टीकमगढ़। पहाड़ों का सीना चीरकर बनाया गया विशाल स्वागत द्वार आपको उस किले तक ले जाता है जो आज भी बुदेलखंड के गौरवशाली इतिहास का गवाह है. जिसकी भव्यता, सुंदरता लोगों को इसकी ओर खींच लाती है. 21 वीं सदी में भी फौलाद की तरह मजबूती से खड़ा यह किला टीकमगढ़ जिले के बल्देवगढ़ शहर में मौजूद है, जहां पहुंचकर आज भी राजसी 'शान-ओ-शौकत' की यादें ताजा हो जाती हैं.
पहाड़ों के बीच सागर तालाब के पास एक ऊंची पहाड़ी पर ओरछा रियासत के महाराजा विक्रमाजीत सिंह के द्वारा बनवाया हुआ बल्देवगढ़ का यह किला, बुंदेलखंड के किलों में सबसे खूबसूरत माना जाता है. कहते हैं 1813-16 ईसवी के मध्य मराठों के डर से अपनी राजधानी ओरछा से टीकमगढ़ स्थानांतरित कर ली थी, जिसके बाद बल्देवगढ़ के इस किले का निर्माण कराया गया. पहाड़ों से घिरा ये किला सुरक्षा के लिहाज से सबसे मजबूत माना जाता था. कहते हैं कि इस किले पर दुश्मन कभी जीत दर्ज नहीं कर सके.
किले के फौलादी रसूख को यहां रखी फौलाद की विशाल तोप भी बयां करती है. बल्देवगढ़ की इस तोप को दुनिया की सबसे विशाल तोपों में शुमार किया जाता है. वक्त की धुंध ने इस तोप को उन्हीं दर-ओ-दीवार के बीच बेसहारा कर दिया है, जिन दीवारों के भीतर इसकी शान के किस्से गूंजते थे. अष्टधातु से बनी इस तोप को उस वक्त सबसे लंबी दूरी तक मार करने वाली तोप माना जाता था.
ये विशाल तोप और आसमान छूती किले की ऊंची, लंबी और विशाल दीवारें इसकी भव्यता को बयां करती हैं, लेकिन बुंदेलखंड के इतिहास की ये महत्वपूर्ण धरोहर शासन-प्रशासन की अनदेखी के चलते अपने हाल पर आंसू बहा रही है. इसके बावजूद इस ऐतिहासिक धरोहर का दीदार करने हर साल हजारों सैलानी बल्देवगढ़ आते रहते हैं.