होली में फाग गायन की दिलचस्प कहानी, मृत्यु शोक परिवारों में जाकर आखिर क्यों होता है फागों का गायन - होली में फाग गायन की दिलचस्प कहानी
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रंगों के पर्व होली पर फाग गाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. देश के शहरी इलाकों में भले ही फाग का चलन कम है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी फाग पूरे उत्साह और उमंग के साथ गाई जाती हैं. मूल रूप से फाग को उत्साह और उमंग से जोड़ा जाता है, लेकिन इसके पीछे की कहानी भी बड़ी ही दिलचस्प है. दरअसल फाग उन परिवारों में जाकर गाने का चलन है. पूर्व के समय मृत्यु शोक हुआ हो और वह परिवार किसी भी त्योहार को नहीं मनाते हों. होली के मौके पर फाग गाने के साथ ही मृत्यु शोक में डूबे परिवारों में आने वाले त्योहारों को पारंपरिक तरीके से मनाने का चलन शुरू हो जाता है. ग्रामीण इलाकों में होली के मौके पर फाग को पूरे पारंपरिक अंदाज के साथ गाया जाता है. मंडलियों में शामिल सदस्य उन परिवारों के बीच पहुंचे, जहां के सदस्य मृत्यु शोक में डूबे थे. होली के मौके पर गली मोहल्लों और चौक चौराहों में भले ही रंग गुलाल उड़ेलकर लोग मस्ती से सराबोर दिखे, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में फाग की मंडलियों ने अपनी परंपरा के मुताबिक फाग के गीत गाए और शोक में डूबे परिवारों से मिलकर उन्हें रंग गुलाल लगाकर उनके साथ दुख बांटा और उन्हें आने वाले त्योहारों को मनाने के लिए तैयार भी किया गया.