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पटरी पर लौटती परंपराएं, बुंदेलखंड में फिर गुलजार होने लगे हाट-बाजार

टीकमगढ़ जिले में बुन्देलखंड की परंपराएं पटरी पर लौटने लगी हैं. नए दौर की तेज चाल में पीछे छूटे गांव-गांव लगने वाले हाट बाजार फिर से बुंदेलखंड की जमीन पर गुलजार होने लगे हैं.

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Published : Oct 12, 2019, 11:35 PM IST

हाट बाजार

टीकमगढ़। जिले में अब बुंदेलखंड की संस्कृति और परंपरा वापस पटरी पर लौटने लगी है. आधुनिकता और ऑनलाइन खरीददारी के इस दौर में जहां गांव में लगने वाले हाट बस तस्वीरों और इतिहास के पन्नों पर ही नजर आते थे, ऐसे में अब इन हाटों का नजारा एक बार फिर लोगों को उत्साहित कर रहा है.

भागदौड़ भरी जिंदगी में अब लोग ऑनलाइन शॉपिंग मॉल में खरीददारी करने लगे हैं, जिसके चलते गांव-गांव में लगने वाले हाट बाजार महज इतिहास की तस्वीर बनने लगे थे. इन हाट बाजार में किसी शॉपिंग मॉल की तरह ही सुई से लेकर रोजमर्रा का हर सामान मिल जाता है. सप्ताह में एक बार लगने वाले ये बाजार किसी मेले से कम नहीं होते, यहां आकर खरीददारी करने का उत्साह ग्रामीणों में साफ देखा जाता है.

पटरी पर लौटती परंपरा

टीकमगढ़ जिले में अब लोग पीछे छूटी बुंदेली परंपरा की तरफ वापस लौट रहे हैं और इस बात का प्रमाण दे रहे हैं. बुंदेलखंड में लगने वाले ये हाट बाजार जो ग्रामीण इलाकों में लगने लगे हैं, लोगों का इन बाजारों के प्रति रुझान भी बढ़ने लगा है.

आधुनिकता के दौर ने अपनी रफ्तार पकड़ी तो गांव-गांव में लगने वाले हाट-बाजार पीछे छूट गए. बुंदेली संस्कृति भी प्रभावित होती चली गई. नए दौर की तेज चाल में कदम मिलाने के चक्कर में यहां के लोग बुंदेलखंडी रीति रिवाज, मेले और हाट बाजार को भुला चुके थे, लेकिन अब ये दौर लोगों की जिंदगी में दोबारा दस्तक देने लगा है.

टीकमगढ़। जिले में अब बुंदेलखंड की संस्कृति और परंपरा वापस पटरी पर लौटने लगी है. आधुनिकता और ऑनलाइन खरीददारी के इस दौर में जहां गांव में लगने वाले हाट बस तस्वीरों और इतिहास के पन्नों पर ही नजर आते थे, ऐसे में अब इन हाटों का नजारा एक बार फिर लोगों को उत्साहित कर रहा है.

भागदौड़ भरी जिंदगी में अब लोग ऑनलाइन शॉपिंग मॉल में खरीददारी करने लगे हैं, जिसके चलते गांव-गांव में लगने वाले हाट बाजार महज इतिहास की तस्वीर बनने लगे थे. इन हाट बाजार में किसी शॉपिंग मॉल की तरह ही सुई से लेकर रोजमर्रा का हर सामान मिल जाता है. सप्ताह में एक बार लगने वाले ये बाजार किसी मेले से कम नहीं होते, यहां आकर खरीददारी करने का उत्साह ग्रामीणों में साफ देखा जाता है.

पटरी पर लौटती परंपरा

टीकमगढ़ जिले में अब लोग पीछे छूटी बुंदेली परंपरा की तरफ वापस लौट रहे हैं और इस बात का प्रमाण दे रहे हैं. बुंदेलखंड में लगने वाले ये हाट बाजार जो ग्रामीण इलाकों में लगने लगे हैं, लोगों का इन बाजारों के प्रति रुझान भी बढ़ने लगा है.

आधुनिकता के दौर ने अपनी रफ्तार पकड़ी तो गांव-गांव में लगने वाले हाट-बाजार पीछे छूट गए. बुंदेली संस्कृति भी प्रभावित होती चली गई. नए दौर की तेज चाल में कदम मिलाने के चक्कर में यहां के लोग बुंदेलखंडी रीति रिवाज, मेले और हाट बाजार को भुला चुके थे, लेकिन अब ये दौर लोगों की जिंदगी में दोबारा दस्तक देने लगा है.

Intro:एंकर इंट्रो / टीकमगढ़ जिले में बुन्देलखण्ड की परम्पराए लोटी पटरी पर अब पुराने जमाने की तरह फिर से लगने लगे गांवो में हाट बाजार आधुनिकता की दौड़ में भी


Body:वाइट् /01 जगदीश मिश्रा बड़ागांव

वाइट् /02 महेंद्र सिंह गुडनवारा

वाइट् /03 पुष्पेंद्र तिवारी बुढेरा

वाइस ओबर / टीकमगढ जिले में अब फिर से बुन्देलखण्ड की संस्कृति सभ्यता और परम्पराए बापिस पटरी पर लौटने लगी है !किसी ने सच ही कहा कि यह पृथ्वी गोल है !आप जहाँ से चलेंगे फिर घुमकर वही पर पहुंचेंगे ओर ऐसा ही हुआ आज से सेकड़ो साल पूरे राजशाही जमाने मे पहिले हर पँचायत पर बाजार लगा करते थे जिसमें जरूत की सारी बस्तुये मील जाती थी जैसे ताजी सब्जियां गांव में उगाई हुई कपड़ा ,राशन जुटा चप्पल ,किराना राशन तेल आदि सारी जरूरत का सामान मिलता था और लोग बड़े ही उत्साह के साथ इन हाट बाजारो में खरीदारी करने के साथ साथ लुफ्त उठाने भी जाते थे और इन बाजारो में कम दामों पर लोगो को अपने अपने गांवो में ही समान मिलजाता था जिससे लोग काफी खुश रहते थे लेकिन जैसे ही आधुनिकता का दौर चला तो गांव के सारे बाजार बंद होगये ओर बुंदेली परम्परा ओर संस्कृति और सभ्यता प्रभावित होती चली गई और लगातार 40 साल से बुन्देलखण्ड के लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता खान पान को नजर अंदाज कर आधुनिकता में वह गए और बुन्देलखण्डी सारे रीति रिवाज ओर मेले ठेले भूल गए और यह बन्द होगये थे और लोग एक नये जमाने मे जीने लगा और उसी दौड़ में समिल हो गया था


Conclusion:टीकमगढ जिले के लोगो मे धीरे धीरे अपनी बुंदेली संस्कृति और सभ्यता और हाट बाजारो का रुझान बढ़ना सुरु हुआ तो ओर लोगो को भी जागरूक कियाऔर अब गांव गांव में ही हाट बाजार लगना सुरु हुए और लोगो को अब अपने गांव में ही सप्ताह में 2 बार बाजार लगने पर सारा सामान मिलजाता है !और बिसेसकर गांव में उगाई गई ताजी सब्जियां लोगो को मिलजाति हे !जो स्वास्थ्य को काफी लाभदायक होती है !और अब गांव के इन हाट बाजारो में लोगो को कपड़ा, किराना, अनाज, तेल ,जूता चप्पल, सहित जरूरत का सारा सामान मिल जाता है !जिससे लोगो को अब शहरों तक नही भागना पड़ता है !और लोगो को सारा सामान सस्ते दामों में उपलब्ध होता है !लोगो का कहना रहा कि हमारी बुन्देलखण्ड की परंपरा अब बापिस लौट आई है !और अब गांव गांव और नगर नगर हाट बाजार लगने से लगता है !कि हम सच्चे बुन्देलखण्डी है !और लोग काफी खुश भी नजर आरहे है !और उनका कहना रहा कि हमारी युवा पीढ़ी बुन्देलखण्ड की संस्कृति ,सभ्यता, ओर परंपराओं से दूर होती जा रही थी लेकिन अब हम लोग उनको भी बुन्देलखण्डी परंपराओं को लेकर जागरूक करेंगे आज टीकमगढ जिले में गांव गांव में बाजार लगने लगे है !जिससे आज राजशाही जमाना याद आने लगा है
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