ओरछा। ओरछा नगरी को कल यानी पांच अगस्त को दुल्हन की तरह सजाया जाएगा. उत्तर प्रदेश की अयोध्या नगरी जहां भगवान राम के भव्य मंदिर निर्माण की शिला रखे जाने के साथ नए युग की शुरुआत करने को आतुर है तो वहीं बुंदेलखंड की अयोध्या यानी ओरछा में भी खासी हल-चल दिखाई दे रही है. मान्यता है कि यहां राम भगवान के तौर पर नहीं बल्कि राजा के तौर पर विराजे हैं और यहां से ही वो अपनी सत्ता चलाते हैं. यही वजह है कि अयोध्या में राम मंदिर भूमिपूजन को लेकर ओरछा को भी अयोध्या की तर्ज पर सजाया जा रहा है. राम मंदिर भूमिपूजन के बाद यहां पुजारी विशेष पूजा-पाठ करेंगे.
राजा के रूप में विराजे हैं राम
मान्यता है कि भगवान श्रीराम की सरकार के दो खास निवास अयोध्या और ओरछा हैं. ओरछा में भगवान, राजा के रूप में विराजित हैं, ये एक ऐसा मंदिर है, जहां भक्त और भगवान के बीच राजा और प्रजा का संबंध है. साथ ही यह विश्व का पहला ऐसा मंदिर है, जहां राजा के रूप में रामराजा सरकार को चारों पहर सशस्त्र सलामी दी जाती है.
घर-घर घी के दीपक जलेंगे
यही वजह है कि कोरोना जैसी महामारी के बावजूद भी कल यानी 5 अगस्त को ओरछा में दीपावली जैसा उत्साह लोगों में दिखेगा और घर-घर घी के दीपक जलाकर उत्साह मनाया जायेगा. स्थानीय लोगों का कहना है कि हमारे अराध्य और हमारे राजा के जन्म स्थान पर बनाये जा रहे मंदिर को लेकर पूरे ओरछा में खुशी का महौल है और लोग उत्साहित हैं.
ओरछा का अयोध्या से लगभग छह सौ साल पुराना नाता
बुंदेलखंड की अयोध्या ओरछा वो नगरी है, जिसका अयोध्या से लगभग छह सौ साल पुराना नाता है. यहां राम भगवान नहीं बल्कि राजा के तौर पर विराजे हैं, यही कारण है कि चार बार होने वाली आरती के समय उन्हें पुलिस जवानों द्वारा सलामी दी जाती है.
सरकार की गाइडलाइन का पालन कर होगा कार्यक्रम
कहा तो यहां तक जाता है कि भक्त राम की प्रतिमा की आंख से आंख नहीं मिलाते बल्कि उनके चरणों के ही दर्शन करते हैं. कल अयोध्या में होने वाले समारोह को लेकर प्रशासन ने तैयारी पूरी कर ली है. कोरोना काल में सरकार की गाइडलाइन का पालन करते हुए लोग अपने-अपने घरों में दीपक जलाएंगे और कार्यक्रम होगा.
यहां सिर्फ राजाराम ही वीवीआईपी
ओरछा बुन्देलखण्ड की अयोध्या के नाम से भी मशहूर है. मान्यता है ओरछा की महारानी कुंवर गणेश भगवान राम को अयोध्या से पैदल ओरछा लाई थीं. ओरछा में भगवान राम दिन में रहते हैं और रात होते ही अयोध्या चले जाते हैं. सुबह फिर वापस ओरछा आ जाते हैं. इसीलिए ओरछा में दिन में काफी मोहक और सुंदर लगता है, लेकिन रात में काफी बुरा और वीरान, ऐसा मानो कि ओरछा नगरी उजड़ गई हो. माना जाता है कि ओरछा में कोई भी वीआईपी नहीं होता, यहां के राजा ही सिर्फ यहां पर वीआईपी माने जाते हैं.
कैसे ओरछा आए थे राजाराम
कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में ओरछा के तत्कालीन बुंदेला राजा मधुकर शाह कृष्ण के उपासक थे और उनकी रानी गणेश कुंवर भगवान राम को मानती थी. दोनों के बीच ठन गई तो रानी गणेश कुंवर ने प्रतिज्ञा कि वह रामलला को ओरछा लाकर ही मानेंगी. वे अयोध्या गईं और 21 दिन तक तप उपासना की. ऐसी किवदंती है कि निराश होकर वे सरयू नदी में कूद गईं और उन्हें रामलला की प्रतिमा वहीं बाल रूप में गहरे पानी में मिली. राजा राम अयोध्या से रानी के साथ 3 शर्तों पर ओरछा आये थे जिसमें उनकी पहली शर्त थी कि पुश्य नक्षत्र में पैदल चलकर ही जाऊंगा. दूसरी शर्त थी कि ओरछा तभी जाऊंगा जब वहां का राजा कहलाऊंगा और तुम्हें राजधानी बदलनी पड़ेगी. तीसरी शर्त थी कि जहां एक बार बैठ जाऊंगा फिर वहां से नहीं उठूंगा. इसके बाद वे पैदल साधु संतों के साथ वे ओरछा पहुंची और रसोईं में चैत्र रामनवमी के दिन विराजमान कर दिया. अब उसी जगह पर रामराजा सरकार का भव्य मंदिर है.
राजाराम को चार बार दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर
कहते हैं कि संवत 1631 में चैत्र शुक्ल नवमी को जब भगवान राम ओरछा आए तो उन्होंने संत समाज को यह आश्वासन भी दिया था कि उनकी राजधानी दोनों नगरों में रहेगी. तब यह बुन्देलखण्ड की 'अयोध्या' बन गया. साढ़े चार सौ साल से राजा के रुप में विराजे भगवान राम को चार बार की आरती में सशस्त्र सलामी गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है. ओरछा नगर के परिसर में यह गार्ड ऑफ ऑनर रामराजा के अलावा देश के किसी भी वीवीआईपी को नहीं दिया जाता..