उज्जैन। कोविड-19 महामारी के चलते शायद ही ऐसा हो कि व्यक्ति हो जो इससे प्रभावित नहीं हो. कोरोना की चपेट में आने से कई परिवार तबाह हो गए. हालात ये बन गए हैं कि मरने वालों को अपने ही मोक्ष नहीं दिला पाए. बहुत से ऐसे मामले सामने आए कि अपनों ने साथ नहीं दिया तो कहीं कुछ लोग अपनों को मरने के बाद लावारिस छोड़कर चले गए. लावारिस लोगों को मोक्ष दिलाने का बीड़ी पंडे- पुजारियों और समाजसेवियों ने उठाया है. उन्होंने गुरूवार को ऐसे तमाम लोगों का पिंडदान और तर्पण किया है. उनके इस काम को प्रशंसनीय माना जा रहा है. ऐसा करने वाले पंडित पुजारी का कहना है कि आज भी कई लोगों की अस्थियां श्मशान में हैं. इन्हें लेने कोई नहीं आया. हमें वहीं से हमें प्रेरणा मिली कि ऐसे लोगों को मोक्ष दिलवाया जाए.
लावारिश अस्थियों का शिप्रा किनारे तर्पण
बाबा महाकाल की नगरी में उज्जैन में हर दिन हजारों की संख्या में शिप्रा नदी में स्नान करने और महाकाल के दर्शन का लाभ लेने श्रद्धालु पहुंचते हैं और खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं. आस्था के साथ हर रोज हजारों की संख्या में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के परिवार और अन्य तमाम श्रद्धालु की चिंता करना. पंडे- पुजारियों ने बताया हमारा कर्तव्य है, उन्होंने कहा कि जिनका कोई नहीं उनके हम हैं. तर्पण करने वाले पंडित ने जानकारी देते हुए बताया कि आज पूर्णिमा बेहद खास का दिन है. आज ही के दिन मोक्ष के लिए तर्पण पूजन करना चाहिए.
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लावारिस अस्थियों का किया पिंडदान
समाजसेवी कैसर सिंह ने बताया कि मुझे प्रेरणा चक्रवती से मिली यहां में आया तो मुझे पता चला कि कुछ लोगों की अस्थियां लेने उनके परिजन अब तक नहीं आए हैं. मेरे मन में विचार आया ऐसे ना जाने कितने लोग होंगे, जिनका पिंड दान नहीं किया गया है. जिसके बाद उन सभी लोगों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान साथियों के साथ मिलकर किया और मैं प्रार्थना करता हूं देश में सुख- शांति समृद्धि बनी रहे और लावारिस मरने वालों को हमारे छोटे से प्रयास से मोक्ष की प्राप्ति हो.
पिंडदान से मिलता मोक्ष
महामारी के दौरान देखने में आया है कि जिन की भी कोरोना से मौत हुई थी उनके परिजन किसी ना किसी कारण से उनके पास नहीं जा पाए, ना ही उनका पिंडदान ठीक से कर पाए. क्योंकि आज भी चक्रतीर्थ पर कई लोगों की अस्थियां रखी है, तो हमने सोचा क्यों ना जिन्हें हम जानते भी नहीं उनका आज पूर्णिमा के पावन दिन मोक्ष के लिए तर्पण कराया जाए, सब को मोक्ष की प्राप्ति हो और सबका मंगल हो यही एकमात्र उद्देश्य था. उज्जैन के शिप्रा नदी स्थित आमघाट पुराणों के अनुसार भगवान राम ने पिता की आत्मा की मोक्ष प्राप्ति के लिए पूजन किया था. तभी से शिप्रा नदी का घाट रामघाट के नाम से जाना जाता है.