विदिशा। बचपन जिंदगी का सबसे खुशनुमा पल होता है. जहां रोज कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. ये वो वक्त होता है जहां इंसान बिना वक्त की परवाह किये, जिंदगी को जी भरके जीता है क्योंकि हमारी जिंदगी के सबसे बेहतरीन पल बचपन के ही होते है. लेकिन, हम ये सोंचे कि हर बच्चे का बचपन ऐसा ही बीतता है तो शायद हम गलत हैं.
नाली में से कबाड़ बीनते ये नन्हें मासूम मध्यप्रदेश के विदिशा शहर के हैं. वही विदिशा जहां से दुनिया भर में बचपन बचाने का काम करने वाले नोबल पुरुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी आते हैं. जहां की सांसद सुषमा स्वराज विदेश मंत्री बनकर अपनी सरकार की तारीफ में कसीदे पड़ती हैं. लेकिन, पढ़ने-लिखने के वक्त में दो जून की रोटी के लिए दर-दर भटकते ये मासूम जनप्रतिनिधियों के दावों पर सवाल खड़े करते हैं.
कचरा बीनते, शादियों में सजावटी लाइट कंधों पर ढोते, नालियों से कबाड़ इकठ्ठा करते इन बच्चों की तस्वीरें विदिशा में देखने को मिलीं. दुनिया भर में बच्चों को मजदूरी से बचाने के लिये अभियान चला रहे कैलाश सत्यार्थी के ग्रह नगर का ये हाल है, तो पूरे मध्यप्रदेश में बाल मजदूरी किस हद तक होगी इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. ऐसे में बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिये जरुरी है कि गरीबी को खत्म किया जाये. इसके लिये सरकार के दावों भर से कुछ नहीं होगा, इसे रोकने के लिये कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे.