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सड़क पर दौड़ने लगीं बसें लेकिन मुसाफिर की राह ताक रहीं खाली सीटें, ऑपरेटर्स परेशान - बस संचालकों को नुकसान

टीकमगढ़ जिले में 6 माह बाद सड़कों पर बसें चलना तो शुरु हो गईं लेकिन बसों को सवारियां नहीं मिल रही हैं, जिसकी वजह से बस संचालकों को नुकसान हो रहा है.

Tikamgarh
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Published : Sep 8, 2020, 10:42 PM IST

टीकमगढ़। जिले में भले ही 6 माह बाद सड़कों पर बसें दौड़ने लगी हों, लेकिन बस संचालकों को कोई फायदा नहीं हुआ और जिले की सारी बसें घाटे में चल रही है, क्योंकि अभी बसों में मुसाफिर सफर करने से डर रहे हैं और लोगों को डर सता रहा है कि कहीं बसों में सफर करने से वे कोरोना से संक्रमित न हो जाएं. इसी के चलते बसें खाली चल रही हैं, जिस बस में 60 से 70 यात्री सफर करते थे, उसमें आज 5 से 10 मुसाफिर दिख रहे हैं.

अभी भी काफी लोगों को पता नहीं चला है कि बसें चल रही हैं. लगातार कोरोना संक्रमण के चलते मार्च माह से सारी बसों को बंद कर दिया गया था और फिर लगातार बसें बंद रहीं, जब सरकार ने बस सुविधा बहाल करने के लिए कहा तो बस ऑनर्स बीते पांच माह का अपना टैक्स माफ कराने की बात पर अड़े रहे. अनलॉक के बाद भी बस सेवा शुरू नहीं हो सकी. बस मालिक और प्रदेश सरकार के बीच टैक्स को लेकर तनातनी चलती रही लेकिन, उपचुनाव को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने बस संचालकों की सुनी और पांच माह का टैक्स माफ कर दिया.

सरकार के टैक्स माफ करने के बाद बस सुविधा शुरू की गई लेकिन, यात्री फिलहाल बसों में यात्रा करने से कतरा रहा है. यात्रियों की कमी होने पर जिस रुट पर 20 बसें चला करती थीं, अब उनकी संख्या सिमटकर महज पांच या छह हो गई. इन हालातों को देखकर बस संचालकों का मन बदल गया है और अब वे घाटे के चलते 350 बसों में से मात्र जिले में 100 बसें ही अलग-अलग रूट पर चला रहे हैं.

जिले के बस ऑपरेटर्स का कहना है कि बसों का रोजगार पटरी पर नहीं लौटा है और उसमें फिलहाल समय लगेगा. वहीं इस व्यवसाय से जुड़े लोगों ने काम नहीं होने के चलते अपने रोजगार बदल लिए थे, कोई मास्क बेचकर अपनी दो वक्त की रोट की जुगत लगा रहा था तो कोई अपने गांव लौट गया था. इन कर्मचारियों को भी फिलहाल उनका पुराना काम पटरी पर वापस आता नजर नहीं आ रह है और सभी अपने रोजगार में लगे हैं. ऐसे एक बात साफ हो चुकी है कि जब तक यात्री बसों से यात्रा करना शुरू नहीं करेंगे तब तक हालात ऐसे ही रहेंगे.

टीकमगढ़। जिले में भले ही 6 माह बाद सड़कों पर बसें दौड़ने लगी हों, लेकिन बस संचालकों को कोई फायदा नहीं हुआ और जिले की सारी बसें घाटे में चल रही है, क्योंकि अभी बसों में मुसाफिर सफर करने से डर रहे हैं और लोगों को डर सता रहा है कि कहीं बसों में सफर करने से वे कोरोना से संक्रमित न हो जाएं. इसी के चलते बसें खाली चल रही हैं, जिस बस में 60 से 70 यात्री सफर करते थे, उसमें आज 5 से 10 मुसाफिर दिख रहे हैं.

अभी भी काफी लोगों को पता नहीं चला है कि बसें चल रही हैं. लगातार कोरोना संक्रमण के चलते मार्च माह से सारी बसों को बंद कर दिया गया था और फिर लगातार बसें बंद रहीं, जब सरकार ने बस सुविधा बहाल करने के लिए कहा तो बस ऑनर्स बीते पांच माह का अपना टैक्स माफ कराने की बात पर अड़े रहे. अनलॉक के बाद भी बस सेवा शुरू नहीं हो सकी. बस मालिक और प्रदेश सरकार के बीच टैक्स को लेकर तनातनी चलती रही लेकिन, उपचुनाव को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने बस संचालकों की सुनी और पांच माह का टैक्स माफ कर दिया.

सरकार के टैक्स माफ करने के बाद बस सुविधा शुरू की गई लेकिन, यात्री फिलहाल बसों में यात्रा करने से कतरा रहा है. यात्रियों की कमी होने पर जिस रुट पर 20 बसें चला करती थीं, अब उनकी संख्या सिमटकर महज पांच या छह हो गई. इन हालातों को देखकर बस संचालकों का मन बदल गया है और अब वे घाटे के चलते 350 बसों में से मात्र जिले में 100 बसें ही अलग-अलग रूट पर चला रहे हैं.

जिले के बस ऑपरेटर्स का कहना है कि बसों का रोजगार पटरी पर नहीं लौटा है और उसमें फिलहाल समय लगेगा. वहीं इस व्यवसाय से जुड़े लोगों ने काम नहीं होने के चलते अपने रोजगार बदल लिए थे, कोई मास्क बेचकर अपनी दो वक्त की रोट की जुगत लगा रहा था तो कोई अपने गांव लौट गया था. इन कर्मचारियों को भी फिलहाल उनका पुराना काम पटरी पर वापस आता नजर नहीं आ रह है और सभी अपने रोजगार में लगे हैं. ऐसे एक बात साफ हो चुकी है कि जब तक यात्री बसों से यात्रा करना शुरू नहीं करेंगे तब तक हालात ऐसे ही रहेंगे.

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