विदिशा। महात्मा गांधी के नाम पर पीएम मोदी के सपनों की स्वच्छ भारत मिशन के तहत भले ही लाखों करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हों, लेकिन कई जगहों पर स्वच्छता अभियान आज भी केवल फाइलों में अटका पड़ा है. केंद्र से लेकर राज्य तक अरबों रुपये खर्च कर हर गांव को स्वच्छ बनाने के दावे और वादे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ इनसे बिल्कुल जुदा है. कुछ यही हाल हैं, विदिशा जिले के गांवों के, जहां लोग गंदगी के बीच अपना जीवन बसर कर रहे हैं और प्रशासन सरकारी पैसे फाइलों में खर्च कर स्वच्छ गांव बना रहा है.
ग्रामीणों को ठहरा दिया जाता है जिम्मेदार
ग्रामीण नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं, गंदे पानी से सबसे ज्यादा खतरा बीमारी का है. कई लोग सफाई के लिए आवेदन दे चुकी हैं, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई. उल्टा ग्रामीणों को ही गंदगी का जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है.
गांव के जागरुक नागरिक सीताराम जाटव कहते हैं, कई बार शिकायत दर्ज करा चुके सुनने वाला कोई नहीं. गांव में आज तक स्वच्छता अभियान के तहत कोई साफ- सफाई नहीं हुई या हम कह सकते हैं गांव के लोग स्वच्छता अभियान ही नहीं जानते.
गांव के ही एक अन्य जागरुक नागरिक राम सिंह कुशवाह बताते हैं पंचायत स्तर पर कभी कभी कार्यक्रम कराया जाता है. मंगलवार को जनसुनवाई भी की जाती है. पर स्वच्छता अभियान के तहत आज तक कोई खास कार्यक्रम नही चलाया गया.
हरि सिंह भी अपनी आधी जिंदगी इसी गंदगी के बीच बिता चुके हैं. हरि सिंह बताते हैं गांव में साफ सफाई नहीं की जाती. बल्कि साफ सफाई के नाम पर केवल झाड़ू लगाई जाती है.
अधिकारी कर रहे अभियान चलाने की बात
गांवों की इस हालात को लेकर जब मुख्य कार्यपालन अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने स्वच्छता मिशन के तहत अभियान चलाए जाने की बात कही. उन्होंने कहा जिन गांव के बारे में मीडिया ने संज्ञान में लाया गया है, उन गांव को गंभीरता से लेकर स्वच्छता अभियान के तहत गंदगी से मुक्त करने का प्रयास किया जाएगा.
गंदगी में सिंमटे गांव
विदिशा जनपद पंचायत के अंतर्गत 101 ग्राम पंचायत आती है, जिनमेx से 50 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां के लोगो को स्वच्छ भारत मिशन का नाम भी नहीं पता. यहां सड़कों पर बहता गंदा पानी, चोक नालियां स्वच्छता अभियान की कलई खोलने के लिए काफी हैं. गांव के लोग बताते हैं कि स्वच्छता अभियान महज जिला मुख्यालय और जनपद कार्यलय तक सिमट कर रहा गया है.