पेप्टिक अल्सर या पेट में छालों की समस्या के लिए आमतौर पर गलत खानपान (Incorrect diet) और गैस्ट्रिक समस्याओं (Gastric problems) को जिम्मेदार माना जाता है. हालांकि यह समस्या कुछ अन्य कारणों से भी हो सकती है. जानकार मानते हैं कि इस समस्या (Peptic ulcer) के लक्षण नजर आते ही तत्काल चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि इस अल्सर को नजरअंदाज करना सेहत पर भारी पड़ सकता है. सही समय पर इलाज ना करने से कई बार आंतरिक रक्तस्राव तथा पेट में संक्रमण का जोखिम भी बढ़ जाता है.
नजरअंदाज ना करें पेट में छालों को : छाले चाहे मुंह में हो या पेट में, दर्द और जलन का कारण बनते ही हैं. मुंह में छालों के लिए आमतौर पर बाहरी दवा लगाने से भी राहत मिल जाती है, लेकिन पेट के छाले होने पर इलाज के साथ खान पान तथा जीवन शैली में सुधार करना भी बहुत जरूरी हो जाता है. पेट में छालें जिसे पेप्टिक अल्सर के नाम से भी जाना जाता है, की समस्या को नजरअंदाज करने से या समस्या के इलाज में देरी करने से कई बार पीड़ित की हालत काफी गंभीर भी हो सकती है.
क्या है पेप्टिक अल्सर : भोपाल के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ राजेश शर्मा (Dr Rajesh Sharma, Physician, Bhopal) बताते हैं कि पेप्टिक अल्सर में पेट के अंदरूनी हिस्सों विशेषकर अमाशय या छोटी आंत के ऊपरी हिस्से पर छाले होने लगते हैं. जिनका यदि सही समय पर इलाज ना किया जाए तो वे जख्म में बदल जाते हैं और कई बार इन जख्मों के चलते पेट में सूजन हो जाती है.
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तीन प्रकार का पेप्टिक अल्सर : डॉ राजेश बताते हैं कि पेप्टिक अल्सर तीन प्रकार (Gastric Ulcer, Esophageal Ulcer, Duodenal Ulcer) का होता है, गैस्ट्रिक अल्सर- जो पेट में होता है, ऐसोफेसल अल्सर जो भोजन की नली में होता है तथा ड्यूडिनल अल्सर, जो छोटी आंत में होता है. वह बताते हैं कि हमारी आंतों में भोजन को पचाने में पेट में बनने वाले रस तथा अम्ल मदद करते हैं. लेकिन यदि किसी कारण से शरीर में अम्ल की मात्रा ज्यादा बढ़ने लगे तो वह आंतों की दीवारों को नुकसान पहुंचाने लगते है और ऐसी अवस्था में भोजन नली तथा छोटी आंत में छाले होने या अल्सर के होने की आशंका बढ़ जाती है. वह बताते हैं कि वैसे तो पेप्टिक अल्सर एक सामान्य समस्या है लेकिन ध्यान ना देने पर यह कई अन्य बीमारियों कारण भी बन सकती है.
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पेप्टिक अल्सर के कारण : पेप्टिक अल्सर या पेट में छालों के लिए कई कारणों को जिम्मेदार माना जा सकता है. जैसे अस्वास्थकारी आहार विशेषकर ज्यादा तेल व मसालों वाले आहार का सेवन, खाने के प्रकार व उसके समय को लेकर अनुशासनहीनता, अधिक शराब व सिगरेट का सेवन, खराब जीवनशैली, किसी प्रकार की दवा या थेरेपी के पार्श्वप्रभाव तथा लीवर, फेफड़ों या किडनी से जुड़े रोग होना आदि. इसके अलावा कई बार हेलिकोबैक्टर पायलोरी बैक्टीरिया (Helicobacter pylori bacteria) के कारण भी यह समस्या हो सकती है. दरअसल यह बैक्टीरिया पेट में खाना पचाने में मदद करने वाले अम्ल की क्षमता को कम करते हैं.
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पेप्टिक अल्सर के लक्षण : डॉ राजेश बताते हैं कि पेप्टिक अल्सर में जब पेट में तेज दर्द होता है तो वह छाती से लेकर नाभि तक महसूस होता है. वह बताते हैं कि यदि अल्सर की समस्या गंभीर होने लगे तो कई बार उल्टी में खून आने या काले रंग का मल आने जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं. इसके अलावा कई बार मल से खून भी आ सकता है. इसके अलावा भी इस समस्या के कई अन्य लक्षण नजर आ सकते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- उल्टी और मितली आना
- वजन घट जाना या भूख में कमी आना
- खट्टी डकारें आना
- सीने में दर्द या जलन होना
- पेट में जलन होना
पेप्टिक अल्सर में कैसा हो परहेज : डॉ राजेश (Dr. Rajesh Sharma, Bhopal) बताते हैं कि पेप्टिक अल्सर होने पर बहुत जरूरी है खानपान का विशेष ध्यान रखा जाए. इस अवस्था में कुछ चीजों से विशेष परहेज करना चाहिए. जैसे फ्राइड फूड, खट्टे पदार्थ जैसे नींबू, काली मिर्च या लाल मिर्च, कैफीन युक्त सोडा या अन्य पदार्थ, चॉकलेट, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स, शराब, सिगरेट तथा ज्यादा तेल व मिर्च मसाले वाला आहार आदि. वहीं आहार के साथ ही जीवनशैली को दुरुस्त रखना भी काफी जरूरी है. जैसे देर रात कुछ भी खाने से बचे, हमेशा सही समय पर ताजे व संतुलित आहार का सेवन करें, सही समय पर सोए तथा जागे, कम से कम आठ घंटे की नींद लें, तनाव से दूर रहने की कोशिश करें और बिना चिकित्सकीय परामर्श किसी भी दवा का सेवन ना करें.
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इसके अलावा बहुत जरूरी है कि जहां तक संभव हो खाली पेट ना रहें अन्यथा गैस्ट्रिक समस्याओं (Gastric problems) के होने का खतरा भी बढ़ जाता है. वहीं किसी भी प्रकार की दर्द निवारक दवाओं के ज्यादा मात्रा में सेवन से बचना चाहिए. वह बताते हैं कई लोग दर्द या कोई आम समस्या होने पर बिना चिकित्सीय सलाह खुद ही दवा लेने लगते हैं. ऐसा यदि लगातार होने लगे तो पेट की सेहत ही नही सम्पूर्ण सेहत को नुकसान पहुंचता है.
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