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लोगों के लिए मिसाल बनी यह दिव्यांग महिला, पैरों से लाचार होने के बाद भी कमाकर पालती हैं परिवार का पेट - परिवार का पाल रहीं पेट

टीकमगढ़ में दिव्यांग विमला कुर्मी ने सभी के लिए मिसाल पेश की है. पति के बीमार पड़ जाने के बाद विमला की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी. जिसके बाद विमला ने अपनी परिवार की जिम्मेदारी उठाई है. हर रोज ट्राइ साइकिल चलाकर निकल पड़ती हैं दो वक्त की रोटी कमाने के लिए.

This is a disabled woman
मिसाल है यह दिव्यांग महिला
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Published : Sep 7, 2020, 4:33 PM IST

टीकमगढ़। दिव्यांगता को अपनी किस्मत मान चुके लोगों के लिए विमला कुर्मी किसी मिसाल से कम नहीं हैं. विमला भले ही दिव्यांग हैं, लेकिन मजबूर नहीं. पैरों से लाचार हैं लेकिन किसी की मोहताज नहीं. विमला कुर्मी के जज्बे को देखकर हर कोई हैरान है. पति के बीमार पड़ जाने के बाद विमला के सामने खाने का संकट आ गया. ऐसे में पैरों से दिव्यांग होने के बावदूज विमला ने अपनी परिवार की जिम्मेदारी उठाई है. हर रोज ट्राइसाइकिल चलाकर निकल पड़ती हैं दो वक्त की रोटी कमाने के लिए.

मिसाल है यह दिव्यांग महिला

शहर के डाकघर के पीछे रहने वहीं 50 साल की विमला कुर्मी जन्म से दोनों पैरों से दिव्यांग हैं. घरवालों ने विमला की शादी उसके उम्र से ज्यादा के व्यक्ति से कर दी गई और वह शादी के बाद से बीमार रहने लगा. जिससे इसके परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब रहने लगी और उसके परिवार के सामने दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए. जिसके बाद जैसे तैसे दिव्यांग विमला ने ट्राइसाइकिल की जुगाड़ की और फिर निकल पड़ीं परिवार के लिए रोजी रोटी कमाने के लिए.

विमला कुर्मी प्रतिदिन 3 किलोमीटर की दूरी तय कर शहर के बीचों बीच पहुंचती हैं. जहां वह अपनी ट्राइसाइकिल पर प्लास्टिक बर्तन, गुटखा, बीड़ी, सैंम्पू, बच्चों के खाने पीने और महिलाओं के सामान बेचती हैं. जिससे महिला प्रतिदिन 100 रुपया से लेकर 300 रुपया तक कमाती हैं और अपना परिवार चलाती हैं. विमला ने ट्राइसाइकिल से रोजगार कर अपनी एक बेटी को पढ़ाया लिखाया और उसकी शादी भी की, जो किसी मिसाल से कम नहीं है.

विमला कुर्मी को नहीं मिला शासन की योजनाओं का लाभ

गरीबों और दिव्यांगों को सरकार कई योजना का लाभ देने का दावा करती है, लेकिन पिछले कई सालों से यह दिव्यांग महिला ट्राइसाइकिल से रोजगार कर अपने परिवार को पाल रही है, लेकिन उसे आज तक किसी शासकीय योजना का लाभ नहीं मिला है. इस बारे में जब एसडीएम सौरभ मिश्रा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि हो सके तो वह खुद महिला से मिलेंगे और सरकार की योजनाओं का लाभ भी दिलाएंगे.

टीकमगढ़। दिव्यांगता को अपनी किस्मत मान चुके लोगों के लिए विमला कुर्मी किसी मिसाल से कम नहीं हैं. विमला भले ही दिव्यांग हैं, लेकिन मजबूर नहीं. पैरों से लाचार हैं लेकिन किसी की मोहताज नहीं. विमला कुर्मी के जज्बे को देखकर हर कोई हैरान है. पति के बीमार पड़ जाने के बाद विमला के सामने खाने का संकट आ गया. ऐसे में पैरों से दिव्यांग होने के बावदूज विमला ने अपनी परिवार की जिम्मेदारी उठाई है. हर रोज ट्राइसाइकिल चलाकर निकल पड़ती हैं दो वक्त की रोटी कमाने के लिए.

मिसाल है यह दिव्यांग महिला

शहर के डाकघर के पीछे रहने वहीं 50 साल की विमला कुर्मी जन्म से दोनों पैरों से दिव्यांग हैं. घरवालों ने विमला की शादी उसके उम्र से ज्यादा के व्यक्ति से कर दी गई और वह शादी के बाद से बीमार रहने लगा. जिससे इसके परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब रहने लगी और उसके परिवार के सामने दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए. जिसके बाद जैसे तैसे दिव्यांग विमला ने ट्राइसाइकिल की जुगाड़ की और फिर निकल पड़ीं परिवार के लिए रोजी रोटी कमाने के लिए.

विमला कुर्मी प्रतिदिन 3 किलोमीटर की दूरी तय कर शहर के बीचों बीच पहुंचती हैं. जहां वह अपनी ट्राइसाइकिल पर प्लास्टिक बर्तन, गुटखा, बीड़ी, सैंम्पू, बच्चों के खाने पीने और महिलाओं के सामान बेचती हैं. जिससे महिला प्रतिदिन 100 रुपया से लेकर 300 रुपया तक कमाती हैं और अपना परिवार चलाती हैं. विमला ने ट्राइसाइकिल से रोजगार कर अपनी एक बेटी को पढ़ाया लिखाया और उसकी शादी भी की, जो किसी मिसाल से कम नहीं है.

विमला कुर्मी को नहीं मिला शासन की योजनाओं का लाभ

गरीबों और दिव्यांगों को सरकार कई योजना का लाभ देने का दावा करती है, लेकिन पिछले कई सालों से यह दिव्यांग महिला ट्राइसाइकिल से रोजगार कर अपने परिवार को पाल रही है, लेकिन उसे आज तक किसी शासकीय योजना का लाभ नहीं मिला है. इस बारे में जब एसडीएम सौरभ मिश्रा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि हो सके तो वह खुद महिला से मिलेंगे और सरकार की योजनाओं का लाभ भी दिलाएंगे.

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