जोधपुर. गणगौर के बाद जोधपुर में धींगा गवर का आयोजन होता है. इसके लिए यहां पर घुड़ला भी अलग तरह का निकलता है. जिसमें महिला बनकर पुरुष अपने सिर पर घुड़ला उठाता है. खास बात यह है कि महिला बनने के लिए पुरुषों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है. सोमवार को इस बार घुड़ला उठाने का मौका अक्षय लोहिया को दिया गया है. अक्षय एक आईटी कंपनी में एचआर मैनेजर हैं. इसके लिए अक्षय को आडिशन से गुजरना पड़ा. फगड़ा घुड़ला कमेटी ने अक्षय से कई सवाल पूछे उसके बाद ही उसे इस साल घुड़ला उठाने के लिए चयनित किया गया. शाम को अक्षय सोलह श्रृंगार के साथ गहने पहन कर घुड़ला उठाया.
जालौरी गेट से निकला फगड़ा घुड़ला घूमता हुआ भीतरी शहर में विसर्जित हुआ. जोधपुर में इस बार फगड़ा घुड़ला कमेटी के इस आयोजन का 54 वां साल है. 1969 से यहां पुरुषों की ओर से घुड़ला उठाने की परंपरा चली आ रही है. कोरोना के चलते दो साल इसका आयेाजन नहीं हुआ था. इस दौरान सर्वाधिक 25 साल तक नैनसा उर्फ सोमप्रकाश सोनी ने घुडला उठाया है. अक्षय का चयन होने के बाद उसे मेहंदी लगाई गई. उसे उबटन भी लगाया गया. उसके लिए लाल सुर्ख जोड़ा तैयार किया गया. सोमवार को दोपहर 12 बजे उसका मेकअप शुरू हुआ. पार्लर पर करीब 6 घंटे तक उसका मेकअप हुआ. इसके बाद वह तैयार होकर घुड़ला लेकर निकला.
घुड़ला की मान्यताः बताया जाता है कि सन 1578 में अजमेर की शाही सेना ने जोधपुर रियासत के पीपाड़ के पास गणगौर पूजा कर रही कुछ महिलाओं का अपहरण कर लिया था. यह काम सेनापति घुड़ले खां ने किया था. इसका पता लगने पर राव जोधा के पुत्र राव सातल ने वहां जाकर मोर्चा संभाला. घुड़ले खां का सिर काट दिया. इससे पहले उसके सिर पर कई तीर मारे गए थे. उसका सिर महिलाओं को दे दिया. महिलाएं इसे अपनी विजय के रूप में लेकर घूमी थी.
संदेश दिया था कि महिलाओं के साथ बुरा करने का अंजाम बुरा होता है. इसके बाद से धींगा गवर से पहले महिलाएं मिट्टी के मटका जिसके चारों तरफ कई छेद होते हैं. उसमें दीपक लगाकर घूमती हैं. छेद वाला मटका घुड़ले खां का प्रतीक बन गया. महिलाएं घरों में घुड़ला रखती हैं. कन्याएं इसे उठाकर घूमती हैं. लेकिन 1969 में जोधपुर में फगड़ा घुड़ला कमेटी का गठन कर इसे बडे़ मेले का रूप दिया गया. फगडे़ के नाम पर पुरुष को महिला बनाने का क्रम शुरू हुआ. इस मेले में कई झांकिया भी निकलती है. गवर के ससुराल जाने की रस्म भोलावणी भी होती है.
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