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कोरोना में रोजगार नहीं, भूख से संघर्ष कर रहे ग्रामीण, अधिकारी बेपरवाह - villagers struggling with hunger

टीकमगढ़ के बड़ागांव धसान गांव में ग्रामीण बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. जब ग्रामीणों से पूछा गया कि उन्हें गांव में मजदूरी का काम नहीं मिल रहा है तो उन्होंने कहा कि गांव की बात तो छोड़िए पंचायत में भी काम नहीं मिला रहा है.

Working women
बीज छांट रहीं महिलाएं
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Published : Jul 22, 2020, 6:28 PM IST

Updated : Jul 22, 2020, 10:15 PM IST

टीकमगढ़। कोविड-19 के कारण आर्थिक गतिविधियों के ठप होने और प्रवासी मजदूरों के अपने-अपने घर लौटने के बाद उनके सामने बेरोजगारी का संकट खड़ा हो गया है. साथ ही सरकार के सामने भी ग्रामीण, मजदूरों को रोजगार मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. मनरेगा के तहत ग्रामीणों को मिलने वाला रोजगार दूर की कौड़ी साबित हो रहा है. ऐसे ही कुछ हालात टीकमगढ़ जिले के बड़ागांव धसान गांव के हैं. जहां ग्रामीण दो जून की रोटी के लिए परेशान हैं. ग्रामीणों के पास न तो राशन कार्ड है और न ही कोई अन्य सुविधा, जिससे वह अपना पेट भर सकें. आलम यह है कि ग्रामीण लकड़ी और बीज बीनकर उन्हें बाजार में बेचकर उससे मिलने वाले 10-20 रुपये से अपना एक दिन का गुजारा कर रहे हैं.

भूख से संघर्ष कर रहे ग्रामीण

टीकमगढ़ के बड़ागांव धसान गांव में ग्रामीण बड़े मुश्किल से अपना गुजारा कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. जब ग्रामीणों से पूछा गया कि उन्हें गांव में मजदूरी का काम नहीं मिल रहा है तो उन्होंने कहा कि गांव की बात तो छोड़िए पंचायत में भी काम नहीं मिला रहा है. ग्रामीण महिला का कहना है कि जंगल से लकड़ी बीनकर ही घर का गुजारा चल रहा है. ऐसे ही बड़ागांव धसान गांव की ग्रामीण महिला बेटी बाई आदिवासी ने बताया कि उनके पास इस वक्त खाने तक के लाले हैं. बच्चों की शादी तो दूर की बात है. उन्होंने कहा कि इन दिनों बस लकड़ी बेचकर ही अपने दिन काट रहे हैं. शादी की बात कर ही नहीं सकते हैं. उन्होंने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि गांव में मजदूरी के साधन तक खत्म हो गए हैं.

Working women
काम नहीं मिलने से परेशान महिलाएं

उन्होंने सरकार से गुजारिश करते हुए कहा कि सरकार इस गांव की ओर भी ध्यान दें. क्योंकि गांव में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं. ना ही गांव में बिजली आती है स्वच्छ पानी के लिए भी मीलों दूर का सफर तय करना पड़ता है. तब कहीं जाकर गले की प्याज बुझ पाती है. बेटी बाई ने सरकार से मांग की है कि सरकार गांव में लोगों के खाने का इंतजाम कर दे. इसके साथ ही बच्चों की शादी के लिए कोई योजना निकालकर उनकी शादी कराएं.

अनगड़ा के टीकमगढ़ काशीराम आदिवासी ने जमीनी सच्चाई बयां करते हुए कहा कि करीब 300 परिवार के सामने भूख का संकट है. सरकार ने भी ग्रामीणों की परेशानी से मुंह मोड़ लिया है. आदिवासी ग्रामीण बीज, लकड़ी बेचकर अपना पेट भर रहे हैं. हालांकि जिला पंचायत के अतिरिक्त सीईओ चंद्रसेन सिंह आदिवासी ग्रामीणों की परेशानियों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. अतिरिक्त सीईओ चंद्रसेन सिंह का मानना है कि सभी ग्राम पंचायत में 4 से 5 प्रकार के काम प्रशासन द्वारा ग्रामीणों को दिया जा रहा है वहां मजदूर काम भी कर रहे हैं.

सरकार में बैठे हुक्मराह तो सारे दावे अपनी ओर करते हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि ये वादे हकीकत जैसी लगें. जब अतिरिक्त सीईओ के सामने बात रखी गई तो उन्होंने दावा करते हुए कहा कि पहले मामले की जांच कराएंगे उसके बाद कमी दिखाई दी तो आदिवासियों को रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा.

टीकमगढ़। कोविड-19 के कारण आर्थिक गतिविधियों के ठप होने और प्रवासी मजदूरों के अपने-अपने घर लौटने के बाद उनके सामने बेरोजगारी का संकट खड़ा हो गया है. साथ ही सरकार के सामने भी ग्रामीण, मजदूरों को रोजगार मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. मनरेगा के तहत ग्रामीणों को मिलने वाला रोजगार दूर की कौड़ी साबित हो रहा है. ऐसे ही कुछ हालात टीकमगढ़ जिले के बड़ागांव धसान गांव के हैं. जहां ग्रामीण दो जून की रोटी के लिए परेशान हैं. ग्रामीणों के पास न तो राशन कार्ड है और न ही कोई अन्य सुविधा, जिससे वह अपना पेट भर सकें. आलम यह है कि ग्रामीण लकड़ी और बीज बीनकर उन्हें बाजार में बेचकर उससे मिलने वाले 10-20 रुपये से अपना एक दिन का गुजारा कर रहे हैं.

भूख से संघर्ष कर रहे ग्रामीण

टीकमगढ़ के बड़ागांव धसान गांव में ग्रामीण बड़े मुश्किल से अपना गुजारा कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. जब ग्रामीणों से पूछा गया कि उन्हें गांव में मजदूरी का काम नहीं मिल रहा है तो उन्होंने कहा कि गांव की बात तो छोड़िए पंचायत में भी काम नहीं मिला रहा है. ग्रामीण महिला का कहना है कि जंगल से लकड़ी बीनकर ही घर का गुजारा चल रहा है. ऐसे ही बड़ागांव धसान गांव की ग्रामीण महिला बेटी बाई आदिवासी ने बताया कि उनके पास इस वक्त खाने तक के लाले हैं. बच्चों की शादी तो दूर की बात है. उन्होंने कहा कि इन दिनों बस लकड़ी बेचकर ही अपने दिन काट रहे हैं. शादी की बात कर ही नहीं सकते हैं. उन्होंने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि गांव में मजदूरी के साधन तक खत्म हो गए हैं.

Working women
काम नहीं मिलने से परेशान महिलाएं

उन्होंने सरकार से गुजारिश करते हुए कहा कि सरकार इस गांव की ओर भी ध्यान दें. क्योंकि गांव में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं. ना ही गांव में बिजली आती है स्वच्छ पानी के लिए भी मीलों दूर का सफर तय करना पड़ता है. तब कहीं जाकर गले की प्याज बुझ पाती है. बेटी बाई ने सरकार से मांग की है कि सरकार गांव में लोगों के खाने का इंतजाम कर दे. इसके साथ ही बच्चों की शादी के लिए कोई योजना निकालकर उनकी शादी कराएं.

अनगड़ा के टीकमगढ़ काशीराम आदिवासी ने जमीनी सच्चाई बयां करते हुए कहा कि करीब 300 परिवार के सामने भूख का संकट है. सरकार ने भी ग्रामीणों की परेशानी से मुंह मोड़ लिया है. आदिवासी ग्रामीण बीज, लकड़ी बेचकर अपना पेट भर रहे हैं. हालांकि जिला पंचायत के अतिरिक्त सीईओ चंद्रसेन सिंह आदिवासी ग्रामीणों की परेशानियों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. अतिरिक्त सीईओ चंद्रसेन सिंह का मानना है कि सभी ग्राम पंचायत में 4 से 5 प्रकार के काम प्रशासन द्वारा ग्रामीणों को दिया जा रहा है वहां मजदूर काम भी कर रहे हैं.

सरकार में बैठे हुक्मराह तो सारे दावे अपनी ओर करते हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि ये वादे हकीकत जैसी लगें. जब अतिरिक्त सीईओ के सामने बात रखी गई तो उन्होंने दावा करते हुए कहा कि पहले मामले की जांच कराएंगे उसके बाद कमी दिखाई दी तो आदिवासियों को रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा.

Last Updated : Jul 22, 2020, 10:15 PM IST
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