विदिशा। अटल बिहारी वाजपेयी देश की राजनीति की ऐसी शख्सियत का नाम था. जिन्होंने अपने दल के साथ दूसरे दलों के नेताओं के दिलों में भी एक पहचान बनाई थी. अटल बिहारी वाजपेयी विपक्षी दलों के नेताओं के उतने ही चहते थे जितने अपने दल में. आज ऐसे कई वाक्य याद किये जाते हैं जहां दलदल की राजनीति से ऊपर उठकर उन्होंने अपने विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ देश हित में कई निर्णय लिए. आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी पुण्यतिथि है. उनका निधन 16 अगस्त 2018 को 95 वर्ष की आयु में हुआ था.
1991 में विदिशा से अटल बिहारी वाजपेयी ने लड़ा था लोकसभा चुनाव
साल 1991 का लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी विदिशा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. माना जाता है कि अटल बिहारी वाजपेयी राजीव गांधी के इतने प्रिय थे. दरअसल 1991 में जब विदिशा लोकसभा सीट से अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव लड़ने पहुंचे तो राजीव गांधी ने खुद फोन कर अपने केंडिडेट से कह दिया था की तुम दूसरी जगह से चुनाव लड़ो वहां से अटल जी चुनाव लड़ रहे हैं, हालांकि बाद में लखनऊ की सीट पर जीत मिलने के बाद उन्होंने विदिशा सीट छोड़ दी थी. अटल जी ने विदिशा चुनाव पूरी ताकत से लड़ा था.
बताया जाता है कि विदिशा संसदीय क्षेत्र में अटल जी ने 20 सभाएं की थीं. उस दौरान वो कई नेताओं से भी मिले जीतने के बाद विदिशा जैन कॉलेज में धन्यवाद सभा भी रखी गई. जिसमें अटल जी ने अपने मतदाताओं का मंच के माध्यम से धन्यवाद अदा किया था.
नोटों की माला से हुआ था अटल बिहारी वाजपेयी का स्वागत
बताया जाता है लालकृष्ण आडवाणी भी विदिशा आ रहे थे पर आपस में यह तय हुया की अटल जी ही विदिशा सीट से चुनाव लड़ेंगे. विदिशा में लोकसभा नामांकन भरने का अंतिम दिन था. रात में ही कलेक्टर को फोन कर नामांकन भरने का वक्त तय किया गया. जब अटल जी पहुंचे तो बीजेपी कार्यकर्ताओं का एक हुजूम उमड़ पड़ा अटल जी के लिए पुलिस को वैरिकेट्स लगाना पड़े था. अटल बिहारी ने आज पुरानी कही जाने वाली कलेक्ट्रेट में फार्म जमा किया. उसी दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या से पूरा देश गमगीन हो गया प्रशासन ने सुरक्षा की दृष्टि से फूलों से बनी मालाएं पहनाने पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. जब अटल जी विदिशा पहुंचे तो उनका नोटों की मालाएं पहनाकर स्वागत किया गया.
स्वागत की मालाओं से ही निकल आया था चुनाव का खर्च
बताया जाता है अटल जी का स्वागत हर जगह नोटों की मालाओं से होता था. इस स्वागत की राशि इतनी हो गई थी कि पार्टी का चुनावी खर्च इसी स्वागत की राशि से निकला था. लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भले ही अटल जी ने विदिशा सीट से अपना इस्तीफा दे दिया था, लेकिन आज भी विदिशा को उनके पूर्व संसदीय क्षेत्र की हैसियत से ही पहचाना जाता है. तब से लेकर आज तक विदिशा अपने आप में बीजेपी का गढ़ कहलाता आ रहा है.
अटल विहारी वाजपेयी ने सन 1991 में एक लाख चार हजार 136 मतों से कांग्रेस उम्मीदवार प्रतापभानु शर्मा को परास्त किया था. उस वक्त 19 उम्मीदवार मैदान में थे. अटल जी के सीट छोड़ने के बाद शिवराज सिंह चौहान को विदिशा संसदीय क्षेत्र का उम्मीदवार बनाया गया था. जब-जब अटल जी का नाम आता है बीजेपी हो या कांग्रेस आज भी उनके दिलों में अटल जी के लिए वही सम्मान है जो उस वक़्त हुआ करता था. वर्तमान की राजनीति में पक्ष विपक्ष कभी अटल जी की कविताओं से तो कभी उनके भाषणों से एक दूसरे को नसीहत देते जरूर नज़र आते हैं.