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500 साल पुराने बालाजी मंदिर में चमत्कारी पगड़ी, रोज निकलते थे 5 चांदी के सिक्के

विदिशा के गंजबासौदा में स्थित बालाजी मंदिर में 500 साल पुरानी पगड़ी है, जिसकी रोजाना पूजा होती है. कहा जाता है कि पहले इस पगड़ी से रोजना 5-6 चांदी के सिक्के निकलते थे, लेकिन नियम उल्लंघन के चलते निकलना बंद हो गए.

500 साल पुराने बालाजी मंदिर में चमत्कारी पगड़ी
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Published : Oct 29, 2019, 3:26 PM IST

विदिशा। जिले के गंजबासौदा में स्थित पांच सौ साल पुराना बालाजी का मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र है. लोगों का कहना है कि यहां हर मनोकामना पूरी होती है. मंदिर में बालाजी की प्रतिमा श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देती है. खास बात यह है कि इस मंदिर में निर्माण के समय से ही एक चमत्कारी पगड़ी रखी है. लोगों का कहना है कि पहले इस पगड़ी से रोज 5-6 चांदी के सिक्के निकलते थे, जिन्हें कलदार कहा जाता था.

500 साल पुराने बालाजी मंदिर में चमत्कारी पगड़ी

कड़े नियमों का करना पड़ता है पालन

मंदिर के पुजारी ने बताया कि पगड़ी से निकलने वाले सिक्कों का इस्तेमाल कर ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता था, जिसे सदाव्रत कहा जाता था. वहीं मंदिर का जीर्णोद्धार भी इसी राशि से कराया जाता था. मंदिर में स्थित इस पगड़ी को छूने के लिए कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है. इस पगड़ी की पूजा गीले वस्त्र में ही की जाती है.

दीपावली के दूसरे दिन होता है अन्नकूट का आयोजन

पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर की पूजा करते आ रहे दुबे परिवार के सुरेश नारायण बताते हैं कि पहले किसी ने पगड़ी से निकलने वाले सिक्कों का इस्तेमाल किसी अन्य काम में कर लिया था और नियमों का पालन किए बिना पगड़ी को छू लिया था, जिसके बाद से सिक्के निकलना बंद हो गए. वहीं ब्राह्मणों को भोजन कराने की परंपरा दुबे परिवार द्वारा आज भी जारी है. साथ ही दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट का आयोजन किया जाता है, जिसमें आसपास के क्षेत्रों से लोग प्रसाद ग्रहण करने पहुंचते हैं. मंदिर की धरोहर इस पगड़ी को अब आम लोगों के दर्शन के लिए नहीं रखा जाता है, लेकिन मंदिर के सदस्यों ने ETV BHARAT को खास तौर पर पगड़ी के साक्ष्य वीडियो के रूप में कराए.

सिंधिया राजघराने द्वारा ग्वालियर स्टेट से मिलता था फंड

मंदिर के संरक्षक सुरेश नारायण बताते हैं कि मंदिर कितना पुराना है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर को सिंधिया राजघराने द्वारा ग्वालियर स्टेट से फंड मिलता था. इसका उपयोग मंदिर के जीर्णोद्धार और मंदिर की रखरखाव के लिए किया जाता था. वहीं वर्तमान में मध्यप्रदेश शासन से भी मंदिर के रखरखाव के लिए सहायता राशि मिलती है.

नोट- ईटीवी भारत किसी भी तरह के अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता.

विदिशा। जिले के गंजबासौदा में स्थित पांच सौ साल पुराना बालाजी का मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र है. लोगों का कहना है कि यहां हर मनोकामना पूरी होती है. मंदिर में बालाजी की प्रतिमा श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देती है. खास बात यह है कि इस मंदिर में निर्माण के समय से ही एक चमत्कारी पगड़ी रखी है. लोगों का कहना है कि पहले इस पगड़ी से रोज 5-6 चांदी के सिक्के निकलते थे, जिन्हें कलदार कहा जाता था.

500 साल पुराने बालाजी मंदिर में चमत्कारी पगड़ी

कड़े नियमों का करना पड़ता है पालन

मंदिर के पुजारी ने बताया कि पगड़ी से निकलने वाले सिक्कों का इस्तेमाल कर ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता था, जिसे सदाव्रत कहा जाता था. वहीं मंदिर का जीर्णोद्धार भी इसी राशि से कराया जाता था. मंदिर में स्थित इस पगड़ी को छूने के लिए कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है. इस पगड़ी की पूजा गीले वस्त्र में ही की जाती है.

दीपावली के दूसरे दिन होता है अन्नकूट का आयोजन

पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर की पूजा करते आ रहे दुबे परिवार के सुरेश नारायण बताते हैं कि पहले किसी ने पगड़ी से निकलने वाले सिक्कों का इस्तेमाल किसी अन्य काम में कर लिया था और नियमों का पालन किए बिना पगड़ी को छू लिया था, जिसके बाद से सिक्के निकलना बंद हो गए. वहीं ब्राह्मणों को भोजन कराने की परंपरा दुबे परिवार द्वारा आज भी जारी है. साथ ही दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट का आयोजन किया जाता है, जिसमें आसपास के क्षेत्रों से लोग प्रसाद ग्रहण करने पहुंचते हैं. मंदिर की धरोहर इस पगड़ी को अब आम लोगों के दर्शन के लिए नहीं रखा जाता है, लेकिन मंदिर के सदस्यों ने ETV BHARAT को खास तौर पर पगड़ी के साक्ष्य वीडियो के रूप में कराए.

सिंधिया राजघराने द्वारा ग्वालियर स्टेट से मिलता था फंड

मंदिर के संरक्षक सुरेश नारायण बताते हैं कि मंदिर कितना पुराना है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर को सिंधिया राजघराने द्वारा ग्वालियर स्टेट से फंड मिलता था. इसका उपयोग मंदिर के जीर्णोद्धार और मंदिर की रखरखाव के लिए किया जाता था. वहीं वर्तमान में मध्यप्रदेश शासन से भी मंदिर के रखरखाव के लिए सहायता राशि मिलती है.

नोट- ईटीवी भारत किसी भी तरह के अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता.

Intro:एंकर - गंजबासौदा मैं स्थित है 500 साल पुराना प्राचीन मंदिर जहाँ होती है भगवान बालाजी की आराधना । वर्षो से दुवे परिवार कर रहा है बालाजी की पूजन अर्चन ।

एंकर - 2 मंदिर मैं मौजूद है वर्षों पुरानी कपड़े की पगड़ी , जिसकी आज भी होती है पूरे नियमों के साथ पूजन । पगड़ी को लेकर है कई कहानियां पूर्व मैं पगड़ी मेसे निकलते थे चांदी के सिक्के । साधुओं को भोजन कराने मैं होता था सिक्कों से मिले पैसों का उपयोग ।
Etv भारत के पास मौजूद हैं वर्षों पुरानी पगड़ी के एक्सक्लुसिव शॉट
एंकर -बालाजी करते है भक्तों की मनोकामना पूरी , मनोकामना पूरी होने पर चढ़ता है चूरमा का प्रसाद । ग्वालियर राजघराने से मिलती थी मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए रकम , अब मध्यप्रदेश शासन द्वारा भेजी जाती से सहायता रकम । कई बार लोगों ने किया मंदिर को क्षति पहुचाने का प्रयास लेक़िन नहीं हो सके सफल ।
Body:
वाइस ओवर - गंज बासौदा के पंडा पुरा में एक बेहद ही प्राचीन बालाजी का मंदिर है बताया जाता है कि यह मंदिर लगभग 500 से 600 वर्ष पुराना है और इस मंदिर की पूजा तभी से पंडा पुरा में निवास करने वाला दुवे परिवार करता रहा है । मंदिर में पूर्व से ही बालाजी महाराज की एक छोटी सी प्रतिमा स्थापित थी जिसकी लोग पूजन करते थे साथ ही ही जो भी भक्त मनोकामना मांगते थे वह मनोकामना यश मंदिर से पूरी होकर जाती थी ।

मंदिर से जुड़ी हैं कई किवदंतिया -
जितना पुराना है मंदिर है उतनी ही पुरानी ही पुरानी यहां से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है । मंदिर में आज भी लगभग 500 वर्ष पुरानी एक पगड़ी रखी हुई है जिसके बारे में कहा जाता है कि पूर्व में इस पगड़ी में से से में से से रोज पांच चांदी के सिक्के निकलते थे जिन्हें कलदार कहा जाता था और दुबे परिवार उन कलदारों का उपयोग साधु संतों के भोजन कराया जाता था जिसे सदाव्रत कहा जाता था उसी रकम का उपयोग के जीर्णोद्धार के काम में लगा दिया करता था मंदिर में ही रहने वाले सुरेश नारायण दुबे बताते हैं कि इस पागड़ी पागड़ी को छूने से पहले व्यक्ति को कई नियमों का पालन करना पड़ता है और बगैर किसी अन्य वस्त्र के गीले वस्त्र में ही इसकी इसकी में ही इसकी इसकी पूजन की जाती है , पूर्व में ऐसे ही ऐसे ही ही उनके परिवार के किस सदस्य ने उन कलाकारों को बगैर नियम के उठा लिया या फिर उनका कलदारो का उपयोग किसी अन्य काम में करने लगा दिया जिस कारण से आज वह कलदार निकलना बंद हो गए लेकिन भोजन कराने की वही पुरानी परंपरा आज भी दुबे परिवार द्वारा चालू रखी गई है पूर्व में जहां डेली ब्राह्मणों व साधुओं को भोजन कराए जाते थे वहीं आज दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट का आयोजन किया जाता है जिसमें क्षेत्र सहित आसपास के लोगों को प्रसादी ग्रहण करने आमंत्रित किया जाता है ।
वह पगड़ी अब आम भक्तों के लिए दर्शन के लिए नहीं रखी जाती लेक़िन मंदिर के सदस्यों ने Etv भारत को ख़ास तौर पर उस वर्षों पुराने पगड़ी के वीडियो उपलब्ध कराए
82 वर्षीय दुबे बताते दुबे बताते हैं की मंदिर कितना पुराना है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर को सिंधिया राजघराने द्वारा ग्वालियर स्टेट से ऐड मिलता था जिसका उपयोग मंदिर के जीर्णोद्धार व मंदिर की रखरखाव के लिए किया जाता था वही ऐड के रूप में आज मध्यप्रदेश शासन द्वारा के रूप में आज मध्यप्रदेश शासन द्वारा में आज मध्यप्रदेश शासन द्वारा भी इस मंदिर को सहायता मिलती है ।

मनोकामना पूर्ण होने पर चढ़ता है चूरमा का प्रसाद
मंदिर के बारे में भक्तों ने बताया कि मंदिर से मांगी गई हर एक मुराद पूरी होती है और अपनी मनोकामना पूरी होने पर लोग मंदिर में चूरमा का प्रसाद चढ़ाते हैं यह चूरमा भी विशेष प्रकार से विधि विधान के द्वारा बनाया जाता है और जिस किसी भी वक्त की यहां से यहां से मनोकामना पूर्ण होती है वह बालाजी महाराज को चूरमा का प्रसाद चढ़ाकर लोगों को वितरित करता है ।

वाइट - सुरेश नारायण दुवे ( बुजुर्ग जानकार )
वाइट - विक्की दुवे ( भक्त )
वाइट - भक्त



Conclusion:
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