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विदिशा: नाली से कबाड़ बीन रहे नौनिहाल, कैलाश सत्यार्थी के गृह जिले में ऐसे पल रहा देश का भविष्य...

विदिशा में बाल मजदूरी करने के लिये मजबूर है मासूम बच्चे. नालियों में से कबाड़ इक्कठा कर करते हैं दो वक्त की रोटी का इंतजाम. नोबल पुरुस्कार कैलाश सत्यार्थी का ग्रह जिला है विदिशा.

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Published : Feb 14, 2019, 8:21 PM IST

मजदूरी करते बच्चे

विदिशा। बचपन जिंदगी का सबसे खुशनुमा पल होता है. जहां रोज कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. ये वो वक्त होता है जहां इंसान बिना वक्त की परवाह किये, जिंदगी को जी भरके जीता है क्योंकि हमारी जिंदगी के सबसे बेहतरीन पल बचपन के ही होते है. लेकिन, हम ये सोंचे कि हर बच्चे का बचपन ऐसा ही बीतता है तो शायद हम गलत हैं.

पैकेज
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नाली में से कबाड़ बीनते ये नन्हें मासूम मध्यप्रदेश के विदिशा शहर के हैं. वही विदिशा जहां से दुनिया भर में बचपन बचाने का काम करने वाले नोबल पुरुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी आते हैं. जहां की सांसद सुषमा स्वराज विदेश मंत्री बनकर अपनी सरकार की तारीफ में कसीदे पड़ती हैं. लेकिन, पढ़ने-लिखने के वक्त में दो जून की रोटी के लिए दर-दर भटकते ये मासूम जनप्रतिनिधियों के दावों पर सवाल खड़े करते हैं.

कचरा बीनते, शादियों में सजावटी लाइट कंधों पर ढोते, नालियों से कबाड़ इकठ्ठा करते इन बच्चों की तस्वीरें विदिशा में देखने को मिलीं. दुनिया भर में बच्चों को मजदूरी से बचाने के लिये अभियान चला रहे कैलाश सत्यार्थी के ग्रह नगर का ये हाल है, तो पूरे मध्यप्रदेश में बाल मजदूरी किस हद तक होगी इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. ऐसे में बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिये जरुरी है कि गरीबी को खत्म किया जाये. इसके लिये सरकार के दावों भर से कुछ नहीं होगा, इसे रोकने के लिये कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे.

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विदिशा। बचपन जिंदगी का सबसे खुशनुमा पल होता है. जहां रोज कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. ये वो वक्त होता है जहां इंसान बिना वक्त की परवाह किये, जिंदगी को जी भरके जीता है क्योंकि हमारी जिंदगी के सबसे बेहतरीन पल बचपन के ही होते है. लेकिन, हम ये सोंचे कि हर बच्चे का बचपन ऐसा ही बीतता है तो शायद हम गलत हैं.

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नाली में से कबाड़ बीनते ये नन्हें मासूम मध्यप्रदेश के विदिशा शहर के हैं. वही विदिशा जहां से दुनिया भर में बचपन बचाने का काम करने वाले नोबल पुरुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी आते हैं. जहां की सांसद सुषमा स्वराज विदेश मंत्री बनकर अपनी सरकार की तारीफ में कसीदे पड़ती हैं. लेकिन, पढ़ने-लिखने के वक्त में दो जून की रोटी के लिए दर-दर भटकते ये मासूम जनप्रतिनिधियों के दावों पर सवाल खड़े करते हैं.

कचरा बीनते, शादियों में सजावटी लाइट कंधों पर ढोते, नालियों से कबाड़ इकठ्ठा करते इन बच्चों की तस्वीरें विदिशा में देखने को मिलीं. दुनिया भर में बच्चों को मजदूरी से बचाने के लिये अभियान चला रहे कैलाश सत्यार्थी के ग्रह नगर का ये हाल है, तो पूरे मध्यप्रदेश में बाल मजदूरी किस हद तक होगी इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. ऐसे में बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिये जरुरी है कि गरीबी को खत्म किया जाये. इसके लिये सरकार के दावों भर से कुछ नहीं होगा, इसे रोकने के लिये कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे.

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Intro:हिन्दुस्तान के डिजिटल इंडिया की असल भारत की तस्बीर उस देश प्रदेश शहर की जमीनी हक़ीक़ते बया करती है जिस जिले को आंकड़ो में अब्बल बताया जाता है जिस जिले की सांसद सुषमा स्वराज देश की विदेश मंत्री बनकर अपनी सरकार की तारीफों में दुनिया भर में कसीदे पड़ती हों
इतना ही नही दुनिया भर में बचपन बचाने का दाबा करने वाले नॉवल पुरुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का ग्रह जिला भी कहा जाता है आये दिन कैलास सत्यार्थी का आना जाना यहाँ लगा होता है पर आज तक न तो शहर में मजदूरी करने वालो पर हुक्मरानों की नज़र पड़ी न ही बचपन के नाम पर दुनिया मे शोहरत हासिल करने वाले समाज सेवी की ।



Body:जिला मुख्यालय पर आज भी भूखे पेट का सवाल बरकार है विदिशा में दो जून की रोटी के लिए कई मासूमो को खुले आम मजदूरी करने को मजबूर हैं तो कहीं चंद पेसो के लिए अपनी जान को जोखिम में डालने से भी कोई परहेज नही करते ।




Conclusion:दरअसल विदिशा में उन दिनों शादियों का सिजिन चल रहा है जिन बच्चो के हाथों में खिलोने होना चाहिए वो मासूम हाथ अपना घर चलाने के लिए सर पर लाइट के गमले उठाकर आसानी से बड़े घरानों की पार्टी में शोभा बढ़ाते नज़र आ जाते है
तो कुछ बच्चे गंदे नाले में उतर कर कचरा बेचकर पैसा कमाने की जदोजहद करते हैं

भले ही बचपन बचाओ आंदोलन और नॉवल पुरुस्कार विजेता दुनिया भर में बचपन बचाने की मुहिम चला रहे हो पर विदिशा आज भी बाल मजदूरी जेंसे अभिशाप से मुक्त नही हो सके या हम कह सकते है भूखे पेट का सवाल आज भी बरकार है ।
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