उज्जैन। मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर में सप्तऋषियों की 6 मूर्तियां आंधी चलने के दौरान गिरने का मामला लगातार गर्म है. घटना के बाद जहां राज्य सरकार बचाव की मुद्रा में है तो वहीं, कांग्रेस इस मामले में आक्रामक रुख अपनाए हुए है. कांग्रेस लगातार इस प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर शिवराज सरकार को घेर रही है. इस प्रोजेक्ट को सूरत की एमपी बाबरिया कंपनी को सौंपा गया था. गुजरात की इस कंपनी ने भ्रष्टाचार के आरोपों को सिरे से नकार दिया है.
साल 2006 में रजिस्टर हुई थी कंपनी: महाकाल कॉरिडोर कुल 856 करोड़ का है. कुल 351 करोड़ रुपये की लागत से पहला चरण पूरा किया गया है. जिस कंपनी ने यह प्रोजेक्ट मुहैया कराया है, वह सूरत की है और एमपी बाबरिया का मुख्यालय सूरत के नाना वराछा इलाके में सीमादा सहजानंद कॉम्प्लेक्स में है. यह कंपनी वर्ष 2006 में पंजीकृत हुई थी और डबल ए श्रेणी विशेष श्रेणी के संपर्क बनाने के लिए जानी जाती है. कॉरिडोर तैयार करने वाली इस कंपनी में उड़ीसा, गुजरात, राजस्थान के कारीगर शामिल हुए. अब जब ये मूर्तियां टूट गईं तो सूरत से कारीगर इनकी मरम्मत करने उज्जैन पहुंचे हैं.
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ज्यादातर प्रतिमाएं फिर से स्थापित : कंपनी के मालिक मनोज बाबरिया ने ईटीवी भारत से दूरभाष पर बताया "उज्जैन में आए तूफान की वजह से सप्तऋषि की सात में से छह प्रतिमाएं गिर गई हैं. हमने ज्यादातर मूर्तियां फिर से लगा दी हैं. हमने सूरत से कारीगर भी भेजे हैं. हमारे द्वारा तैयार की गई मूर्तियां भूकंपमुक्त हैं. जब तूफान की स्थिति होती है तब कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. ये मूर्तियां हल्के वजन के एफआरपी से बनी हैं. इस मामले में भ्रष्टाचार का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि मूर्तियां लगाने से पहले ही दिल्ली से टीम ने निरीक्षण किया था."