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बेशर्म व्यवस्था, लाचार पिताः बेटी का शव खाट पर लेकर 35 किमी पैदल चलने को मजबूर पिता

जिले के आदिवासी अंचल के एक गांव में 16 वर्षिय नाबालिग ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. आत्महत्या की सुचना पुलिस को दी गई, लेकिन पुलिस मौके पर नहीं पहुंची. प्रशासन की बेशर्मी से नाराज पिता ने बेटी के शव को खाट पर रख कर 35 किमी पैदल चलकर पोस्टमार्टम कराने पहुंच गया. हद तो तब हो गई जब पोस्टमार्टम करने के बाद भी शव को गांव तक पहुंचाने के लिए कोई नहीं मिला. लाचार पिता ने मजबूरी में वापस शव को खाट पर ले जा कर अंतिम संस्कार किया.

helpless Father to walk 35 km by carrying daughter's body on cot
बेटी का शव खाट पर लेकर 35 किमी पैदल चलने को मजबूर पिता
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Published : May 9, 2021, 8:15 PM IST

सिंगरौली। मध्य प्रदेश सरकार लाख विकास के दावें करती है, लेकिन सिंगरौली जिले में दिल को झकझोर देने वाली तस्वीर सामने आई है. एक लाचार पिता को अपनी बेटी का शव खाट पर लेकर 35 किलोमीटर तक पैदल चलने को मजबूर होना पड़ा. सिस्टम की बेशर्मी की हद तो तब हो गई जब पिता को बेटी के पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए वापस खाट पर ही बेटी के शव को ले जाना पड़ा. सिंगरौली जिले में सुशासन की सरकार में विकास के अनेकों दावों के बीच सिस्टम की अनदेखी की इस शर्मनाक तस्वीर को देखकर कई सवाल खड़े हो गए है. क्या हम इंसानी बस्ती में रहते हैं? या फिर वाकई ये सिस्टम सड़ गया है. जिसके चलते एक लाचार बाप को खाट पर अपने बेटी के शव को लेकर पैदल चलने को मजबूर होना पड़ा.

बेटी का शव खाट पर लेकर 35 किमी पैदल चलने को मजबूर पिता
  • बेटी ने फांसी लगाकर की आत्महत्या

दरअसल पूरा मामला निवास पुलिस चौकी क्षेत्र के गड़ई गांव का हैं, यहां पीड़ित धिरूपति की 16 वर्षीय नाबालिग बेटी ने 5 मई की रात को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. परिजन ने घटना की सूचना 6 मई को निवास पुलिस चौकी में दी, लेकिन पुलिस प्रशासन से सहयोग नहीं मिला. इस बीच पिता बेटी का शव खाट पर लेकर पोस्टमार्टम करवाने के लिए 35 किमी पैदल जाने के लिए मजबूर हुआ. पीड़ित पिता को ना ही शव वाहन मिला और ना ही निवास पुलिस ने कोई संजीदगी दिखाई. आखिरकार सिस्टम से हारे पिता को कलेजे के टुकड़े के शव को खाट पर लेकर 35 किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ा. पीड़ित ने कहा कि करें तो क्या करें पुलिस ने सहयोग नहीं किया. शव वाहन बुलाने पर भी नहीं आया, अब इस सिस्टम से कितनी देर तक गुहार लगाते. इसलिए मजबूरी में शव को इसी तरह लेकर आ गया.

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  • जिम्मेदार देखकर भी रहे चुप

बेटी का शव खाट पर रखकर बाप 35 किलोमीटर पैदल चला. वह शव को लेकर वापस भी इसी तरह से आया, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. इस दौरान कई लोगों ने वीडियो बनाया और देखा भी पर किसी की संवेदना नहीं जागी. आदिवासी अंचल के गांवों में इस तरह की तस्वीर पहली नहीं है. बेशर्म व्यवस्था की ऐसी तस्वीर अक्सर सामने आती है लेकिन जिम्मेदार मदद करने की बजाए आंख मूंद कर मुह फेर लेते है.

सिंगरौली। मध्य प्रदेश सरकार लाख विकास के दावें करती है, लेकिन सिंगरौली जिले में दिल को झकझोर देने वाली तस्वीर सामने आई है. एक लाचार पिता को अपनी बेटी का शव खाट पर लेकर 35 किलोमीटर तक पैदल चलने को मजबूर होना पड़ा. सिस्टम की बेशर्मी की हद तो तब हो गई जब पिता को बेटी के पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए वापस खाट पर ही बेटी के शव को ले जाना पड़ा. सिंगरौली जिले में सुशासन की सरकार में विकास के अनेकों दावों के बीच सिस्टम की अनदेखी की इस शर्मनाक तस्वीर को देखकर कई सवाल खड़े हो गए है. क्या हम इंसानी बस्ती में रहते हैं? या फिर वाकई ये सिस्टम सड़ गया है. जिसके चलते एक लाचार बाप को खाट पर अपने बेटी के शव को लेकर पैदल चलने को मजबूर होना पड़ा.

बेटी का शव खाट पर लेकर 35 किमी पैदल चलने को मजबूर पिता
  • बेटी ने फांसी लगाकर की आत्महत्या

दरअसल पूरा मामला निवास पुलिस चौकी क्षेत्र के गड़ई गांव का हैं, यहां पीड़ित धिरूपति की 16 वर्षीय नाबालिग बेटी ने 5 मई की रात को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. परिजन ने घटना की सूचना 6 मई को निवास पुलिस चौकी में दी, लेकिन पुलिस प्रशासन से सहयोग नहीं मिला. इस बीच पिता बेटी का शव खाट पर लेकर पोस्टमार्टम करवाने के लिए 35 किमी पैदल जाने के लिए मजबूर हुआ. पीड़ित पिता को ना ही शव वाहन मिला और ना ही निवास पुलिस ने कोई संजीदगी दिखाई. आखिरकार सिस्टम से हारे पिता को कलेजे के टुकड़े के शव को खाट पर लेकर 35 किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ा. पीड़ित ने कहा कि करें तो क्या करें पुलिस ने सहयोग नहीं किया. शव वाहन बुलाने पर भी नहीं आया, अब इस सिस्टम से कितनी देर तक गुहार लगाते. इसलिए मजबूरी में शव को इसी तरह लेकर आ गया.

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  • जिम्मेदार देखकर भी रहे चुप

बेटी का शव खाट पर रखकर बाप 35 किलोमीटर पैदल चला. वह शव को लेकर वापस भी इसी तरह से आया, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. इस दौरान कई लोगों ने वीडियो बनाया और देखा भी पर किसी की संवेदना नहीं जागी. आदिवासी अंचल के गांवों में इस तरह की तस्वीर पहली नहीं है. बेशर्म व्यवस्था की ऐसी तस्वीर अक्सर सामने आती है लेकिन जिम्मेदार मदद करने की बजाए आंख मूंद कर मुह फेर लेते है.

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