उज्जैन। मकर संक्रांति (makar sankranti celebration in ujjain) देश भर में मनाया जा रहा है. तिथि के अनुसार 14 जनवरी और 15 जनवरी को अमूमन ये पर्व मनाया जाता है. संक्रांति पर्व को शहर में पतंगबाजी उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र शिप्रा नदी में डुबकी लगाकर भगवान के दर्शन कर दान पुण्य भी करते हैं. ज्योतिष के अनुसार 14 जनवरी से सूर्य उत्तरायण हो जाता है, जिसके कारण दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है. उज्जैन की जीवाजी वेधशाला में इसका महत्व अलग होता है.
सूर्य की होती है 12 संक्रांति
खगोलीय वेधशाला के अधीक्षक राजेंद्र गुप्त के अनुसार- पृथ्वी सूर्य की चारों और परिक्रमा करती है. सूर्य अलग अलग राशियों में दर्ष्टि गोचर होता है. सूर्य की 12 संक्रांति होती है. इसका मतलब अलग अलग राशि में सूर्य प्रवेश (scientific reason of makar sankranti) करता है. हालांकि 22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा पर रहता है. खगोलीय दृष्टि से 22 दिसंबर के बाद से ही सूर्य उत्तरायण होता है. 14 या 15 जनवरी को मकर संक्रांति ज्योतिष गणना के आधार पर बनायी जाती है. आज हम सूर्य को शंकु के माध्यम से देख सकते हैं कि सूर्य काफी कुछ उत्तरयण हो चुका है. इसके बाद दिन धीरे धीरे बड़े होने लगते हैं.
6 -6 महीने का फेरा
सूर्य के एक साल में दो बार होने वाले बदलावों को उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है. सूर्य 6 महीने के लिए उत्तरायण और बाकी 6 महीनों के लिए दक्षिणायन रहते हैं. हिंदू पंचांग की काल गणना के आधार पर जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि की और रहता है, तब इसको उत्तरायण कहा जाता है. इसके बाद जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि की और होता है, तब इसे दक्षिणायन कहते हैं.
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शास्त्रों में उत्तरायण का महत्व
उत्तरायण के काल को देवताओं का दिन कहा जाता है. मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने पर खरमास खत्म हो जाता है. शुभ कार्य दोबारा से आरंभ हो जाते हैं. इस दौरान नए कार्य, गृह प्रवेश, यज्ञ, व्रत, अनुष्ठान, विवाह, मुंडन जैसे कार्य करना शुभ माना जाता है.