इस कड़ी में मंदिर प्रशासन के पास 30 क्विंटल से अधिक देसी घी पहुंच चुका है.

वरिष्ठ पुजारी एवं मंदिर ट्रस्ट के सदस्य पंडित राम प्रसाद शर्मा ने बताया कि घी बनाने वाली एक निजी कंपनी ने लगभग 15 क्विंटल देसी घी मंदिर को दान में दिया है. वहीं श्रद्धालु भी लगभग 15 क्विंटल देसी घी मंदिर में दान कर चुके हैं.

बज्रेश्वरी देवी मंदिर में चल रहीं घृत पर्व की तैयारियां.

आपको बता दें कि बज्रेश्वरी देवी मंदिर का मुख्य आयोजन घृत पर्व है. यह साल में एक बार मकर संक्रांति के दौरान मनाया जाता है. इस पर्व के आयोजन के पीछे कई तरह की मान्यताएं हैं.

एक मान्यता के अनुसार जालंधर दैत्य को मारते समय माता के शरीर पर कई चोटें आईं. इन घावों को ठीक करने के लिए माता के शरीर पर घृत का लेप किया गया था.

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कहा जाता है कि उस दौरान देवी-देवताओं ने देसी घी को एक सौ एक बार ठंडे पानी से धोकर उसका मक्खन बनाया था और उसे माता के शरीर पर आए घावों पर लगाया था.

इस परंपरा को शुरू होने का सही उल्लेख तो नहीं मिलता है, लेकिन सदियों से इसका निर्वहन किया जा रहा है. फल और मेवों से माता की पिंडी का शृंगार भी किया जाता है.

वहीं दूसरी तरफ, प्रदेश सरकार ने हाल ही में इस पर्व को जिला स्तरीय पर्व घोषित कर दिया है, जिसे लेकर पुजारी वर्ग काफी उत्साहित नजर आ रहा है.

Intro:शक्तिपीठ माता श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर में घृत पर्व को लेकर तैयारियां अंतिम दौर में हैं। शनिवार को भी घृत पर्व के लिए मक्खन बनाने का कार्य चलता रहा है। मंदिर के पुजारियों द्वारा एक क्विंटल से अधिक मक्खन को तैयार कर लिया गया है। मंदिर में घृत पर्व के लिए तैयार किए जाने वाले मक्खन के लिए श्रद्धालुओं द्वारा देसी घी दान में देने का सिलसिला जारी है। मंदिर प्रशासन के पास लगभग 30 क्विंटल से अधिक देसी घी पहुंच चुका है। Body:वरिष्ठ पुजारी एवं मंदिर ट्रस्ट के सदस्य पंडित राम प्रसाद शर्मा ने बताया कि वीटा घी बनाने वाली कंपनी ने अपनी ओर से लगभग 15 क्विंटल देसी घी मंदिर को दान में दिया है। वहीं श्रद्धालुओं द्वारा भी लगभग 15 क्विंटल देसी घी मंदिर में दिया जा चुका है। Conclusion:बता दें कि बज्रेश्वरी देवी मंदिर का मुख्य आयोजन घृत पर्व ही होता है। यह साल में एक बार मकर संक्रांति के दौरान ही मनाया जाता है। घृत मंडल पर्व के आयोजन के पीछे कई तरह की मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार जालंधर दैत्य को मारते समय माता के शरीर पर अनेक चोटें आई थीं। इन घावों को ठीक करने के लिए माता के शरीर पर घृत का लेप किया था। कहा जाता है कि उस दौरान देवी-देवताओं ने देसी घी को एक सौ एक बार शीतल जल से धोकर उसका मक्खन बनाया था और उसे माता के शरीर पर आए घावों पर लगाया था। इस परंपरा को शुरू होने का सही उल्लेख तो नहीं मिलता है, लेकिन सदियों से इसका निर्वहन किया जा रहा है। मक्खन से मां का सजाने के बाद फल और मेवों से इस पिंडी का श्रृंगार किया जाता है। वहीं प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में इस पर्व को जिला स्तरीय पर्व घोषित कर दिया गया है, जिसे लेकर पुजारी वर्ग काफी उत्साहित नजर आ रहा है।
विसुअल
माखन से बनाया गया घी।
बाइट
पुजारी राम प्रसाद शर्मा।
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