उज्जैन। हिन्दू पंचांग के अनुसार साल का पहला सूर्य ग्रहण ज्येष्ठ मास की अमावस्या (amavsya) तिथि को लग रहा है। यह तिथि ग्रिगेरियन कैलेण्डर (gregorian calender) के अनुसार, 10 जून को पड़ेगी। यह इस वर्ष का दूसरा ग्रहण है, परन्तु सूर्य ग्रहण पहला है। इससे पहले 26 मई को वर्ष का पहला चन्द्र ग्रहण लग चुका है। भारत में ये कंकणाकृति सूर्यग्रहण दिखाई नहीं देगा. ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इसका प्रभाव देश पर नहीं पड़ेगा. लेकिन विभिन्न ग्रहों की स्थिति केअनुसार आशंका जता रहें है कि प्राकृतिक आपदा का सामना देश को करना पड़ सकता है.उज्जैन के विख्यात ज्योतिष पंडित आनंद शंकर व्यास का कहना है कि भले ही ग्रहण का असर देश में देखने को न मिले लेकिन प्राकृतिक आपदा से इंकार नहीं किया जा सकता. उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि 8 जून से 10 जून के बीच चार ग्रह एक साथ एक राशि में रहेंगे तो प्राकृतिक आपदा बढ़ सकती है. सूर्य, चंद्र, बुध, और राहु यह चारों वृश्चिक राशि में एक साथ रहेंगे जिसके कारण प्राकृतिक आपदा जैसी अतिवृष्टि भूस्खलन हो सकते है हालांकि ढाई दिन बाद ग्रहण हट जाएगा इसके बाद भी मंगल, शनि का प्रति योग भारी पड़ सकता है.
ज्योतिष आनंद शंकर व्यास ने बताया कि कर्क का मंगल नीच का होगा और वह मकर के शनि से संबंध बनाएगा, जो खतरनाक स्थिति को जन्म देता है. क्योंकि मंगल विस्फोटक ग्रह माना जाता है और शनि भूगर्भ का स्वामी और जल से संबंधित भी है, ऐसे में अगर भूगर्भ के स्वामी के साथ मंगल का संबंध होता है तो भूकंप आना, प्राकृतिक आपदा के हालात बनने तय हैं. ताउते और यास तूफान भी मंगल और शनि के कारण बने थे. अगले डेढ़ महीने में इस तरह की घटनाएं ज्यादा देखने को मिल सकती है. कोरोना वायरस भी फिर से बड़े जोखिम की स्थिति पैदा कर सकता है सबको सावधान रहने की आवश्यकता है.
25 दिसंबर को 6 ग्रह एक साथ एक राशि में थे तब कोरोना की शुरुआत चीन से हुई थी
ज्योतिषाचार्यों की मानें तो 25 दिसंबर 2019 में कोरोना की शुरुआत हुई थी तब 6 ग्रह एक राशि में आए थे. ये लगभग वही समय था जब चीन में कोविड ने दस्तक दी थी. इस वर्ष 2021 में भी 14 जनवरी से 9 फरवरी तक 6 ग्रह एक साथ एक राशि में आये हैं तभी से हालात बिगड़े और बाद में महामारी ने रफ्तार पकड़ी.
अमावस्या के बाद वाला गुरुवार है खास
उज्जैन के धर्म शास्त्री मान्यता के अनुसार इस बार गुरुवार का विशेष महत्व है. वो इसलिए क्योंकि यहां देवताओं के गुरु बृहस्पति से संबंधित है. साथ ही कृष्ण पक्ष की 15 तिथि तथा शुक्ल पक्ष की 15 तिथि यानी एक माह की 30 तिथियों में एक अमावस का पूर्णकालीक होना अलग स्थिति पैदा करता है. देव गुरु बृहस्पति के वार का होना इसलिए विशेष है क्योंकि गुरुवार के दिन ईष्ट की सिद्धि की जा सकती है. अमावस्या के दिन पितरों की प्रसन्नता के लिए तर्पण, पिंड दान या पितृ शांति का खास महत्व है. इस दिन विशिष्ट अनुष्ठान किया जा सकता है. मान्यता है कि इस दिन किए गए धार्मिक कार्य का विशेष फल प्राप्त होता है. ज्येष्ठ मास में आने वाली अमावस भावुक अमावस्या के नाम से भी जानी जाती है.
वट सावित्री की पूजा की मान्यता
ये दिन सुहागिनों के लिए खास है. वट सावित्री पर पूजन करने से सौभाग्य की वृद्धि एवं घर परिवार में सुख शांति का वास होता है यही क्रम शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा तिथि पर भी किया जाता है, जिसका समान फल प्राप्त होता है कुछ ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास मैं अमावस्या तथा पूर्णिमा दोनों ही दिन वट सावित्री के पूजन तथा व्रत की मान्यता है।।
शनि जयंति भी है, करें पूजा तो मिलेगा फल
इसी दिन शनि जयंति भी है. जिन जातकों की जन्म कुंडली में शनि की साढ़ेसाती अथवा शनि की ढैया या शनि की महादशा, अंतर्दशा,प्रत्यंतर दशा या सुक्ष्म प्रत्यंतर दशा चल रही हो. शनि जन्म कुंडली में विपरीत स्थिति में हो या पाप अक्रांत हो उन्हें प्रसन्न करने के लिए दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ, शनि वज्र पंजर कवच का पाठ, महाकाल शनि मृत्युंजय स्त्रोत का पाठ, शनि स्तवराज का पाठ या शनि के वैदिक अथवा बीजोक्त जाप के माध्यम से अनुष्ठान कराने से लाभ मिलता है. इससे शनि महाराज की कृपा प्राप्त होती है, रुके हुए काम बनते हैं, स्वास्थ्य अच्छा होता है और पारिवारिक अस्थिरता दूर होती है. शिक्षकों को भोजन एवं गरीबों को वस्त्र दान, पात्र दान,छाता औषधीय दवाइंया आदि दान करने से भी जीवन में सकारात्मकता आती है.
10 जून का दिन खगोलीय दृष्टि से ही नहीं बल्कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी बहुत महत्वपूर्ण है. ज्योतिर्विदों के मुताबिक दान पुण्य से संकट टलेंगे लेकिन इस दौरान भी कोरोना नियमों का पालन जरूरी है.