विदिशा। जिले की एकमात्र जीवनदायिनी नदी बेतवा पर भी लॉकडाउन का असर देखने को मिल रहा है. कलकल बहती नदी इन दिनों कांच के समान साफ नजर आ रही है. भले ही इंसानों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, पर प्रकृति के लिए ये लॉकडाउन एक वरदान साबित हो रहा है.
जीवनदायिनी बेतवा को साफ स्वच्छ बनाने सदियों से मुहिम चलाई गई, करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करके भी बेतबा को शुद्ध नहीं किया जा सका, लेकिन लॉकडाउन के चलते बेतबा नदी अपने आप स्वच्छ हो गई. ये नदी आस्था का केंद्र होने के साथ ही शहर की प्यास बुझाने का काम भी करती है. बेतवा का इतिहास भगवान राम के काल से भी जुड़ा है, पर भाग दौड़ भरी इंसान की जिंदगी ने बेतवा का स्वरूप ही बदल दिया. देखते ही देखते बेतवा इतनी प्रदूषित हो गई कि लोगों को स्नान के लिए घाटों पर साफ पानी की तलाश करनी पड़ती थी.
कई फैक्ट्रियों का मिलता केमिकल
बेतवा रायसेन और विदिशा जिले का संगम है. दोनों ही जिलों के पास इतनी औद्योगिक फैक्ट्रियां हैं, जिससे बेतवा मैली होती चली गई. आज उन फैक्ट्रियों के बंद होने से बेतवा अपना असल रूप धारण कर रही है, फैक्ट्रियों का केमिकल, गंदा पानी भी बेतवा में ही छोड़ा जाता है, नतीजतन बेतवा का पानी काला हो जाता है. ऐसे एक नहीं कई बार मामले सामने आते रहे हैं कि हजारों मछलियां अपने आप मर गईं, लोगों ने स्नान किया तो वो खुजली जैसी बीमारियों के शिकार हो गए.
प्रदूषित नदी का मिल चुका खिताब
इंसान अपने स्वार्थ के लिए नदी के स्वरूप से छेड़छाड़ करता है. नदी में एक नहीं, बल्कि कई स्टाफ डैम बना दिये गए. बहाव रोकने से नदी का बहाव खत्म हो गया, जिससे नदी का पानी हरा और बदबूदार हो गया. प्रदूषित नदियों में से बेतवा नदी को प्रदूषित नदी का खिताब मिल चुका है. 654 किलोमीटर लंबी 232 किलोमीटर तक ये नदी मध्यप्रदेश के कई इलाकों में बहती है. रायसेन के एक गांव से शुरु होकर नदी भोपाल, मंडीदीप, विदिशा से गुजरती है, जहां औद्योगीक क्षेत्रों की कोई कमी नहीं है.
सुषमा स्वराज ने भी जाहिर की थी चिंता
विदिशा की पूर्व सांसद स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने भी बड़ी चिंता जाहिर की थी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी समय समय पर कई प्लान दिये. स्थानीय प्रशासन नगर पालिका ने भी कोशिश की. बेतवा बचाओ अभियान जैसे कार्यक्रम भी खूब दिखे. पर बेतवा को शुद्धिकरण करने की कोई मुहिम इसे स्वच्छ नहीं कर सकी.