उज्जैन। देश भर में दशहरा (Dussehra 2021) के दिन हर छोटे-बड़े शहर में रावण का पुतला दहन (Effigy burning ujjain) होता है, लेकिन उज्जैन से करीब 20 किमी दूर चिकली गांव में रावण का मंदिर है. यहां रावण की पूजा (Ravana Worship) होती है. खास बात यह है कि गांव में रहने वाले मुस्लिम समाज के लोग भी इसमें भागीदारी करते हैं. अब ग्रामीणों ने पांच लाख रुपए इकट्ठा किये हैं. इस धनराशि से रावण के मंदिर का जीर्णोद्वार किया जाएगा.
बुराई के प्रतिक रावण का मंदिर
उज्जैन के पास चिकली में रावण का मंदिर (Ravana Temple) है. यहां न सिर्फ पूजा-पाठ होती है, बल्कि चैत्र की नवमी और दशहरा पर मेला भी लगता है. गांव वालों का मानना है कि यह परम्परा आज से नहीं बल्कि सदियों पुरानी है. कोई नहीं जानता है कि रावण का मंदिर कब और किसने बनाया, लेकिन दशहरा पर रावण के पूजन का सिलसिला आज भी चला आ रहा है.
परम्परा का निर्वहन कर रहे ग्रामीण
ग्रामीण वीरेंद्र बताते हैं कि हमारे पूर्वजों को हमने रावण की पूजा करते देखा है. इसी तरह अब हम भी परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं. गांव के ही केसर सिंह ने बताया कि एक बार ग्रामीण रावण की पूजा करना भूल गए थे. इसके बाद गांव में भीषण आग लग गयी, जिससे काफी नुकसान हुआ था. इसके बाद हमेशा से दशहरे पर रावण की पूजा की जाती है. ग्रामीण बताते हैं कि कई लोग अन्य गांवों से अपनी मुराद लेकर रावण की पूजा करने कि लिए आते हैं. ग्रामीण दशहरा के पर्व पर शाम को रावण दहन भी करते हैं.
रावण के मंदिर के लिए पांच लाख रुपये का इकट्ठा किया चंदा
रावण का मंदिर वर्षों पुराना होने के चलते अब ग्रामीणों ने मंदिर के जीर्णोद्वार का मन बनाया है. इसके लिए उन्होंने बाकायदा 5 लाख रुपये का चंदा इकट्ठा किया है. इस धनराशि की मदद से मंदिर का जीर्णोद्धार किया जाएगा.
25 गांव से लोग करने आते हैं दर्शन
दशहरा के एक दिन पहले मंदिर में साज सज्जा की जाती है. करीब आसपास के 25 गांव के लोग यहां आते हैं. खास बात यह है कि रावण के पूजन में मुस्लिम समाज भी भागीदारी भी होती है. मान्यता है की रावण के मंदिर में जो भी भक्त अपनी मन्नत मांगता है. उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. इसी के चलते रावण के इस मंदिर में न सिर्फ उज्जैन के बल्कि गुजरात और राजस्थान के लोग भी दर्शन के लिए पंहुचते हैं.
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अंतरराष्ट्रीय लंकेश परिषद भी करता है पूजन
क्षीरसागर क्षेत्र में रहने वाले पंडित सुनील शर्मा पिछले 23 साल से दशहरे पर रावण पूजा और महा आरती करते आ रहे हैं. पिछले कुछ सालों में अब युवा भी इनसे जुड़ने लगे हैं. एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय लंकेश परिषद का गठन कर चुके हैं. दशहरा पर रावण के फोटो की आरती कर भजन भी गाये जाते हैं. संस्थापक सुनील शर्मा का मानना है कि रावण जैसे महाविद्वान का इस तरह से दहन करना किसी शास्त्र में नहीं लिखा है. रावण परम ज्ञानी और त्रिलोक विजेता पराक्रमी हैं.