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टीकमगढ़ः चंदेलकालीन समय का ऐतिहासिक सूर्य मंदिर विलुप्त होने की कगार पर - सूर्य मंदिर

टीकमगढ़ का सूर्य मंदिर अब विलुप्ती की कगार पर है. मध्यप्रदेश की धरती पर मंदिर की मौजूदगी कई पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है, लेकिन मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग के नक्शे से मध्यकालीन वास्तुकला का ये अद्भुत नमूना शायद गायब हो चुका है. प्रशासन की अनदेखी से ये ऐतिहासिक इमारत बदहाल हो चुकी है.

सूर्य मंदिर मड़खेरा, टीकमगढ़
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Published : Mar 21, 2019, 2:19 AM IST

टीकमगढ़। पत्थरों पर नक्काशी कर बनाई गई खूबसूरत दीवारें, शिखर पर फहराती लाल पताका और मंदिर में मौजूद सूर्यदेव की मूर्ति. मानव निर्मित इस सौंदर्य को देखकर आपकी निगाहें थम गई होंगी और आपके मन में ख्याल आया होगा कि ये कहीं कोणार्क के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर का दृश्य तो नहीं.

अगर हम कहें कि ये खूबसूरत मंदिर कोणार्क का सूर्य मंदिर नहीं बल्कि आपके मध्यप्रदेश का ही है तब आप क्या कहेंगे. जी हां, हैरान होना छोड़ दीजिए, ये सूर्य मंदिर कोर्णाक में नहीं आप ही के प्रदेश में है, मध्यप्रदेश की धरती पर तो इसकी मौजूदगी कई पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है, लेकिन मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग के नक्शे से मध्यकालीन वास्तुकला का ये अद्भुत नमूना शायद गायब हो चुका है.

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बताया जाता है कि विशाल चबूतरे पर बने इस पूर्वमुखी मंदिर का निर्माण 875 ईस्वी में चंदेलकालीन राजाओं ने कराया था. पत्थरों पर बेहद कलात्मक तरीके से नक्काशी कर बनाये गये इस मंदिर को देखने के लिए आपको टीकमगढ़ जिले के मड़खेरा गांव तक जाना होगा. जब आप मड़खेरा गांव पहुंचेंगे तो आपको इस बात का अंदाजा खुद-ब-खुद हो जाएगा कि जिला प्रशासन ने इस ऐतिहासिक धरोहर पर कितनी नजर-ए-इनायत की है. जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर स्थित इस ऐतिहासिक गांव में मौजूद कच्चे-पक्के मकान, टूटी सड़कें और यहां पसरी सन्नाटे की हद पार कर देने वाली शांति ये बयां कर देती है कि पर्यटन के इस खास केंद्र को विकसित करने के लिए प्रशासन कितना गंभीर है.

कलेक्टर साहब की मानें तो इस मंदिर को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने चिन्हित किया है और जिला प्रशासन इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के बारे में सोच रहा है. इसके बाद भी इस मंदिर का जो हाल है वो नौकरशाही के तौर-तरीकों की हकीकत सामने लाने के लिए काफी है.


प्रशासन की अनदेखी से ये ऐतिहासिक इमारत बदहाल हो चुकी है. इसकी दीवारें चटकने लगी हैं. मंदिर के अंदर का फर्श टूट चुका है, यहां लगी मूर्तियां लगातार अपनी चमक खोती जा रही हैं. ऐसे में भरोसा नहीं है कि टूटे चबूतरे पर टिका ये मंदिर बिना मरम्मत के कितने दिनों तक भारतीय स्थापत्य की इस अनमोल धरोहर को संजोकर रख पाएगा.

टीकमगढ़। पत्थरों पर नक्काशी कर बनाई गई खूबसूरत दीवारें, शिखर पर फहराती लाल पताका और मंदिर में मौजूद सूर्यदेव की मूर्ति. मानव निर्मित इस सौंदर्य को देखकर आपकी निगाहें थम गई होंगी और आपके मन में ख्याल आया होगा कि ये कहीं कोणार्क के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर का दृश्य तो नहीं.

अगर हम कहें कि ये खूबसूरत मंदिर कोणार्क का सूर्य मंदिर नहीं बल्कि आपके मध्यप्रदेश का ही है तब आप क्या कहेंगे. जी हां, हैरान होना छोड़ दीजिए, ये सूर्य मंदिर कोर्णाक में नहीं आप ही के प्रदेश में है, मध्यप्रदेश की धरती पर तो इसकी मौजूदगी कई पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है, लेकिन मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग के नक्शे से मध्यकालीन वास्तुकला का ये अद्भुत नमूना शायद गायब हो चुका है.

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बताया जाता है कि विशाल चबूतरे पर बने इस पूर्वमुखी मंदिर का निर्माण 875 ईस्वी में चंदेलकालीन राजाओं ने कराया था. पत्थरों पर बेहद कलात्मक तरीके से नक्काशी कर बनाये गये इस मंदिर को देखने के लिए आपको टीकमगढ़ जिले के मड़खेरा गांव तक जाना होगा. जब आप मड़खेरा गांव पहुंचेंगे तो आपको इस बात का अंदाजा खुद-ब-खुद हो जाएगा कि जिला प्रशासन ने इस ऐतिहासिक धरोहर पर कितनी नजर-ए-इनायत की है. जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर स्थित इस ऐतिहासिक गांव में मौजूद कच्चे-पक्के मकान, टूटी सड़कें और यहां पसरी सन्नाटे की हद पार कर देने वाली शांति ये बयां कर देती है कि पर्यटन के इस खास केंद्र को विकसित करने के लिए प्रशासन कितना गंभीर है.

कलेक्टर साहब की मानें तो इस मंदिर को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने चिन्हित किया है और जिला प्रशासन इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के बारे में सोच रहा है. इसके बाद भी इस मंदिर का जो हाल है वो नौकरशाही के तौर-तरीकों की हकीकत सामने लाने के लिए काफी है.


प्रशासन की अनदेखी से ये ऐतिहासिक इमारत बदहाल हो चुकी है. इसकी दीवारें चटकने लगी हैं. मंदिर के अंदर का फर्श टूट चुका है, यहां लगी मूर्तियां लगातार अपनी चमक खोती जा रही हैं. ऐसे में भरोसा नहीं है कि टूटे चबूतरे पर टिका ये मंदिर बिना मरम्मत के कितने दिनों तक भारतीय स्थापत्य की इस अनमोल धरोहर को संजोकर रख पाएगा.

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समरी- टीकमगढ़ का सूर्य मंदिर अब विलुप्ती की कगार पर है. मध्यप्रदेश की धरती पर मंदिर की मौजूदगी कई पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है, लेकिन मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग के नक्शे से मध्यकालीन वास्तुकला का ये अद्भुत नमूना शायद गायब हो चुका है. प्रशासन की अनदेखी से ये ऐतिहासिक इमारत बदहाल हो चुकी है.



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चंदेलकालीन समय का ऐतिहासिक सूर्य मंदिर विलुप्त होने की कगार पर



टीकमगढ़। पत्थरों पर नक्काशी कर बनाई गई खूबसूरत दीवारें, शिखर पर फहराती लाल पताका और मंदिर में मौजूद सूर्यदेव की मूर्ति (मूर्ति को छोड़कर बाकी सारे शॉट्स क्लोज, मूर्ति का क्लोज शॉट न लें). मानव निर्मित इस सौंदर्य को देखकर आपकी निगाहें थम गई होंगी और आपके मन में ख्याल आया होगा कि ये कहीं कोणार्क के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर का दृश्य तो नहीं.



अगर हम कहें कि ये खूबसूरत मंदिर कोणार्क का सूर्य मंदिर नहीं बल्कि आपके मध्यप्रदेश का ही है तब आप क्या कहेंगे. जी हां, हैरान होना छोड़ दीजिए, ये सूर्य मंदिर कोर्णाक में नहीं आप ही के प्रदेश में है, मध्यप्रदेश की धरती पर तो इसकी मौजूदगी कई पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है, लेकिन मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग के नक्शे से मध्यकालीन वास्तुकला का ये अद्भुत नमूना शायद गायब हो चुका है.

बाइट- पर्यटक

बाइट- जानकार

बताया जाता है कि विशाल चबूतरे पर बने इस पूर्वमुखी मंदिर का निर्माण 875 ईस्वी में चंदेलकालीन राजाओं ने कराया था. पत्थरों पर बेहद कलात्मक तरीके से नक्काशी कर बनाये गये इस मंदिर को देखने के लिए आपको टीकमगढ़ जिले के मड़खेरा गांव तक जाना होगा. जब आप मड़खेरा गांव पहुंचेंगे तो आपको इस बात का अंदाजा खुद-ब-खुद हो जाएगा कि जिला प्रशासन ने इस ऐतिहासिक धरोहर पर कितनी नजर-ए-इनायत की है. जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर स्थित इस ऐतिहासिक गांव में मौजूद कच्चे-पक्के मकान, टूटी सड़कें और यहां पसरी सन्नाटे की हद पार कर देने वाली शांति ये बयां कर देती है कि पर्यटन के इस खास केंद्र को विकसित करने के लिए प्रशासन कितना गंभीर है.

बाइट- कलेक्टर

कलेक्टर साहब की मानें तो इस मंदिर को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने चिन्हित किया है और जिला प्रशासन इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के बारे में सोच रहा है. इसके बाद भी इस मंदिर का जो हाल है वो नौकरशाही के तौर-तरीकों की हकीकत सामने लाने के लिए काफी है.

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प्रशासन की अनदेखी से ये ऐतिहासिक इमारत बदहाल हो चुकी है. इसकी दीवारें चटकने लगी हैं. मंदिर के अंदर का फर्श टूट चुका है, यहां लगी मूर्तियां लगातार अपनी चमक खोती जा रही हैं. ऐसे में भरोसा नहीं है कि टूटे चबूतरे पर टिका ये मंदिर बिना मरम्मत के कितने दिनों तक भारतीय स्थापत्य की इस अनमोल धरोहर को संजोकर रख पाएगा.


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