विदिशा। बरईपुरा स्कूल में पदस्थ ब्रजेन्द्र जैन की कहानी शिक्षक दिवस पर एक मिसाल की तरह है. ब्रजेन्द्र जैन विदिशा की अरिहंत विहार कॉलोनी में रहते हैं. एक पैर से पूरी तरह से दिव्यांग ब्रजेन्द्र एक बैसाखी के सहारे उनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के लिए अलख जगाने का प्रयास कर रहे हैं.
कोराना काल में स्कूल पूरी तरह बंद होने से सरकार ने शिक्षकों को घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाने फरमान सुनाया है. कुछ बच्चों को ऑनलाइन के जरिए भी पढ़ाई कराई जा रही है. ब्रजेन्द्र एक पैर से विकलांग होने के बावजूद अपनी तीन पहिया गाड़ी से बच्चों को घर-घर पढ़ाने का काम कर रहे हैं. रास्ते में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, तो कभी बच्चों को पढ़ाने दो मंजिला ऊपर बैसाखी के सहारे सीढ़ी पर चढ़कर जाना पड़ता है. तमाम परेशानियों के बाद ब्रजेन्द्र अपना कार्य बखूबी निभा रहे हैं. ब्रजेन्द्र ने अपने काम के आगे अपनी विकलांगता को आड़े नहीं आने दिया.
ब्रजेन्द्र बताते हैं कि कभी जीवन में लगा ही नहीं कि मैं विकलांग हूं. असल मकसद बच्चों को शिक्षित करना होता है तो अपना टारगेट पूरा करने में इतना मशगूल हो जाता हूं कि पता ही नहीं चलता विकलांगता का. शिक्षक कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष का नाम है. हर किसी को अपने जीवन में संघर्ष करना पड़ता है. मंजिल भी कई संघर्षों के बाद ही मिलती है.
रौशन कुशवाह कक्षा आठवीं के छात्र हैं. रौशन को रोज उनके टीचर ब्रजेन्द्र घर पर पढ़ाने आते हैं. रोशन बताते हैं कि सर बहुत अच्छा पढ़ाते हैं. हर रोज घर पर पढ़ाने आते हैं. सर हमारे गणित के टीचर हैं. इतने अच्छे से समझाते हैं, सब कुछ समझ में आ जाता है.
ब्रजेन्द्र जैन के सांथी चंद्र प्रकाश शर्मा बताते हैं कि यह टीचर उन टीचर्स के लिए अपने आप में एक मिसाल हैं, जिन्हें काम मिलने पर वो बहाने बनाते नजर आते हैं. ब्रजेन्द्र को मैं आज से नहीं बल्कि कई सालों से जानता हूं. एक पैर से विकलांग होने के बाद भी यह अपने कार्य का पूरी तरह निर्वाहन करते हैं. यही कारण है कि शिक्षा विभाग में यह सबके चहेते हैं.
सूबे में ऐसे एक नहीं बल्कि सैकड़ों शिक्षक हैं जो खुद कई परेशानियों का सामना करते हैं. लेकिन आने वाली पीढ़ी के जीवन में अनेकों परेशानियों के बाद एक प्रकाश डालने का काम कर रहे हैं. ये टीचर्स शिक्षक दिवस पर असल सम्मान के हकदार हैं