सीधी। कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन का न सिर्फ बड़े व्यापारी आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं, बल्कि निजी स्कूल से जुड़े लोग भी भूखों मरने की कगार पर हैं. अनलॉक होने के बाद भी इनका कारोबार और काम पटरी पर नहीं लौटा है. सीधी में करीब 64 ऐसे निजी स्कूल हैं, जो आठ माह से बंद हैं. जिससे बच्चों का भविष्य खतरे में है, बल्कि संचालक और शिक्षकों को भी अपने परिवार का गुजारा करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
संकट में निजी स्कूल
लॉकडाउन से अब तक निजी स्कूल पिछले आठ महीने से बंद पड़े हैं. बच्चों के स्कूल नहीं जाने की वजह से उनका भविष्य अंधकार मय होता जा रहा है, वहीं निजी स्कूल चला रहे संचालकों के सामने एक बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. साथ ही बच्चों की पढ़ाई के लिए लगे शिक्षक वर्ग भी इस महामारी से जूझ रहे हैं.
जीवन यापन करना हो रहा मुश्किल
सीधी जिले के एक निजी स्कूल के संचालक का कहना है कि इस कोरोनाकाल में स्कूल से जुड़े लोगों का जीना मुश्किल हो गया है. बच्चों के अभिभावक फीस नहीं दे रहे हैं, स्कूल में बिजली, पानी, किराया तक निकलना मुश्किल हो रहा है, किसी तरह कुछ शिक्षकों को आधी पगार देनी पड़ रही है, कुछ शिक्षकों ने तो कहीं पान की दुकान तो किसी ने चाट के ठेले खोल लिया है. ऐसे में इन शिक्षकों को अपने घर का गुजारा करना भारी पड़ रहा है.
आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षक
वहीं शहर के एक बड़े निजी स्कूल के संचालक सौरभ शुक्ला का कहना है कि पिछले आठ महीनों से कोरोना महामारी ने ऐसा कहर बरपाया है कि शिक्षा तो प्रभावित हो ही रही है, साथ ही जो बच्चे पढ़ रहे थे, वो भी सब भूलते जा रहे हैं. बच्चों को जितना हो सके, ऑनलाइन पढ़ाई करा रहे हैं, लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई सभी बच्चे नहीं कर पा रहे हैं, साथ ही बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं. ऐसे से उनकी फीस भी स्कूल को नहीं मिल रही है. जिससे शिक्षकों को भी वेतन नहीं मिल पा रहा है.
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सौरभ शुक्ला ने कहा कि एक तरफ शासन की गाइड लाइन है कि किसी भी स्कूल के संचालक अभिभावकों पर फीस लेने के लिए दबाव नहीं बना सकते, कुछ संचालक किराए के भवन में निजी स्कूल चलाते हैं और आठ माह से स्कूल बंद है. ऐसे में किराया देना भारी पड़ रहा है.
सीधी जिले में ऐसे छोटे बड़े मिलाकर करीब 64 निजी स्कूल हैं, जहां बच्चे अपना भविष्य बनाते हैं, लेकिन पिछले आठ महीने से लगे लॉकडाउन की वजह से इनके जीवन में उथल-पुथल मची हुई है और बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं. ऐसे में निजी स्कूल संचालकों को शिक्षकों का वेतन निकालना मुश्किल हो रहा है.