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'कुरीति के कुओं' में बंधा प्यासे बुंदेलखंड का पानी, 21वीं सदी में भी क्यों जारी है ये जहरीली प्रथा?

बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के सुजानपुरा गांव में आज भी छूआछूत जैसी कुरीतियों की वजह से लोग आज भी एक-दूसरे के विरोधी बने हैं. इस गांव में बने तीन कुएं जातीय भेदभाव का सबसे बड़ा उदाहरण हैं. ये कुएं जाति के आधार पर गांव के लोगों में बंटे हैं. जिस जाति का जो कुआं है, उस जाति का आदमी उसी कुएं से पानी भर सकता है.

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Published : Mar 21, 2019, 2:44 AM IST

टीकमगढ़। देश को आजादी मिले सात दशक से भी ज्यादा का समय हो गया है. लेकिन, अफसोस 21वीं सदी के भारत में भी हमारे देश के कई इलाके रूढ़ीवादी सोच पर ही जी रहे हैं. जहां छूआछूत जैसी कुरीतियों की वजह से लोग आज भी एक-दूसरे के विरोधी बने हैं.

जी हां, बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले का सुजानपुरा गांव इस बात का जीता-जागता उदाहरण है. पहली नजर में आम गांवों की तरह दिखने वाला यह गांव छुआछूत से बुरी तरह प्रभावित है. इस गांव में बने ये तीन कुएं जातीय भेदभाव का सबसे बड़ा उदाहरण हैं. ये कुएं जाति के आधार पर गांव के लोगों में बंटे हैं. जिस जाति का जो कुआं है, उस जाति का आदमी उसी कुएं से पानी भर सकता है. अगर गलती से भी वह दूसरे कुएं पर चला गया तो यहां विवाद की स्थिति बन जाती है.

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ये तीन कुएं गांव के सामान्य, पिछड़ा और दलित वर्ग के लोगों के हैं. गौर करने वाली बात ये है कि गांव में शिक्षित लोगों की संख्या में कोई कमी नहीं है, लेकिन रूढ़ीवादी सोच के आगे यहां के पढ़े-लिखे लोग भी अनपढ़ ही नजर आते हैं. वहीं समाज से छुआछूत, शोषितों, वंचितों और पिछड़ों को समान अधिकार दिलाने की बात करने वाला प्रशासन इस बात से अनजान बना हुआ है.

वर्षों से छुआछूत का दंश झेल रहा यह गांव आजादी के 70 वर्ष बाद भी सामाजिक बुराइयों से बाहर नहीं निकल पाया है.

टीकमगढ़। देश को आजादी मिले सात दशक से भी ज्यादा का समय हो गया है. लेकिन, अफसोस 21वीं सदी के भारत में भी हमारे देश के कई इलाके रूढ़ीवादी सोच पर ही जी रहे हैं. जहां छूआछूत जैसी कुरीतियों की वजह से लोग आज भी एक-दूसरे के विरोधी बने हैं.

जी हां, बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले का सुजानपुरा गांव इस बात का जीता-जागता उदाहरण है. पहली नजर में आम गांवों की तरह दिखने वाला यह गांव छुआछूत से बुरी तरह प्रभावित है. इस गांव में बने ये तीन कुएं जातीय भेदभाव का सबसे बड़ा उदाहरण हैं. ये कुएं जाति के आधार पर गांव के लोगों में बंटे हैं. जिस जाति का जो कुआं है, उस जाति का आदमी उसी कुएं से पानी भर सकता है. अगर गलती से भी वह दूसरे कुएं पर चला गया तो यहां विवाद की स्थिति बन जाती है.

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ये तीन कुएं गांव के सामान्य, पिछड़ा और दलित वर्ग के लोगों के हैं. गौर करने वाली बात ये है कि गांव में शिक्षित लोगों की संख्या में कोई कमी नहीं है, लेकिन रूढ़ीवादी सोच के आगे यहां के पढ़े-लिखे लोग भी अनपढ़ ही नजर आते हैं. वहीं समाज से छुआछूत, शोषितों, वंचितों और पिछड़ों को समान अधिकार दिलाने की बात करने वाला प्रशासन इस बात से अनजान बना हुआ है.

वर्षों से छुआछूत का दंश झेल रहा यह गांव आजादी के 70 वर्ष बाद भी सामाजिक बुराइयों से बाहर नहीं निकल पाया है.

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'कुरीति के कुओं' में बंधा प्यासे बुंदेलखंड का पानी, 21वीं सदी में भी क्यों जारी है ये जहरीली प्रथा?



टीकमगढ़। देश को आजादी मिले सात दशक से भी ज्यादा का समय हो गया है.  लेकिन, अफसोस 21वीं सदी के भारत में भी हमारे देश के कई इलाके रूढ़ीवादी सोच पर ही जी रहे हैं. जहां छूआछूत जैसी कुरीतियों की वजह से लोग आज भी एक-दूसरे के विरोधी बने हैं.



जी हां, बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले का सुजानपुरा गांव इस बात का जीता-जागता उदाहरण है. पहली नजर में आम गांवों की तरह दिखने वाला यह गांव छुआछूत से बुरी तरह प्रभावित है. इस गांव में बने ये तीन कुएं जातीय भेदभाव का सबसे बड़ा उदाहरण हैं. ये कुएं जाति के आधार पर गांव के लोगों में बंटे हैं. जिस जाति का जो कुआं है, उस जाति का आदमी उसी कुएं से पानी भर सकता है. अगर गलती से भी वह दूसरे कुएं पर चला गया तो यहां विवाद की स्थिति बन जाती है.

(वाइट-स्थानीय निवासी)



ये तीन कुएं गांव के सामान्य, पिछड़ा और दलित वर्ग के लोगों के हैं. गौर करने वाली बात ये है कि गांव में शिक्षित लोगों की संख्या में कोई कमी नहीं है, लेकिन रूढ़ीवादी सोच के आगे यहां के पढ़े-लिखे लोग भी अनपढ़ ही नजर आते हैं. वहीं समाज से छुआछूत, शोषितों, वंचितों और पिछड़ों को समान अधिकार दिलाने की बात करने वाला प्रशासन इस बात से अनजान बना हुआ है.

(वाइट-सोरव कुमार सुमन कलेक्टर टीकमगढ़)



वर्षों से छुआछूत का दंश झेल रहा यह गांव आजादी के 70 वर्ष बाद भी सामाजिक बुराइयों से बाहर नहीं निकल पाया है. पीटीसी सूर्यप्रकाश गोस्वामी- ईटीवी भारत टीकमगढ़


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