उमरिया। मजदूरी को अपनी किस्मत मान बैठी महिलाओं के लिए सुरजना के पौधे वरदान साबित हुए हैं. महिलाओं की मेहनत ने ही उमरिया को सुरजना के सहारे नई पहचान दी है. कूड़े-कचरे के ढेर में उगने वाला सामान्य यह पौधा और इसकी फलियां सिर्फ सब्जी नहीं बल्कि दुनिया का सुपर फूड बन गया है. कभी वीरान और बंजर पड़ी ज़मीन पर हरियाली छाई हुई है. कभी खेतों की मेढ़ तो कभी कूड़े के ढेर में जिन्हें हम हमेशा नज़रअंदाज़ करते आए, वही मुनगा के पौधे यहां लहलहा रहे हैं. यह नज़ारा उमरिया जिले के कई गांवों में देखा जा सकता है. यही पौधे कई महिलाओं की तक़दीर बन गए हैं.
पत्तियों का रेट 70 रुपये प्रति किलो : अलग-अलग क्षेत्रों में इसे मुनगा, मोरिंगा, ड्रमस्टिक, सुरजना, सेंजन भी कहते हैं. उमरिया जिले के गांव करौंदी टोला के दुर्गा स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष रैमुन कुशवाह ने बताया कि घर की ज़मीन इतनी कम है कि सालभर मेहनत के बाद भी कोई कमाई नहीं होती थी. सुरजना के पौधे लाए. खेत के पास फालतू पड़ी ज़मीन पर लगाए. गोबर खाद डाला. सालभर में इन पौधों में फलियां लगी और इनकम शुरू हो गई. इसी समूह की सचिव पुष्पा ने बताया कि इस सुरजना ने हमारी जि़ंदगी बदल दी. मजदूरी की बजाए हमने इन पौधों को बच्चों की तरह पाला और अब ये बिना काम की जमीन सोना बन गई. हम पत्तियां तक 70 रुपए किलो तक बेच रहे हैं. इस समूह में 15 दीदियां सदस्य हैं, जिनमें पांच दीदी सुरजना की खेती कर कमाई कर रहीं हैं. इनमें सुमित्रा, मीरा, निशा कुशवाह भी हैं, जो मुनगा की खेती कर रहीं हैं.
जिले में अब तक 80 हजार पौधे लगे : उमरिया जिले में इस समय 80 हजार पौधे लगाए जा चुके हैं. देश-दुनिया में उमरिया का मुनगा धूम मचा रहा है. जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी ईला तिवारी ने बताया कि आदिवासी की मेहनत को सही रास्ता मिल गया है. हमें ख़ुशी है कि मुनगा जैसे पौष्टिक पौधे की खेती का दोहरा फल मिल रहा है. यहां की समूह सदस्य महिलाएं अब आत्मनिर्भर हो रहीं हैं. मुनगा प्लांटेशन का अन्य महिलाओं को भी प्रशिक्षण दिया जाएगा. आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक प्रमोद शुक्ला ने कहा कि जिले में मुनगा की खेती का नवाचार सफल रहा है. अलग-अलग स्वयं सहायता समूह की 30 दीदियों ने तीन साल की मेहनत कर हॉर्टिकल्चर विभाग द्वारा अस्सी हजार पौधे तैयार किए है. इन्हें जिले के मानपुर, करकैली और पाली ब्लॉक के अलग-अलग समूह के सदस्यों को दिए हैं.
40 ग्राम पंचायतों की महिलाओं को लाभ : 40 ग्राम पंचायतों में लगभग तीन सौ महिलाओं को आर्थिक लाभ मिल रहा है. इस मुनगा मॉडल को देखने डिंडौरी, कटनी, शहडोल आदि जिलों से भी देखने आ रहें हैं. कंपनी को ही सदस्यों ने अब तक 34 लाख रुपए की मुनगा सूखी पत्तियां बेची हैं. खास बात यह है कि नर्सरी में लगाए गए पौधों को किस्म की इंडो -जर्मन बेस है, जिसकी खासियत एक साल में ही पौधों में फली आने लगती हैं. मुनगा के फल और पेड़ की पत्तियों के साथ छाल तक बहुत उपयोगी है. न्यूट्रीशिनिस्ट मेघा शर्मा ने बताया मोरिंगा या ड्रमस्टिक प्रोटीन, आयरन और मैग्नीशियम के साथ ही विटामिन बी, सी और ए से भरपूर है. वहीं इसकी पत्तियों का पाउडर मल्टीविटामिन सप्लीमेंट तो होता ही है. साथ ही ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल और बीपी को कंट्रोल करने में मदद करता है.
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सुरजन का हर हिस्सा काम का : उन्होंने बताया कि इसके पेड़ का हर हिस्सा खाने लायक और फायदेमंद है. सदियों से भारत में खाया जाने वाला मोरिंग को आज पूरी दुनिया सुपरफूड मानती है, यहां तक कि अविकसित देशों में भी यह प्रोटीन के साथ ज़रूरी विटामिन्स और मिनरल्स की कमी दूर करने वाला एक अच्छा विकल्प है. लगभग तीन साल पहले शुरू हुए मुनगा खेती के प्रयोग और उत्पादन को देख शहडोल जिले की माइकल फॉर्मर प्रोड्यूसर कंपनी ने जिले से अनुबंध कर लिया. कंपनी मुनगा पेड़ की सूखी पत्तियां तक 70 रुपए प्रति किलो में खरीद रही है. असर यह हुआ कि आदिवासी गांव के हाट बाज़ारों में ये सूखी पत्तियां 80 रुपए किलो तक बिकने लगीं हैं.