नई दिल्ली/ उमरिया। बांधवगढ़ का नाम तो आपने सुना ही होगा. शायद आप में से कई लोग यहां आए भी होंगे. दरअसल, मध्य प्रदेश के मध्य में स्थित एक महत्वपूर्ण बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, रॉयल बंगाल टाइगर्स को देखने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) ने साल 1938 के बाद यहां से पहली बार अपनी खोज में 26 प्राचीन मंदिरों के अवशेष, 26 गुफाएं, 2 मठ, 2 स्तूप, 24 अभिलेख, 46 प्रतिमाएं, 20 बिखरे हुए अवशेष और 19 जल सरंचनाओं के साथ ही मुगल कालीन और शर्की शासकों के सिक्के खोज निकाले हैं. यहां पर बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म से जुड़े कई अवशेष मिले हैं, जो नौवीं से ग्यारहवीं शताब्दी के हैं. एएसआई की मध्यप्रदेश सर्कल ने इसी साल मई और जून में अपने पहले चरण के फेज में ये चीजें खोजी हैं. बताते चलें कि जिस जगह पर ये चीजें मिली हैं यहां पर आम लोगों का प्रवेश वर्जित है. एएसआई ने वन्य विभाग की इजाजत के बाद 176 किलोमीटर तक यह सर्वेक्षण किया है.
भगवान विष्णु की कई मूर्तियां और अवशेष: एएसआई की खोज में बांधवगढ़ में भगवान विष्णु व भगवान गणेश की विशाल प्रतिमाएं मिली है. इसमें भगवान विष्णु की शेष शैय्या पर लेटी हुई मूर्ति भी शामिल है. इसके अलावा अन्य मंदिर और मूर्तिया मिली हैं. पहले चरण में खोज के बाद इस पर विश्लेषण करने के बाद दूसरा चरण शुरू किया जाएगा.
पहली बार मिले मनौती स्तूप : मध्यप्रदेश के जबलपुर सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉक्टर शिवा कान्त बाजपेयी ने बताया कि हमारे सर्वेक्षण में पहली बार बांधवगढ़ से मिले मनौती स्तूप और बौद्ध स्तूप युक्त स्तंभ महत्वपूर्ण है. इस खोज से बांधवगढ़ के इतिहास में एक नवीन अध्याय जुड़ गया है. इसके अतिरिक्त यहां से एक वराह प्रतिमा मिली है, जिसकी लंबाई 6.4 मीटर, ऊंचाई 5.03 मीटर और चौड़ाई 2.77 मीटर है. उन्होंने कहा कि एरन में स्थित अभी तक के सबसे विशाल वराह से भी कई गुना बड़ी है. इस प्रकार बांधवगढ़ स्थित वराह दुनिया का विशालतम वराह है. इसके साथ ही साथ बाधवगढ़ में मिले 2 नवीन मंदिर समूह यहां के मंदिर वास्तुकला के अध्य्यन के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण खोज हैं. यहां स्थित मंदिर और मठ बांधवगढ़ में मत्तमयूर संप्रदाय के होने के संकेत देते हैं.
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साल 1938 में पहली बार हुआ था सर्वेक्षण: बांधवगढ़ में एएसआई के द्वारा प्रथम अन्वेषण डॉक्टर एन. पी. चक्रवर्ती की निगरानी में साल 1938 में किया गया था. डॉक्टर चक्रवर्ती ने मुख्य रूप से शिलालेखों पर केंद्रित अन्वेषण व अभिलेखिकरण का कार्य किया था. जिसके कारण गुहा वास्तुकला के बारे में अधिक जानकारी सामने नहीं आई. तब से इस क्षेत्र में कुछ छोटे अन्वेषण या शोध किए गए हैं. कुछ पुस्तकों में मंदिर और गुफाओं का उल्लेख मिलता है. लेकिन उनमें उन पुरावशैषो स्मारकों का विवरण उपलब्ध नहीं है. डॉक्टर चक्रवर्ती ने बघेल राजा की अनुमति से सर्वेक्षण किया था. जहां उन्होंने बांधवगढ़ के शिलालेखों का प्रकाशित किया है. इसके अलावा डॉक्टर मिराशी ने कलचुरी, चेदी युग के शिलालेख में बांधवगढ़ के नागरी शिलालेख को भी प्रकाशित किया है. साल 2020 में एएसआई जबलपुर मंडल की स्थापना हुई, जिसके बाद साल 2022 में एक बार फिर सर्वेक्षण का काम किया गया.
एक नजर में जानिए बांधवगढ़ में क्या-क्या है
- पहले 9 मंदिर थे, 26 नए मिले हैं, अब कुल 35 मंदिर हैं.
- गुहा पहले 50 थे, अब 26 नए मिले हैं, कुल 76 गुहा रिकॉर्ड.
- मठ के बारे में पहले कोई रिकॉर्ड नहीं है, यह पहली बार है जब 2 नए मठ मिले हैं.
- स्तूप भी पहली बार मिले हैं, इनके बारे में कोई रिकॉर्ड पहले नहीं था.
- 26 अभिलेख पहले से रिकॉर्ड है. इस बार 24 नए मिले हैं, कुल 50 का रिकॉर्ड है.
- प्रतिमाएं पहले 10 थीं अब नई 46, कुल रिकॉर्ड 56 हो गया है.
- पहली बार 20 बिखरे हुए अवशेष मिले.
- जल सरंचनाएं पहले 8 रहीं और अब 19 नई मिली हैं, कुल 27 रिकॉर्ड में हैं.
एक नजर में बांधवगढ़ : मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में स्थित, बांधवगढ़ प्रमुख रूप से अपने टाइगर रिजर्व के लिए जाना जाता है. लेकिन इस क्षेत्र में उपस्थित एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू जिसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है वह है बांधवगढ़ की पुरातत्व विरासत. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को यह क्षेत्र उपहार में दिया था. अभी तक सर्वेक्षण में बांधवगढ़ का लिखित इतिहास कम से कम दूसरी शताब्दी ईस्वी तक का माना जाता है. प्राप्त अभिलेखों से स्पष्ट होता है कि यह क्षेत्र बहुत लंबे समय तक मघ राजवंश के अधीन था. (Archaeological Survey of India) (ASI) (Bandhavgarh National Park)