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आधुनिकता की दौड़ में अपनी पहचान खोता बुंदेली नोरता, जानें क्या है इसका इतिहास - राजा गजाधर

आधुनिकता की दौड़ में अनोखा 'नोरता' अपनी पहचान खोता जा रहा है, जो नवरात्रि पर्व पर शुरू होता था, मगर पीढ़ी दर पीढ़ी पसंदीदा खेल कहीं विलुप्त होते जा रहे हैं. पढ़िए पूरी खबर.

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गुम होता नोरता
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Published : Oct 27, 2020, 6:29 AM IST

टीकमगढ़। बुन्देलखण्ड का अनोखा 'नोरता' आधुनिकता की दौड़ में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया है. ये खेल ग्रामीण इलाकों से दूर होता जा रहा है, जबकि पहले लड़कियां घर-घर में इस खेल को खेला करती थीं.

गुम होता नोरता
पहचान खोता 'नोरता'आधुनिकता की दौड़ और चमक-धमक की वजह से 'नोरता' अपनी पहचान खोता जा रहा है. आने वाले वक्त में अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो पीढ़ी दर पीढ़ी ये खेल हमेशा के लिए भूल जाएगी, जिन्हें ये पता नहीं होगा कि, आखिर 'नोरता' क्या होता है.

घरों में खेला जाता था 'नोरता'

'नोरता' पहले ग्रामीण इलाकों में घर-घर आयोजित किया जाता था, जो खास तौर पर लड़कियां के लिए महत्पूर्ण खेल माना जाता था. नवरात्रि पर्व प्रारम्भ होते ही ये खेल भी उत्साह के साथ शुरू होता था, जो पूरे 9 दिनों तक चलता था. नवमी के दिन लड़कियां चंदा-सूरज की मूर्ति बनाकर पूजा करती थी, जिसमें चबुतरे के पास गोबर से लिपाई-पुताई की जाती थी.

इस अवसर पर लड़कियां सुंदर- सुंदर गीत गाकर इस खेल खेलती थी. फिर पंचमी के दिन गौरा माता और महादेव की मिट्टी की मूर्तियां लाकर पूजा करती थीं. इसके बाद अष्टमी के दिन ये सारी लड़कियां सिर पर कलश लेकर निकलती थी. घर-घर जाकर गीत गाते हुए अनाज इकट्ठा करती थीं. इसके बाद उसी अनाज से नवमी के दिन पूजन कर भोग लगाकर 'हाप्पू' नाम से आयोजन करती थीं.

अच्छे वर की करती थी कामना

इस 'नोरता' खेल में एकरूपता, रचनात्मकता, धार्मिकता और कलात्मक का मेल रहता था, जिसमें लड़किया अपने लिए अच्छे वर की कामना भोलेनाथ और गौरा माता से करती थीं, लेकिन आज ये लोगों की आंखों से ओझल होता जा रहा है, जो एक चिंता का विषय भी है.

कैसे हुई 'नोरता' खेल की शुरूआत

साहित्यकारों के मुताबिक, संभवतः 1747 में मंडोगढ़ राज्य के राजा गजाधर हुआ करते थे, जो काफी धर्मिक प्रवृति के थे. जनता का भला करने वाले राजा के पास एक दिन गुरु महंत आए. इस मौके पर राजा ने उनसे कहा कि, 'गुरुदेव मुझे वो मंत्र बताएं, जिससे में मृत शरीर मे प्रवेश कर सकूं.' मगर महंत ने कहा कि, 'राजन ये मंत्र मैं नहीं दे सकता.' लेकिन राजा की जिद के आगे महंत को मंत्र देना पड़ा. जब मंत्र राजा को दिया गया, तो चोरी-पीछे उनका नाई सब कुछ सुन रहा था, लेकिन वो ये मंत्र पूरा नहीं सुन पाया.

एक दिन नाई राजा की अनुपस्थिति में महंत के पास पहुंचा और बोला कि, 'मुझे राजन ने भेजा है. आपने जो उनको मंत्र दिया था, वो मंत्र भूल गए है. आप बता दो, तो मैं उन तक पहुंचा दूंगा. इसके बाद महंत ने नाई को मंत्र बता दिया.'

नाई राजा के साथ शिकार पर गया. इस दौरान राजा ने सोचा कि, जो मंत्र महंत ने मुझे दिया है, उसका प्रयोग किया जाए. उन्होंने एक तोते को मार गिराया, जिसके बाद वो मृत तोते के शरीर में प्रवेश करने लगे. उन्होंने नाई से बोला कि, जब तक मैं लौटकर नहीं आ जाऊं, तब तक तुम मेरे शरीर की सुरक्षा करना. हालांकि नाई पहले से ही फिराक में था कि, वो राजा के देह में प्रवेश करेगा, राजा तोते के रूप में उड़ गए. इस दौरान नाई ने मौका न गंवाते हुए राजा की देह में प्रवेश कर लिया.

राज के शरीर में प्रवेश करने के बाद नाई ने राजमहल में आतंक मचाना शुरू कर दिया. राज्य के तमाम लोगों का वध करवाना प्रारंभ कर दिया. इसके अलावा जितने भी तोते-मिट्ठू थे, उन्हें भी मरवा दिया. राज्य में त्राहि-त्राहि होने के बाद रानी समझ गईं कि, वो उनके राजा गजाधर नहीं है. राज्य को संकट में देखते हुए लड़किया इस नकली राक्षस राजा की पूजा करने लगीं, तब जाकर वो शान्त हुआ. इसी के बाद से ही 'नोरता' की शुरुआत हुई.

टीकमगढ़। बुन्देलखण्ड का अनोखा 'नोरता' आधुनिकता की दौड़ में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया है. ये खेल ग्रामीण इलाकों से दूर होता जा रहा है, जबकि पहले लड़कियां घर-घर में इस खेल को खेला करती थीं.

गुम होता नोरता
पहचान खोता 'नोरता'आधुनिकता की दौड़ और चमक-धमक की वजह से 'नोरता' अपनी पहचान खोता जा रहा है. आने वाले वक्त में अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो पीढ़ी दर पीढ़ी ये खेल हमेशा के लिए भूल जाएगी, जिन्हें ये पता नहीं होगा कि, आखिर 'नोरता' क्या होता है.

घरों में खेला जाता था 'नोरता'

'नोरता' पहले ग्रामीण इलाकों में घर-घर आयोजित किया जाता था, जो खास तौर पर लड़कियां के लिए महत्पूर्ण खेल माना जाता था. नवरात्रि पर्व प्रारम्भ होते ही ये खेल भी उत्साह के साथ शुरू होता था, जो पूरे 9 दिनों तक चलता था. नवमी के दिन लड़कियां चंदा-सूरज की मूर्ति बनाकर पूजा करती थी, जिसमें चबुतरे के पास गोबर से लिपाई-पुताई की जाती थी.

इस अवसर पर लड़कियां सुंदर- सुंदर गीत गाकर इस खेल खेलती थी. फिर पंचमी के दिन गौरा माता और महादेव की मिट्टी की मूर्तियां लाकर पूजा करती थीं. इसके बाद अष्टमी के दिन ये सारी लड़कियां सिर पर कलश लेकर निकलती थी. घर-घर जाकर गीत गाते हुए अनाज इकट्ठा करती थीं. इसके बाद उसी अनाज से नवमी के दिन पूजन कर भोग लगाकर 'हाप्पू' नाम से आयोजन करती थीं.

अच्छे वर की करती थी कामना

इस 'नोरता' खेल में एकरूपता, रचनात्मकता, धार्मिकता और कलात्मक का मेल रहता था, जिसमें लड़किया अपने लिए अच्छे वर की कामना भोलेनाथ और गौरा माता से करती थीं, लेकिन आज ये लोगों की आंखों से ओझल होता जा रहा है, जो एक चिंता का विषय भी है.

कैसे हुई 'नोरता' खेल की शुरूआत

साहित्यकारों के मुताबिक, संभवतः 1747 में मंडोगढ़ राज्य के राजा गजाधर हुआ करते थे, जो काफी धर्मिक प्रवृति के थे. जनता का भला करने वाले राजा के पास एक दिन गुरु महंत आए. इस मौके पर राजा ने उनसे कहा कि, 'गुरुदेव मुझे वो मंत्र बताएं, जिससे में मृत शरीर मे प्रवेश कर सकूं.' मगर महंत ने कहा कि, 'राजन ये मंत्र मैं नहीं दे सकता.' लेकिन राजा की जिद के आगे महंत को मंत्र देना पड़ा. जब मंत्र राजा को दिया गया, तो चोरी-पीछे उनका नाई सब कुछ सुन रहा था, लेकिन वो ये मंत्र पूरा नहीं सुन पाया.

एक दिन नाई राजा की अनुपस्थिति में महंत के पास पहुंचा और बोला कि, 'मुझे राजन ने भेजा है. आपने जो उनको मंत्र दिया था, वो मंत्र भूल गए है. आप बता दो, तो मैं उन तक पहुंचा दूंगा. इसके बाद महंत ने नाई को मंत्र बता दिया.'

नाई राजा के साथ शिकार पर गया. इस दौरान राजा ने सोचा कि, जो मंत्र महंत ने मुझे दिया है, उसका प्रयोग किया जाए. उन्होंने एक तोते को मार गिराया, जिसके बाद वो मृत तोते के शरीर में प्रवेश करने लगे. उन्होंने नाई से बोला कि, जब तक मैं लौटकर नहीं आ जाऊं, तब तक तुम मेरे शरीर की सुरक्षा करना. हालांकि नाई पहले से ही फिराक में था कि, वो राजा के देह में प्रवेश करेगा, राजा तोते के रूप में उड़ गए. इस दौरान नाई ने मौका न गंवाते हुए राजा की देह में प्रवेश कर लिया.

राज के शरीर में प्रवेश करने के बाद नाई ने राजमहल में आतंक मचाना शुरू कर दिया. राज्य के तमाम लोगों का वध करवाना प्रारंभ कर दिया. इसके अलावा जितने भी तोते-मिट्ठू थे, उन्हें भी मरवा दिया. राज्य में त्राहि-त्राहि होने के बाद रानी समझ गईं कि, वो उनके राजा गजाधर नहीं है. राज्य को संकट में देखते हुए लड़किया इस नकली राक्षस राजा की पूजा करने लगीं, तब जाकर वो शान्त हुआ. इसी के बाद से ही 'नोरता' की शुरुआत हुई.

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