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संकट में कुम्हारों का व्यवसाय! कोरोना और लॉकडाउन ने डाला आजीविका पर डांका - कुम्हारों की जीविका पर संकट

कोरोना कर्फ्यू के कारण कुम्हारों की आजीविका पर संकट आ गया है, क्योंकि संक्रमण के डर के कारण लोगों ने ठंडा पानी पीना छोड़ दिया है, जिसके चलते मिट्टी के बर्तनों की बिक्री पर रोक लग गई है. ऐसे में मिट्टी के बर्तन बेचकर आजीविका चलाने वालों को जीवन में कोरोना कर्फ्यू और बंद होती दुकानदारी की दोहरी मार पड़ रही है.

clay pots
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Published : May 3, 2021, 2:17 PM IST

विदिशा। मिट्टी के बर्तन बनाकर अपनी आजीविका चलाने वाले अधिकतर कुम्हार जाति के लोगों के लिए कोरोना महामारी और कोरोना कर्फ्यू की दोहरी मार पड़ रही है. पिछले साल भी इन दिनों में कोरोना संक्रमण को लेकर लाकडाउन था इस बार भी यही स्थिति बनी हुई है. अब हालात इसलिए भी बदतर होते जा रहे हैं क्योंकि मिट्टी के बर्तनों को उनके कद्रदान भी कम मिल रहे हैं. ऐसे में पीढिय़ों से इस कला को जीवित रख कर अपना पेट पालने वालों को अब मिट्टी के बर्तन बेचकर आजीविका चलाने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

मिट्टी के बर्तन


कुम्हारों की जीविका पर संकट

दरअसल, एक तरफ कुम्हार अपनी आजीविका चलाने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाकर इस कला को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं, तो वहीं परिस्थितियां हैं कि उनके विपरीत बनी हुई हैं. कोरोना महामारी के चलते लोगों में दहशत है. लोग ठंडे पानी की जगह गरम पानी पी रहे हैं. यही वजह है कि इन मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के बर्तन नहीं बिक रहे हैं. कुम्हार परिवारों ने महीनों पहले मटकों और सुराही का निर्माण शुरू कर दिया था, ताकि जैसे ही ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो, इनकी आजीविका का भी जरिया शुरू हो सके, लेकिन इस बार ऐसा नहीं सका. प्रजापति ने बताया कि कोरोना महामारी ने घर की आर्थिक स्थिति को काफी प्रभावित किया है. इसके चलते हम लोग अपने बनाए हुए मटकों को बेच नहीं पा रहे.

कुम्हारों की टूटती उम्मीद

कोरोना कर्फ्यू के कारण बाजार बंद हैं और हम लोग अपने घरों में ही कैद हैं. इसलिए मटका बिकना भी मुश्किल हो गया है, जो मटके पहले से बने हैं वह भी घर में ही रखे हैं, जिस बाजार में हमेशा मटके बेचे जाते थे. वे बाजार भी बंद है. बता दें कि कोरोना ने न सिर्फ इनकी दुकानों को बंद किया है, बल्कि इनकी उम्मीद पर भी पानी फेर दिया है. इनके बर्तन की बिक्री नहीं हो रही है. महीनों की मेहनत घर के बाहर रखी ग्राहकों का इंतजार कर रही है. ऐसे हालातों में परिवार का गुजारा करना भी मुश्किल हो गया है.

कोरोना कर्फ्यू के कारण नहीं बिक रहे बर्तन

मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर का कहना है कि पिछले साल भी बर्तन नहीं बिके और इस साल भी बहुत परेशानी हो रही है. पिछले साल लॉकडाउन लगा था अब की साल भी लग गया. हमारे मटके बिल्कुल नहीं बिक रहे. हम लोग बहुत परेशानी में है. हमारी कुछ सहायता करो. ठंडा पानी कोई नहीं पी रहा. इस कारण सब मटके घर पर ही रखे हुए हैं. लॉकडाउन लगा हुआ है. घर पर हैं सब लोग और मटके भी घर पर ही रखे हैं..

पिछले साल भी नहीं बिके थे बर्तन

इसके अलावा कुम्हार खिलान सिंह प्रजापति का कहना है कि 'कोरोना के चक्कर में माल नहीं बेच पा रहें. मार्केट पूरा बंद है. मार्केट में दुकान लगती थी तो थोड़ा कमा लेते थे. सरकार से कोई मदद नहीं है कुम्हारों के लिए.

ग्राहक नहीं निकल रहे घरों से बाहर

कुम्हार मालचंद प्रजापति का कहना है कि ग्राहकों की कमी के चलते मटके नहीं बिक रहे हैं. ग्राहक कह रहे हैं कि ठंडा पानी पिएंगे तो बीमार हो सकते हैं. पिछली साल भी कोरोना चल रहा था. तब भी माल नहीं बिक पाया था. इस साल भी पहले का बहुत माल रखा है. कर्फ्यू के कारण जो थोड़ी बहुत बिक्री हो रही थी वो भी बंद हो गई.

विदिशा। मिट्टी के बर्तन बनाकर अपनी आजीविका चलाने वाले अधिकतर कुम्हार जाति के लोगों के लिए कोरोना महामारी और कोरोना कर्फ्यू की दोहरी मार पड़ रही है. पिछले साल भी इन दिनों में कोरोना संक्रमण को लेकर लाकडाउन था इस बार भी यही स्थिति बनी हुई है. अब हालात इसलिए भी बदतर होते जा रहे हैं क्योंकि मिट्टी के बर्तनों को उनके कद्रदान भी कम मिल रहे हैं. ऐसे में पीढिय़ों से इस कला को जीवित रख कर अपना पेट पालने वालों को अब मिट्टी के बर्तन बेचकर आजीविका चलाने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

मिट्टी के बर्तन


कुम्हारों की जीविका पर संकट

दरअसल, एक तरफ कुम्हार अपनी आजीविका चलाने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाकर इस कला को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं, तो वहीं परिस्थितियां हैं कि उनके विपरीत बनी हुई हैं. कोरोना महामारी के चलते लोगों में दहशत है. लोग ठंडे पानी की जगह गरम पानी पी रहे हैं. यही वजह है कि इन मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के बर्तन नहीं बिक रहे हैं. कुम्हार परिवारों ने महीनों पहले मटकों और सुराही का निर्माण शुरू कर दिया था, ताकि जैसे ही ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो, इनकी आजीविका का भी जरिया शुरू हो सके, लेकिन इस बार ऐसा नहीं सका. प्रजापति ने बताया कि कोरोना महामारी ने घर की आर्थिक स्थिति को काफी प्रभावित किया है. इसके चलते हम लोग अपने बनाए हुए मटकों को बेच नहीं पा रहे.

कुम्हारों की टूटती उम्मीद

कोरोना कर्फ्यू के कारण बाजार बंद हैं और हम लोग अपने घरों में ही कैद हैं. इसलिए मटका बिकना भी मुश्किल हो गया है, जो मटके पहले से बने हैं वह भी घर में ही रखे हैं, जिस बाजार में हमेशा मटके बेचे जाते थे. वे बाजार भी बंद है. बता दें कि कोरोना ने न सिर्फ इनकी दुकानों को बंद किया है, बल्कि इनकी उम्मीद पर भी पानी फेर दिया है. इनके बर्तन की बिक्री नहीं हो रही है. महीनों की मेहनत घर के बाहर रखी ग्राहकों का इंतजार कर रही है. ऐसे हालातों में परिवार का गुजारा करना भी मुश्किल हो गया है.

कोरोना कर्फ्यू के कारण नहीं बिक रहे बर्तन

मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर का कहना है कि पिछले साल भी बर्तन नहीं बिके और इस साल भी बहुत परेशानी हो रही है. पिछले साल लॉकडाउन लगा था अब की साल भी लग गया. हमारे मटके बिल्कुल नहीं बिक रहे. हम लोग बहुत परेशानी में है. हमारी कुछ सहायता करो. ठंडा पानी कोई नहीं पी रहा. इस कारण सब मटके घर पर ही रखे हुए हैं. लॉकडाउन लगा हुआ है. घर पर हैं सब लोग और मटके भी घर पर ही रखे हैं..

पिछले साल भी नहीं बिके थे बर्तन

इसके अलावा कुम्हार खिलान सिंह प्रजापति का कहना है कि 'कोरोना के चक्कर में माल नहीं बेच पा रहें. मार्केट पूरा बंद है. मार्केट में दुकान लगती थी तो थोड़ा कमा लेते थे. सरकार से कोई मदद नहीं है कुम्हारों के लिए.

ग्राहक नहीं निकल रहे घरों से बाहर

कुम्हार मालचंद प्रजापति का कहना है कि ग्राहकों की कमी के चलते मटके नहीं बिक रहे हैं. ग्राहक कह रहे हैं कि ठंडा पानी पिएंगे तो बीमार हो सकते हैं. पिछली साल भी कोरोना चल रहा था. तब भी माल नहीं बिक पाया था. इस साल भी पहले का बहुत माल रखा है. कर्फ्यू के कारण जो थोड़ी बहुत बिक्री हो रही थी वो भी बंद हो गई.

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