शिवपुरी। कोलारस विधानसभा क्षेत्र में होली का उत्सव लोगों के मनमुटाव ही दूर नहीं करता, बल्कि दिलों को भी जोड़ता है. ऐसा दिलों को जोड़ने वाला है भगोरिया मेला. 20 साल पहले तक खैराई के मेला में युवा भागकर अपना जीवनसाथी चुनते थे लेकिन ये परम्परा इतिहास बनकर रह गई है. बावजूद इसके मेला की रंगत और परम्परागत ढोल-मांदल पर होने वाले नृत्य लोगों में स्पंदन पैदा कर देते हैं. भगोरिया के मेले में लगेगा 20 हजार से ज्यादा आदिवासी लोग मेला का लुत्फ उटाते हैं.
मेला बनता मिलन का माध्यम : 20 साल पहले युवक-युवती के मन मिलते थे और वे मेला से भाग जाते थे. इस झगड़ा को शांत करने के लिए राशि तय की जाती थी. पंचों द्वारा मामला हल कराया जाता था और विवाह पूर्ण हो जाता था. लेकिन अब परिजन रिश्ते तय कराते हैं. मेला अब भी आकर्षक लगता है. आदिवासी समुदाय में प्रचलित भगोरिया मेला होली और उसके पहले ग्राम खैराई में लगता है, जहां आदिवासी समुदाय में आने वाले भील, भिलाला, पटेलिया, बारेला समाज के लोग मेले में खरीदारी करने पहुंचते हैं. 20 साल पहले यहां समाज के युवा-युवती एक-दूसरे को पसंद करते हैं और भाग जाते थे. लेकिन अब ये प्रचलन कम हो गया है. लेकिन मेला की अन्य परम्मराओं में कोई कमी नहीं आई है.
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सज-धजकर पहुंचती हैं युवतियां : मेले में समाज की युवतियां आकर्षक श्रृंगार करके आती हैं. युवा पान खिलाते हैं. नृत्य होते हैं. यह मेला होली के दिन लगता है जो निरंतर तीन दिन चलता है. कोलारस के बदरवास से लगभग 30 किमी दूर खैराई गांव में लगे मेले में जिस युवक युवती की मन्नत पूरी होती है, उसे फिर मन्नत पूरी होने पर मचान पर झुलाया जाता है. महिलाएं भी आग के अंगारों से निकलती है और सुहागन का श्रंगार चढ़ाती है. मेला में युवतियों की टोलियां एक-एक रंग की वस्त्र पहनकर आती हैं. चांदी के आभूषण पहनते हैं और मेला का लुत्फ उठाते हैं.