टीकमगढ़। 5 अगस्त यानी कल अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर का भूमि पूजन करेंगे. हर कोई इस पल का साक्षी बनना चाहता है. राम मंदिर आंदोलन में देशभर से कार सेवकों ने अपना योगदान दिया. उन्हीं में से एक हैं टीकमगढ़ के बीजेपी नेता सुरेंद्र प्रताप सिंह. जिन्होंने अयोध्या आंदोलन में जान जोखिम में डालकर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को एक वैन करके अयोध्या तक ले गए थे. इसके अलावा उन्होंने अपने सामने मौत का मंजर देखा था. ये बात 1991 की है, जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरे देश मे एक लहर चली थी. राम मंदिर निर्माण की जिसको लेकर जन आंदोलन किया गया था और लाखों-करोड़ों कार सेवकों ने इसमें हिस्सा लिया था.
1000 कार सेवकों का गया था काफिला
सुरेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि वे राम मंदिर आंदोलन के लिए करीब एक हजार कार सेवक लेकर चित्रकूट गए थे, जहां उन सबको गिरफ्तार कर लिया गया था. जिसके बाद आंदोलन का अगला पड़ाव बांदा रहा. वहां भी इन्हें गिरफ्तारियां दी गई थी. जिसके बाद काफी लोग बांदा से टीकमगढ़ वापस आ गए थे. ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती मायूस हो सुरेंद्र प्रताप से कहा कि मुझे हर हाल में अयोध्या जाना. तुम चलो तो ठीक रहेगा.
ये सब सुन सुरेंद्र प्रताप ने बांदा से राजकुमार शिवहरे की एक सफेद रंग की वैन गाड़ी की. फिर क्या था उमा भारती के साथ उनके भाई स्वामी लोधी और सुरेंद्र प्रताप सिंह अयोध्या के लिए रवाना हुए. हैरत की बात तो ये है कि गाड़ी मालिक राजकुमार शिवहरे ने खुद गाड़ी ड्राइव की और बिना किसी को बताए यह चारों लोग अयोध्या की ओर रावाना हुए.
पहचान छुपाने उमा भारती का कराया था मुंडन
सुरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि उमा भारती की पहचान छिपाने के लिए सुरेंद्र प्रताप ने उमा भारती का मुंडन करवा दिया था. साथ ही उनके गेरुआ रंग के वस्त्र रखकर उनको सलवार सूट ओर चुनरी पहनाई थी. ऐसा इसलिए किया गया था, जिससे पुलिस पकड़ न पाए. इसके बाद ये लोग 30 अक्टूबर 1991 को बांदा से अयोध्या के लिए रवाना हुए. इस दौरान गंगा पुल पर पुलिस ने इन्हें पकड़ लिया और पुलिस ने सब को वापस जाने के लिए कहा. लेकिन सुरेंद्र सिंह ने बहाना बनाकर पुलिस से कहा कि हम लोग गमी में जा रहे हैं और उमा भारती की तरफ इशारा कर कहा कि इनकी बड़ी बहन खत्म हो गई हैं. उनके छोटे-छोटे बच्चे हैं. यह जाकर अपनी बहन के बच्चों को संभालेगी. काफी मशक्कत करने के बाद पुलिस ने इन्हें आगे जाने दिया. हर जगह पर पुलिस का सख्त पहरा था. इन सभी को पकड़े जाने का भय था और फिर यह लोग डाकुओं के इलाके से अयोध्या निकले तो इन सभी को जान का भी खतरा सताता रहा. फिर भी यह लोग राम लला को याद कर कर सेवक बनकर अयोध्या की राह में सफर करते रहे.
पुलिस अधिकारी ने बताया शॉर्टकट रास्ता
सुरेंद्र प्रताप सिंह ने उन दिनों को याद करते हुए बताया कि आगे जाने के बाद एक बार फिर पुलिस ने सख्त पहरे के दौरान इनकी गाड़ी पकड़ी और सभी को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए. जब पुलिस ने गाड़ी की जांच की तो कंबल उठाने पर पुलिस अधिकारी को भगवान गोपाल विराजमान दिखे. ये देख पुलिस अधिकारी की आंखे नम हो गईं और पुलिस अधिकारी ने कहा कि आप अयोध्या जा रहे हैं, बेझिझक जाइए. इसके अलावा पुलिस अधिकारी ने अयोध्या जाने का शॉर्टकट भी बताया.
काफी मुसीबतों का सामना करने के बाद 2 नवंबर 1991 को सभी लोग अयोध्या के विशाल आंदोलन पहुंचे, जहां आम सभा हो रही थी और हजारों कार सेवक मौजूद थे. वहां पर रामेश्वर महंत के निर्देशन में भाषण चल रहे थे. इसके कुछ समय बाद अशोक सिंघल आए और फिर उन्होंने सभी कार सेवकों को संबोधित किया. इस दौरान उमा भारती को भी मंच पर बुलाया गया और उमा दीदी ने भी सलवार सूट में जनता को संबोधित किया.
पुलिस अधिकारी पर गिरा पत्थर
सुरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि उमा भारती के भाषण खत्म होने के बाद किसी ने मंदिर के ऊपर से एक पत्थर फेंका, जो कि वहां नीचे ड्युटी पर तैनात पुलिस अधिकारी के सिर पर गिरा और उसकी मौके पर ही उसकी मौत भी हो गई. इस घटना के बाद पुलिस को पता चला कि किसी संत ने पुलिस पर पत्थर से हमला किया और उसकी मौत हो गई है. तो आक्रोशित पुलिस ने गोली चलाना शुरू कर दिया. फायरिंग से मौके पर मौजूद भीड़ के बीच भगदड़ मच गई और पुलिस की गोलियों से दर्जनों लोगों को मौत भी हो गई.
देखा मौत का मंजर
सुरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि उन्होंने अपनी आंखों से देखा था कि जो दो भाई शरद कोठारी ओर राम कोठारी इनके साथ चल रहे थे, आंदोलन में उनको पुलिस ने इन्हें सामने से गोली मार दी थी, जिसके बाद सुरेंद्र प्रताप सिंह, उमा भारती और उनके बड़े भाई स्वामी लोधी के साथ राजकुमार शिवहरे वहां से भाग कर एक मंदिर में छिपकर बैठे और अपनी जान बचा पाए. उनका कहना है कि इस आंदोलन में उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर हिस्सा लिया था.