MP Assembly Election Podcast: ऐसी विधानसभा की कहानी, जहां राजा अपनी रियासत में ही नहीं जीत सके चुनाव

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 11, 2023, 10:03 PM IST

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देवास। मध्यप्रदेश विधानसभा में एक ऐसी विधानसभा सीट भी है, जहां राजशाही के बाद लोकतंत्र आया तो मतदाताओं ने अपने राजा को ही नकार दिया. देवास जिले की बागली विधानसभा सीट से बागली राजा छत्र सिंह दो बार चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन दोनों ही बार सफलता हाथ नहीं लगी. दरअसल बागली विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 में हुआ था, लेकिन उसके पहले 1960 में बागली में राजपूत क्लब का गठन किया गया. इस क्लब में बागली रियासत के राजा छत्रसिंह को सचिव बनाया गया. इस क्लब में नियम रखा गया कि क्लब का कोई भी पदाधिकारी चुनाव नहीं लड़ सकेगा. इस नियम की वजह से राजा छत्र सिंह चाहते हुए भी 1962 में हुए बागली विधानसभा चुनाव में नहीं उतर सके. उन्होंने अपने करीबी दोस्त कैलाश जोशी को जनसंघ से बागली का उम्मीदवार बना दिया. कैलाश जोशी यह चुनाव 6 हजार 352 वोटों से जीत गए. इस चुनाव के बाद इस सीट पर कैलाश जोशी और बीजेपी की पकड़ इतनी मजबूत हो गई कि उसे बाद में राजा छत्र सिंह भी नहीं हिला सके. राजा छत्रसिंह की पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय माधव राव सिंधिया से मित्रता थी. सिंधिया के आग्रह पर छत्रसिंह कांग्रेस में शामिल हो गए. वे 1980 और 1985 में बागली विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन बागली की जनता ने अपने ही राजा का चुनाव में समर्थन नहीं किया और वे दोनों बार चुनाव हार गए. आपको बता दें कि राजा छत्र सिंह की बेटी भावना शाह खंडवा की पूर्व महापौर रही हैं, जो शिवराज सरकार में वन मंत्री विजय शाह की पत्नी हैं. बागली विधानसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी लगातार 8 विधानसभा चुनाव जीते.

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