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विश्व का अनोखा पंचमुखी शिवलिंग मंदिर, कहा जाता है बुंदेलखंड का कैलाश - टीकमगढ़ पंचमुखी शिवलिंग न्यूज

टीकमगढ़ में एक ऐसा अनोखा शिव मंदिर है, जो कि बुंदेलखंड के कैलाश रूप के नाम से जाना जाता है. यहां भगवान शिव की पंचमुखी शिवलिंग मौजूद है. पढ़ें पूरी खबर...

panchmukhi shivling
पंचमुखी शिवलिंग
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Published : Jul 28, 2020, 3:50 PM IST

टीकमगढ़। देशभर में भोलेनाथ के अनेक चमत्कारिक मंदिर हैं, जहां महादेव के भक्तों का सालभर तांता लगा रहता है. इन शिवालयों के प्रति भक्तों की गहरी आस्था है. भोलेनाथ का एक ऐसा ही अनोखा चमत्कारिक मंदिर टीकमगढ़ में भी मौजूद है, जहां पंचमुखी शिवलिंग विराजित हैं. स्थानीय और मंदिर के पुजारी बताते हैं कि ये शिवलिंग हर साल चावल के दाने जितनी बढ़ती है और चौड़ी भी होती हैं. इस मंदिर को बुंदेलखंड के कैलाश रूप के नाम से जाना जाता है, जिसके प्रति देश के लाखों लोगों का गहरी आस्था का जुड़ी हुई है.

पंचमुखी शिवलिंग मंदिर

राजा बाणासुर की पुत्री ने जताई थी इच्छा

जिला मुख्यालय से करीब 6 किलोमीटर दूर ललितपुर रोड पर कुंडेश्वर में विराजमान है महादेव का अनोखा शिवालय. इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि बानपुर के राजा बाणासुर की पुत्री बानपुर से सुरंग के जरिए भगवान भोलेनाथ के दर्शन और पूजा-अर्चना करने आती थी. एक दिन भगवान से ऊषा ने कहा कि प्रभु जैसे आप मुझे दर्शन देते हैं वैसे ही मेरी इच्छा है कि आप विश्व का कल्याण करने जमीन पर प्रकट हों. माना जाता है कि इसके बाद 1937 को कुंडेश्वर मंदिर के पास एक पहाड़ी पर भोलेनाथ प्रकट हुए थे.

panchmukhi shivling
पंचमुखी शिवलिंग

स्वयं प्रकट हुई भगवान की शिवलिंग

इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि कुंडेश्वर मंदिर के पास बहुत बड़ा पहाड़ था, जिसमें एक छोटी सी बस्ती हुआ करती थी. इस बस्ती में घुमक्कड़ जाति के लोग रहते थे. एक दिन एक बुजुर्ग महिला ओखली में धान कूट रही थी. तब ही अचनाक ओखिली से खून निकलने लगा. ये देख महिला घबरा गई और अपनी बस्ती के लोगों को बुलाने लगी. भयभीत होकर महिला ने उस ओखली पर एक मिट्टी का कुंड ढांक दिया. जब बस्ती के काफी लोग आए और उन्होंने उस कुंड को उठाकर देखा तो उसमे छोटे से शिवलिंग प्रकट हुए. जिसके बाद उस जगह पर एक छोटा सा मंदिर बनवाया गया.

panchmukhi shivling
कुंड में कभी खाली नहीं होता पानी

राजा को नहीं हुआ विश्वास

स्थानीय बताते हैं कि छोटा सा मंदिर बनने के बाद लोग यहां पूजा-अर्चना करने लगे थे, लेकिन उस समय यहां के राजा महाराजा द्वितीय वीर सिंह देव थे और उनके गृह मंत्री अश्विनी पांडे थे जिन्होंने महाराज से कहा कि महाराज यह कोई भगवान नहीं यह महज एक पत्थर है. इस पत्थर के नीचे काफी धन है. इसकी खुदाई करवाएं, जिसके बाद महाराज ने शिवलिंग की सच्चाई जानने के लिए जमीन में खुदाई करवाई और 40 फिट तक जमीन में खुदाई के बावजूद कहीं कुछ नहीं मिला और शिवलिंग काफी गहरी जमीन में चली गई.

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कुंडेश्वर मंदिर

रात में महाराज वीर सिंह देव को एक सपना आया कि यह खुदाई बंद करवा दो नही तो राज-पाट नष्ट हो जाएगा. बताया जाता है कि यह स्वप्न रात में नागराज ने दिया था और महाराजा को पलंग से उठा फेक दिया था, जिससे महाराज जिस रानी महल में सो रहे थे उससे काफी दूर जा गिरे थे. इसके बाद महाराद ने सुबह ही शिवलिंग की खुदाई बन करवाई और वहां मंदिर बनवाया.

कुंड में कभी खाली नहीं होता पानी


कहा जाता है कि ये मंदिर 14वीं शताब्दी है. यहां पर महाशिवरात्रि और मकरसंक्रांति के मौके पर विशाल मेलों का भी आयोजन किया जाता. इस मंदिर के नीचे एक कुंड भी बना हुआ है. कहा जाता है कि इस कुंड का पानी कभी भी खाली नहीं होता. चाहे कितना भी सूखा क्यों न पड़े इस कुंड के अंदर हमेशा ही ऊषा भगवान की पूजा करने सुरंग से आती थी और उनके आने पर पानी अपने आप उनको जगह दे देता था. जिसके बाद ऊषा कुंड के अंदर बने मंदिर में शिवलिंग की पूजा करने लगी.

बुंदेलखंड का कैलाश रूप है ये मंदिर

इस मंदिर को बुंदेलखंड का कैलाश रूप माना जाना है. यहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं. यह शिवलिंग काफी अद्भुत और चमत्कारिक है. कहा जाता है कि इस शिवलिंग के दर्शन करने जो भी आता है भगवान उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं. यह अनोखा शिवालय बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश के लाखों-करोड़ों लोगो की आस्था का केंद्र है.

टीकमगढ़। देशभर में भोलेनाथ के अनेक चमत्कारिक मंदिर हैं, जहां महादेव के भक्तों का सालभर तांता लगा रहता है. इन शिवालयों के प्रति भक्तों की गहरी आस्था है. भोलेनाथ का एक ऐसा ही अनोखा चमत्कारिक मंदिर टीकमगढ़ में भी मौजूद है, जहां पंचमुखी शिवलिंग विराजित हैं. स्थानीय और मंदिर के पुजारी बताते हैं कि ये शिवलिंग हर साल चावल के दाने जितनी बढ़ती है और चौड़ी भी होती हैं. इस मंदिर को बुंदेलखंड के कैलाश रूप के नाम से जाना जाता है, जिसके प्रति देश के लाखों लोगों का गहरी आस्था का जुड़ी हुई है.

पंचमुखी शिवलिंग मंदिर

राजा बाणासुर की पुत्री ने जताई थी इच्छा

जिला मुख्यालय से करीब 6 किलोमीटर दूर ललितपुर रोड पर कुंडेश्वर में विराजमान है महादेव का अनोखा शिवालय. इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि बानपुर के राजा बाणासुर की पुत्री बानपुर से सुरंग के जरिए भगवान भोलेनाथ के दर्शन और पूजा-अर्चना करने आती थी. एक दिन भगवान से ऊषा ने कहा कि प्रभु जैसे आप मुझे दर्शन देते हैं वैसे ही मेरी इच्छा है कि आप विश्व का कल्याण करने जमीन पर प्रकट हों. माना जाता है कि इसके बाद 1937 को कुंडेश्वर मंदिर के पास एक पहाड़ी पर भोलेनाथ प्रकट हुए थे.

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पंचमुखी शिवलिंग

स्वयं प्रकट हुई भगवान की शिवलिंग

इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि कुंडेश्वर मंदिर के पास बहुत बड़ा पहाड़ था, जिसमें एक छोटी सी बस्ती हुआ करती थी. इस बस्ती में घुमक्कड़ जाति के लोग रहते थे. एक दिन एक बुजुर्ग महिला ओखली में धान कूट रही थी. तब ही अचनाक ओखिली से खून निकलने लगा. ये देख महिला घबरा गई और अपनी बस्ती के लोगों को बुलाने लगी. भयभीत होकर महिला ने उस ओखली पर एक मिट्टी का कुंड ढांक दिया. जब बस्ती के काफी लोग आए और उन्होंने उस कुंड को उठाकर देखा तो उसमे छोटे से शिवलिंग प्रकट हुए. जिसके बाद उस जगह पर एक छोटा सा मंदिर बनवाया गया.

panchmukhi shivling
कुंड में कभी खाली नहीं होता पानी

राजा को नहीं हुआ विश्वास

स्थानीय बताते हैं कि छोटा सा मंदिर बनने के बाद लोग यहां पूजा-अर्चना करने लगे थे, लेकिन उस समय यहां के राजा महाराजा द्वितीय वीर सिंह देव थे और उनके गृह मंत्री अश्विनी पांडे थे जिन्होंने महाराज से कहा कि महाराज यह कोई भगवान नहीं यह महज एक पत्थर है. इस पत्थर के नीचे काफी धन है. इसकी खुदाई करवाएं, जिसके बाद महाराज ने शिवलिंग की सच्चाई जानने के लिए जमीन में खुदाई करवाई और 40 फिट तक जमीन में खुदाई के बावजूद कहीं कुछ नहीं मिला और शिवलिंग काफी गहरी जमीन में चली गई.

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कुंडेश्वर मंदिर

रात में महाराज वीर सिंह देव को एक सपना आया कि यह खुदाई बंद करवा दो नही तो राज-पाट नष्ट हो जाएगा. बताया जाता है कि यह स्वप्न रात में नागराज ने दिया था और महाराजा को पलंग से उठा फेक दिया था, जिससे महाराज जिस रानी महल में सो रहे थे उससे काफी दूर जा गिरे थे. इसके बाद महाराद ने सुबह ही शिवलिंग की खुदाई बन करवाई और वहां मंदिर बनवाया.

कुंड में कभी खाली नहीं होता पानी


कहा जाता है कि ये मंदिर 14वीं शताब्दी है. यहां पर महाशिवरात्रि और मकरसंक्रांति के मौके पर विशाल मेलों का भी आयोजन किया जाता. इस मंदिर के नीचे एक कुंड भी बना हुआ है. कहा जाता है कि इस कुंड का पानी कभी भी खाली नहीं होता. चाहे कितना भी सूखा क्यों न पड़े इस कुंड के अंदर हमेशा ही ऊषा भगवान की पूजा करने सुरंग से आती थी और उनके आने पर पानी अपने आप उनको जगह दे देता था. जिसके बाद ऊषा कुंड के अंदर बने मंदिर में शिवलिंग की पूजा करने लगी.

बुंदेलखंड का कैलाश रूप है ये मंदिर

इस मंदिर को बुंदेलखंड का कैलाश रूप माना जाना है. यहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं. यह शिवलिंग काफी अद्भुत और चमत्कारिक है. कहा जाता है कि इस शिवलिंग के दर्शन करने जो भी आता है भगवान उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं. यह अनोखा शिवालय बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश के लाखों-करोड़ों लोगो की आस्था का केंद्र है.

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