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सड़क की आस में पथरा गई आंखें, यहां तक आते-आते दम तोड़ जाता है हर वादा

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दावे के साथ कहा था कि प्रदेश की सड़कें तो अमेरिका की सड़कों से भी बेहतर हैं, ईटीवी भारत आपको विदिशा जिले के बेलनारा गांव की कहानी दिखा रहा है, जहां आजादी के सात दशक बाद भी आज तक सड़क नहीं बन पाई.

vidisha news
कहां है विकास
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Published : Aug 19, 2020, 10:43 PM IST

Updated : Aug 19, 2020, 10:59 PM IST

विदिशा। भारत के नक्शे में एक बिंदु के बराबर भी नहीं है विदिशा जिले का बेलानारा गांव. जहां बड़ी-बड़ी योजनाएं इन छोटे से बिंदु जैसे गांव तक पहुंच नहीं पाती. बेलनारा गांव में आजादी के बाद सड़क तक नहीं बन पाई. फिर विकास के अन्य काम तो दूर की कोड़ी है. खास बात ये है कि विदिशा एक तरह से सीएम शिवराज सिंह चौहान का गृह जिला भी माना जाता है. बावजूद इस गांव का विकास न हो पाना अपने आप में सरकार के कामों पर सवाल खड़े करता है.

शिवराज के विकास की बानगी

500 की आबादी वाला बेलनारा गांव हाइवे से 2 से 3 किलोमीटर दूरी पर बसा है, जहां दो से तीन किलोमीटर पक्की सड़क तक नहीं बन पाई. गांव में न पक्के मकान हैं और न कोई अन्य सुविधा. आलम ये है कि यह गांव विकास के मायने में दशकों पिछड़ा है. अगर कोई बीमार हो जाए तो उसे इलाज के लिए खाट पर ले जाना पड़ता है. गांव से बाहर जाने के लिए स्थानीय लोग कई बार सोचते हैं कि आखिर बाहर कैसे निकलें.

पक्के मकान तक नहीं
पक्के मकान तक नहीं

जनप्रतिनिधियों के विवाद में नहीं होता विकास

स्थानीय हाकिम सिंह बताते हैं कि आज तक विकास शहरों से निकलकर हमारे गांव तक नहीं पहुंचा. सड़क डालने का एक मुख्य कारण सरपंच साहब का इस पोलिंग से हारना भी बताया जाता है. गांव की सड़कों के लिए ग्रामीणों ने कई लड़ाइयां लड़ी, हाइवे पर चक्काजाम भी किया. विधायक, सांसद और मंत्री से लेकर तमाम जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई. आश्वासन तो खूब मिले, लेकिन सड़क नहीं बनी. गांववालों के मुताबिक गांव में कुटीर योजनाएं भी दम तोड़ती नजर आ रही हैं. गांव में जितनी कुटीर थी उतनी कुटीर नहीं आ सकी. आलम ये है कि कुछ ग्रामवासी मिट्टी की दरकती दीवारों के बीच रहने को मजबूर हैं. जहां कभी भी हादसा हो सकता है.

नहीं है पक्की सड़क
नहीं है पक्की सड़क

सड़क नहीं पगडंडी है

बेलानारा गांव में एक ही मुख्य सड़क है, जो कीचड़ से सनी पगडंडी में बदल चुकी है. इस पगडंडी के सहारे ही गांववाले निकलते हैं. गांव में रहने वाले आशुतोष रघुवंशी 22 साल के हो चुके हैं. कहते हैं जब से पैदा हुए हैं, तब से लेकर आज तक गांव में सड़क की समस्या देख रहे हैं. पूरी जिंदगी गांव में बिता चुके 75 साल के बुजुर्ग गणपत दादा की अब सरकार से उम्मीद ही छूट गई है. वो बताते हैं कि गांव की सड़क के लिए सांसद से लेकर विधायक तक से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई, रोड पर हमारे बच्चे गिरते उठते शहर तक पहुंच पाते हैं. 70 साल की ग्रामीण महिला बताती हैं कितने बड़े बूढ़े गांव में सड़क बनने की आस में चल दिए. कई महिलाओं को अस्पताल ले जाते वक्त सड़क पर ही बच्चे पैदा हो गए. लगता नहीं कि अपने गांव में कभी सड़क देख पाएंगे.

मरीजों को खाट पर ले जाते ग्रामीण
मरीजों को खाट पर ले जाते ग्रामीण

फिर मिला आश्वासन

जब इस पूरे मामले को जिला पंचायत अपर कलेक्टर के सामने रखा तो जिला पंचायत सीईओ हैरान रह गए. उन्होंने माना बेलानारा गांव की समस्या बहुत गंभीर है, अपर कलेक्टर मयंक अग्रवाल ने आश्वास्त करते हुए कहा कि जिस भी योजना से गांव में रोड संभव हो सकेगा, जल्द से जल्द निर्माण कार्य शुरू कराया जाएगा. बड़ा सवाल ये है कि जिस गांव में सड़क नहीं, पक्के मकान नहीं, पानी की सुविधा नहीं. वहां अब ऐसी कौन सी जादू की छड़ी चल जाएगी कि गांव में विकास की गंगा बह जाएगी. प्रशासनिक अधिकारी कुछ भी कहें, लेकिन चुनाव के वक्त बड़े-बड़े दावे करने वाले नेताओं के वादे सरकार बनने के बाद बेलनारा गांव तक आते-आते दम तोड़ देती है.

विदिशा। भारत के नक्शे में एक बिंदु के बराबर भी नहीं है विदिशा जिले का बेलानारा गांव. जहां बड़ी-बड़ी योजनाएं इन छोटे से बिंदु जैसे गांव तक पहुंच नहीं पाती. बेलनारा गांव में आजादी के बाद सड़क तक नहीं बन पाई. फिर विकास के अन्य काम तो दूर की कोड़ी है. खास बात ये है कि विदिशा एक तरह से सीएम शिवराज सिंह चौहान का गृह जिला भी माना जाता है. बावजूद इस गांव का विकास न हो पाना अपने आप में सरकार के कामों पर सवाल खड़े करता है.

शिवराज के विकास की बानगी

500 की आबादी वाला बेलनारा गांव हाइवे से 2 से 3 किलोमीटर दूरी पर बसा है, जहां दो से तीन किलोमीटर पक्की सड़क तक नहीं बन पाई. गांव में न पक्के मकान हैं और न कोई अन्य सुविधा. आलम ये है कि यह गांव विकास के मायने में दशकों पिछड़ा है. अगर कोई बीमार हो जाए तो उसे इलाज के लिए खाट पर ले जाना पड़ता है. गांव से बाहर जाने के लिए स्थानीय लोग कई बार सोचते हैं कि आखिर बाहर कैसे निकलें.

पक्के मकान तक नहीं
पक्के मकान तक नहीं

जनप्रतिनिधियों के विवाद में नहीं होता विकास

स्थानीय हाकिम सिंह बताते हैं कि आज तक विकास शहरों से निकलकर हमारे गांव तक नहीं पहुंचा. सड़क डालने का एक मुख्य कारण सरपंच साहब का इस पोलिंग से हारना भी बताया जाता है. गांव की सड़कों के लिए ग्रामीणों ने कई लड़ाइयां लड़ी, हाइवे पर चक्काजाम भी किया. विधायक, सांसद और मंत्री से लेकर तमाम जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई. आश्वासन तो खूब मिले, लेकिन सड़क नहीं बनी. गांववालों के मुताबिक गांव में कुटीर योजनाएं भी दम तोड़ती नजर आ रही हैं. गांव में जितनी कुटीर थी उतनी कुटीर नहीं आ सकी. आलम ये है कि कुछ ग्रामवासी मिट्टी की दरकती दीवारों के बीच रहने को मजबूर हैं. जहां कभी भी हादसा हो सकता है.

नहीं है पक्की सड़क
नहीं है पक्की सड़क

सड़क नहीं पगडंडी है

बेलानारा गांव में एक ही मुख्य सड़क है, जो कीचड़ से सनी पगडंडी में बदल चुकी है. इस पगडंडी के सहारे ही गांववाले निकलते हैं. गांव में रहने वाले आशुतोष रघुवंशी 22 साल के हो चुके हैं. कहते हैं जब से पैदा हुए हैं, तब से लेकर आज तक गांव में सड़क की समस्या देख रहे हैं. पूरी जिंदगी गांव में बिता चुके 75 साल के बुजुर्ग गणपत दादा की अब सरकार से उम्मीद ही छूट गई है. वो बताते हैं कि गांव की सड़क के लिए सांसद से लेकर विधायक तक से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई, रोड पर हमारे बच्चे गिरते उठते शहर तक पहुंच पाते हैं. 70 साल की ग्रामीण महिला बताती हैं कितने बड़े बूढ़े गांव में सड़क बनने की आस में चल दिए. कई महिलाओं को अस्पताल ले जाते वक्त सड़क पर ही बच्चे पैदा हो गए. लगता नहीं कि अपने गांव में कभी सड़क देख पाएंगे.

मरीजों को खाट पर ले जाते ग्रामीण
मरीजों को खाट पर ले जाते ग्रामीण

फिर मिला आश्वासन

जब इस पूरे मामले को जिला पंचायत अपर कलेक्टर के सामने रखा तो जिला पंचायत सीईओ हैरान रह गए. उन्होंने माना बेलानारा गांव की समस्या बहुत गंभीर है, अपर कलेक्टर मयंक अग्रवाल ने आश्वास्त करते हुए कहा कि जिस भी योजना से गांव में रोड संभव हो सकेगा, जल्द से जल्द निर्माण कार्य शुरू कराया जाएगा. बड़ा सवाल ये है कि जिस गांव में सड़क नहीं, पक्के मकान नहीं, पानी की सुविधा नहीं. वहां अब ऐसी कौन सी जादू की छड़ी चल जाएगी कि गांव में विकास की गंगा बह जाएगी. प्रशासनिक अधिकारी कुछ भी कहें, लेकिन चुनाव के वक्त बड़े-बड़े दावे करने वाले नेताओं के वादे सरकार बनने के बाद बेलनारा गांव तक आते-आते दम तोड़ देती है.

Last Updated : Aug 19, 2020, 10:59 PM IST
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